सज़ा पूरी होने और जुर्माने पर रोक के बावजूद 2 महीने से ज़्यादा समय तक हिरासत में रखा गया दोषी, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- 'आर्टिकल 21 का घोर उल्लंघन'
Shahadat
16 Dec 2025 9:57 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ़्ते एक दोषी को तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया, जिसने पहले ही 10 साल की पूरी सज़ा काट ली थी। हालांकि, 27 लाख रुपये का जुर्माना न चुकाने के कारण उसे 2.5 महीने तक हिरासत में रहना पड़ा था।
जस्टिस समीर जैन की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट के जुर्माने की वसूली पर रोक लगाने के आदेश के बावजूद उसे हिरासत में रखना, "भारत के संविधान के आर्टिकल 21 में दिए गए मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन" है।
अपीलकर्ता (विनोद कुमार) को फरवरी 2013 में ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया और उसे अधिकतम दस साल की सज़ा के साथ कुल 27 लाख रुपये का जुर्माना और जुर्माना न देने पर 4 साल और 7 महीने की अतिरिक्त कैद की सज़ा सुनाई गई।
अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में अपनी सज़ा को चुनौती दी और ज़मानत के लिए भी प्रार्थना की। हालांकि, इस साल सितंबर में उसके वकील ने तर्क दिया कि उसने पहले ही 10 साल की पूरी सज़ा काट ली है और वह सिर्फ़ इसलिए हिरासत में है क्योंकि वह जुर्माना जमा नहीं कर सका।
24 सितंबर को हाईकोर्ट ने मौजूदा अपील के लंबित रहने के दौरान जुर्माने की वसूली पर रोक लगा दी, यह देखते हुए कि भारी काम के बोझ के कारण, मौजूदा अपील की जल्दी सुनवाई की कोई संभावना नहीं थी।
हालांकि, जुर्माने पर रोक लगाने के आदेश के बावजूद, अपीलकर्ता को रिहा नहीं किया गया। इसलिए 8 दिसंबर को हाईकोर्ट को उसकी लगातार हिरासत के बारे में बताया गया।
कोर्ट ने कड़ी भाषा में अपना आश्चर्य व्यक्त किया और कहा:
"यह काफी चौंकाने वाली बात है कि उपरोक्त तथ्यों के बावजूद आज तक अपीलकर्ता हिरासत में है। किसी भी व्यक्ति को, यहां तक कि दोषी को भी बिना किसी आदेश के हिरासत में नहीं रखा जा सकता। चूंकि अपीलकर्ता ने पहले ही उसे दी गई पूरी सज़ा काट ली है और उस पर लगाए गए जुर्माने पर भी इस कोर्ट ने रोक लगा दी है, इसलिए संबंधित अधिकारी उसे और हिरासत में नहीं रख सकते, अगर वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है। यह भारत के संविधान के आर्टिकल 21 में दिए गए मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन है।"
तदनुसार, कोर्ट ने उसे निजी मुचलके पर तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने मामले को उचित समय पर सूचीबद्ध करने का भी आदेश दिया है।
Case title - Vinod Kumar vs. State Of U.P. & Another

