Bahraich Dargah Mela | अंतरिम व्यवस्थाओं ने सुनिश्चित किया शांतिपूर्ण अनुष्ठान, राज्य की आशंकाएं दूर: हाईकोर्ट ने याचिकाओं का किया निपटारा
Shahadat
19 July 2025 10:35 PM IST

बहराइच की दरगाह सैयद सालार मसूद गाजी (आरए) में वार्षिक जेठ मेले के संबंध में दायर तीन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उसके अंतरिम आदेश के तहत व्यवस्थाओं के सुचारू कार्यान्वयन के मद्देनजर "राज्य की सभी आशंकाएँ दूर हो गईं।"
दरगाह शरीफ की प्रबंधन समिति द्वारा दायर रिट सहित अन्य याचिकाओं का निपटारा करते हुए न्यायालय ने कहा कि मेले के आयोजन की अनुमति देने से इनकार करने वाले डीएम के आदेश ने "अपना प्रभाव खो दिया", क्योंकि मेले की अवधि पहले ही समाप्त हो चुकी थी। न्यायालय द्वारा दी गई अंतरिम व्यवस्था ने बिना किसी घटना के अनुष्ठान का पालन सुनिश्चित किया था।
संक्षेप में मामला
प्रबंधन समिति और चार अन्य ने जेठ मेले (15 मई से 15 जून 2025 के बीच निर्धारित) की अनुमति देने से डीएम के इनकार को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था। उन्होंने राज्य को सहयोग करने और आयोजन या श्रद्धालुओं की यात्रा में बाधा न डालने का निर्देश देने के लिए परमादेश की मांग की। दो जनहित याचिकाएं भी दायर की गईं, जिनमें लगभग एक जैसे मुद्दे उठाए गए।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अनुमति देने से इनकार मनमाना, दुर्भावनापूर्ण और राजनीतिक दबाव में तुच्छ आधारों पर किया गया। यह तर्क दिया गया कि अनुमति देने से इनकार करके अनुच्छेद 14, 21, 25, 26 और 29 के तहत कर्मकांडों के लिए संवैधानिक संरक्षण का उल्लंघन किया गया।
यह भी तर्क दिया गया कि प्रशासन द्वारा उद्धृत कानून-व्यवस्था की चिंताएँ निराधार हैं और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना प्रशासन का ही कर्तव्य है।
यह दावा किया गया कि जेठ मेला लंबे समय से चली आ रही परंपरा में निहित है। 1987 से यह राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त मेला रहा है और यह हिंदुओं और मुसलमानों सहित लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
दूसरी ओर, डीएम के फैसले को सही ठहराते हुए राज्य सरकार ने अदालत के समक्ष दलील दी कि दरगाह घनी, मिश्रित आबादी वाले क्षेत्र में स्थित है, जो भारत-नेपाल सीमा से सटे होने के कारण असुरक्षित है। इसलिए चल रहे राष्ट्रीय सुरक्षा अभियानों (ऑपरेशन सिंदूर), हाल के आतंकवादी हमलों और घुसपैठ के खतरे को देखते हुए एक बड़े मेले की अनुमति देना अव्यावहारिक है। इससे जन सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
यह भी तर्क दिया गया कि श्रद्धालु दरगाह में जाकर अपनी आस्था का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन दुकानों, झूलों और मनोरंजन गतिविधियों से युक्त यह मेला किसी भी आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।
17 मई को हाईकोर्ट ने याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया और (तत्काल के लिए) उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हालांकि, अदालत ने एक अंतरिम उपाय के रूप में दरगाह शरीफ में अनुष्ठानिक गतिविधियों के लिए नियमित गतिविधियों की अनुमति दी थी।
17 जुलाई को दिए गए अपने फैसले में जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कर्मकांडों की प्रकृति और राज्य के कर्तव्य पर विस्तार से चर्चा की, जब तक कि वे सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा न हों।
अपने आदेश में अनुच्छेद 25 और 'समग्र संवैधानिक नैतिकता' के विचार का हवाला देते हुए खंडपीठ ने कहा कि सामान्य तौर पर ऐसे सभी कर्मकांड, जिन्हें अनादि काल से मान्यता प्राप्त है, राज्य द्वारा तुच्छ आधार पर बाधित नहीं किए जा सकते।
न्यायालय ने आगे कहा कि समिति को ही दरगाह और उसकी संपत्ति के प्रबंधन को विनियमित करने का अधिकार है। इसलिए "समिति का यह परम कर्तव्य है कि वह दरगाह के मामलों का प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करे ताकि श्रद्धालुओं को दरगाह पर आने पर अनुष्ठान करने में सुविधा हो।"
Case title - Waqf No.19 Dahgah Sahrif Thru. C/M Of Dargah Sharif Bahraich By Chairman Baqaullah And 5 Others vs. State Of U.P. Thru .Addl. Chief Secy. Deptt. Home Lko. And Another 2025 LiveLaw (AB) 257

