टेलीग्राफ प्राधिकरण इसे संदर्भित न करने तक डीएम को ट्रांसमिशन लाइन से प्रभावित व्यक्तियों के अभ्यावेदन पर तब तक निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
29 May 2025 10:40 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के तहत जिला मजिस्ट्रेट को केवल उन मामलों पर निर्णय लेने की आवश्यकता है, जो टेलीग्राफ प्राधिकरण द्वारा उसके पास भेजे गए।
इसने माना कि जिला मजिस्ट्रेट को हर उस मामले में अभ्यावेदन पर आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है, जहां व्यक्ति ट्रांसमिशन लाइन से प्रभावित होते हैं।
जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा,
“हम मानते हैं कि जिला मजिस्ट्रेट को हर उस मामले में अधिनियम की धारा 16(1) के तहत आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है, जहां कोई व्यक्ति, जिसकी संपत्ति पर ट्रांसमिशन लाइन बिछाई जा रही है, जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष आपत्ति उठाता है या अभ्यावेदन दायर करता है। हमारा विचार है कि जिला मजिस्ट्रेट को धारा 16(1) के तहत आदेश पारित करने की आवश्यकता तभी होती है, जब टेलीग्राफ प्राधिकरण किसी विशेष मामले को जिला मजिस्ट्रेट को आदेश पारित करने के लिए संदर्भित करता है।”
याचिकाकर्ता ने अलीगढ़ के जिला मजिस्ट्रेट के खिलाफ परमादेश याचिका दायर कर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें उन्हें याचिकाकर्ता के स्वामित्व वाली भूमि पर उच्च तनाव तारों के लिए टावर लगाने के खिलाफ याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया गया। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि डीएम को धारा 16(1) के तहत याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर आदेश पारित करने की आवश्यकता थी।
जगीर लाल और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य पर भरोसा किया गया, जहां इलाहाबाद हाईकोर्ट की समन्वय पीठ ने माना कि टेलीग्राफ प्राधिकरण को ट्रांसमिशन लाइन बिछाने से पहले भूमि मालिक से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उनके पास अधिनियम की धारा 16(1) के तहत उपाय है।
आगे यह माना गया,
“जिला मजिस्ट्रेट उस शक्ति का प्रयोग या तो स्वप्रेरणा से या टेलीग्राफ प्राधिकरण या भूमि के स्वामी द्वारा किए गए अनुरोध पर कर सकता है। इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि जब भी किसी व्यक्ति की संपत्ति पर टेलीग्राफ लाइन बिछाई जाती है तो वह प्राधिकरण से मुआवज़ा मांगने का हकदार होता है। यदि वह मुआवज़े की राशि से संतुष्ट नहीं होता है तो वह टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 16 (3) के अनुसार जिला जज को आवेदन करने का हकदार होता है।”
अरुण कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य में इलाहाबाद हाईकोर्ट की अन्य खंडपीठ ने जागीर लाल के निर्णय का अनुसरण किया।
इसके विपरीत, पावर ग्रिड प्राधिकरण के वकील ने तर्क दिया कि केवल तभी जब मामला टेलीग्राफ प्राधिकरण द्वारा संदर्भित किया जाता है, जिला मजिस्ट्रेट आदेश पारित कर सकता है। पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम सेंचुरी टेक्सटाइल्स एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड और अन्य पर भरोसा किया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अधिनियम के तहत टेलीग्राफ लाइन बिछाने में कोई बाधा नहीं थी। यह पावर ग्रिड कॉरपोरेशन द्वारा बिछाई गई बिजली ट्रांसमिशन लाइनों पर भी लागू होता है। इसने माना कि धारा 10, 15 और 16 में टेलीग्राफ प्राधिकरण में निहित शक्तियां पावर ग्रिड कॉरपोरेशन द्वारा निहित और उपयोग की जाती हैं।
जस्टिस सराफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उपरोक्त निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि व्यापक जनहित के लिए टेलीग्राफ/बिजली पारेषण लाइनें बिछाने में कोई बाधा नहीं डाली जा सकती। इसने माना कि धारा 10, 15 और 16 के तहत टेलीग्राफ प्राधिकरण को दी गई शक्तियां अधिनियम के उद्देश्य को विफल करने के लिए पारेषण लाइनें बिछाने में बाधा उत्पन्न नहीं करती हैं।
न्यायालय ने माना कि जागीर लाल में हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम सेंचुरी टेक्सटाइल्स एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड और अन्य में निहित रूप से खारिज कर दिया था। अरुण कुमार के निर्णय में डीएम को उसके समक्ष प्रस्तुत प्रत्येक अभ्यावेदन को सुनने के लिए अनिवार्य करने वाला कोई विशिष्ट कानून नहीं बनाया गया था। तदनुसार, याचिकाकर्ता के मामले में दोनों निर्णय लागू नहीं माने गए।
रिट याचिका का निपटारा करते हुए न्यायालय ने टेलीग्राफ प्राधिकरण को अपने कानून के अनुसार कार्य करने तथा मामले को जिला मजिस्ट्रेट के पास भेजने में अपने विवेक का प्रयोग करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: अंतराम गोयल बनाम पावर ग्रिड नीमराना बरेली ट्रांसमिशन लिमिटेड एवं अन्य [रिट-सी नंबर 12360/2025]

