अयोग्य MLA इरफान सोलंकी आगजनी मामल में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने से किया इनकार

Shahadat

16 Nov 2024 10:11 AM IST

  • अयोग्य MLA इरफान सोलंकी आगजनी मामल में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने से किया इनकार

    2022 में घर में आगजनी के मामले में समाजवादी पार्टी (SP) के अब अयोग्य घोषित विधायक इरफान सोलंकी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि 'व्यापक' राय यह है कि अपराध के आरोपी व्यक्तियों को सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि अक्सर देखा गया कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले या जघन्य अपराधों के आरोपी बड़ी संख्या में व्यक्ति विधानसभा और संसद के लिए चुनाव लड़ते हैं और चुने जाते हैं।

    सोलंकी, उनके भाई और दो अन्य को कानपुर की स्पेशल कोर्ट ने 2022 में एक महिला के घर में आग लगाने के आरोप में दोषी ठहराया और सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। इसके कारण सोलंकी को यूपी-राज्य विधानसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया।

    जस्टिस राजीव गुप्ता और जस्टिस सुरेन्द्र सिंह-1 की खंडपीठ ने कहा कि सोलंकी, जिन पर गंभीर अपराधों का आरोप है और जिनका लंबा आपराधिक इतिहास है तथा जिनकी जमानत याचिका को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी खारिज कर दिया, उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाने की राहत का हकदार नहीं है।

    बता दें कि सोलंकी ने मामले में दोषसिद्धि और जमानत पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। पीठ ने उसे जमानत दी, लेकिन दोषसिद्धि पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई।

    उसके वकील ने तर्क दिया कि सोलंकी कानपुर नगर जिले के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों से चार बार विधायक रह चुके हैं और आम जनता के बीच उनकी अच्छी प्रतिष्ठा है।

    दूसरी ओर, एजीए ने आवेदन का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि सोलंकी आगजनी समेत गंभीर अपराधों में शामिल रहे हैं। उनका लंबा आपराधिक रिकॉर्ड रहा है। यह भी तर्क दिया गया कि अपराध की गंभीरता और अपीलकर्ताओं के आपराधिक इतिहास को देखते हुए धारा 389(1) सीआरपीसी के तहत दोषसिद्धि को निलंबित करना उचित नहीं है।

    इन दलीलों की पृष्ठभूमि में न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों पर विचार करने के पश्चात निचली अदालत ने सोलंकी को आरोपित अपराधों के लिए दोषी ठहराया था तथा यह माना था कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य विश्वसनीय तथा भरोसेमंद हैं।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि यद्यपि उसके पास दोषसिद्धि पर रोक लगाने की शक्ति है, लेकिन ऐसी शक्ति का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिए, ऐसे मामले में जहां न्यायालय को विश्वास हो कि दोषसिद्धि पर रोक न लगाने से अन्याय होगा तथा अपरिवर्तनीय परिणाम होंगे।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    "यहां यह इंगित करना प्रासंगिक है कि सजा के निष्पादन पर रोक लगाने की शक्ति तथा दोषसिद्धि पर रोक लगाने की शक्ति अलग-अलग आधार पर हैं, क्योंकि सजा के निष्पादन पर रोक लगाने के लिए अपीलकर्ताओं के विरुद्ध केवल प्रथम दृष्टया मामला ही देखा जाना चाहिए। तथापि, केवल इस आधार पर उनकी दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई जा सकती।"

    इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी माना कि केवल यह दलील देना कि सोलंकी अपनी दोषसिद्धि के कारण जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार अयोग्य हो गए हैं, दोषसिद्धि को निलंबित करने का कोई आधार नहीं है।

    परिणामस्वरूप, दोषसिद्धि पर रोक लगाने की दलील खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल- इरफान सोलंकी और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य।

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