अनुशासनात्मक प्राधिकारी/पूर्ण न्यायालय को अभ्यावेदन खारिज करने का कारण बताने की बाध्यता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला जज की बर्खास्तगी को बरकरार रखा

LiveLaw News Network

23 May 2024 8:26 AM GMT

  • अनुशासनात्मक प्राधिकारी/पूर्ण न्यायालय को अभ्यावेदन खारिज करने का कारण बताने की बाध्यता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला जज की बर्खास्तगी को बरकरार रखा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दहेज की मांग करने तथा अपनी पत्नी द्वारा दायर मामले में अपने अधीनस्थ को प्रभावित करने के आरोप में न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए कहा कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी हाईकोर्ट का पूर्ण न्यायालय होने के नाते दोषी न्यायिक अधिकारी द्वारा जांच रिपोर्ट पर की गई टिप्पणियों को खारिज करने के लिए कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है।

    राम कुमार बनाम हरियाणा राज्य और बोलोराम बोरदोलोई बनाम लखीमी गौलिया बैंक एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों तथा माधव प्रसाद बनाम उप निदेशक में इलाहाबाद हाईकोर्ट की समन्वय पीठ के निर्णय पर भरोसा करते हुए जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह तथा जस्टिस दोनादी रमेश की पीठ ने कहा कि “अनुशासनात्मक प्राधिकारी/पूर्ण न्यायालय दोषी द्वारा किए गए अभ्यावेदन को खारिज करने, जांच रिपोर्ट को स्वीकार करने अथवा विशेष दंड देने के लिए अपने स्पष्ट कारण दर्ज करने के लिए बाध्य नहीं है।”

    अनुशासनात्मक कार्यवाही को निष्पक्ष और उचित मानते हुए न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता ने उसे दिए गए सुनवाई के अवसर का दुरुपयोग किया है और कई बार स्थगन मांगकर तथा कार्यवाही में 3 वर्ष की देरी करके कानून का मजाक उड़ाया है।

    रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों को देखते हुए न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता, वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी के खिलाफ आरोप सही साबित हुए हैं।

    कोर्ट ने कहा, “न्यायिक अधिकारी द्वारा स्वयं के लिए या उन लोगों के लाभ के लिए किए गए किसी भी उल्लंघन से हमेशा सबसे गंभीर रूप से निपटा जाएगा, जिनसे न्यायिक अधिकारी निकट संबंध रखता हो। एक बार 'बुरी मछली' की पहचान हो जाने के बाद, उसे 'टैंक' में नहीं रखा जा सकता।”

    न्यायालय ने आगे कहा कि न्यायिक अधिकारी को अपने न्यायिक कार्यों के निष्पादन में किसी अन्य न्यायिक अधिकारी को प्रभावित करने की अनुमति देने की कोई गुंजाइश नहीं है।

    "यदि न्याय का मंदिर है, तो न्यायिक अधिकारियों को इसके ऊंचे दर्जे के पुजारियों की तरह काम करना चाहिए, जिन्हें न केवल मंच पर अपने कर्तव्यों के निर्वहन से संबंधित अनुष्ठानों का संचालन करना चाहिए, बल्कि उन्हें मंदिर की पवित्रता की भी पूरी लगन से रक्षा करनी चाहिए। एक न्यायिक अधिकारी जो अपने पद को अपवित्र करता है, उसे किसी प्रकार की दया नहीं मिलनी चाहिए।"

    केस टाइटलः उमेश कुमार सिरोही बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [रिट - ए नंबर- 10665/ 2021]

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