इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घरेलू सहायिका को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पूर्व जज और उनकी पत्नी की गिरफ्तारी पर लगाई रोक

Shahadat

3 July 2025 4:54 PM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घरेलू सहायिका को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पूर्व जज और उनकी पत्नी की गिरफ्तारी पर लगाई रोक

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को रिटायर हाईकोर्ट जज (जस्टिस अनिल कुमार) और उनकी पत्नी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। जस्टिस अनिल और उनकी पत्नी का नाम उनकी घरेलू सहायिका को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दर्ज FIR में दर्ज किया गया है।

    जस्टिस आलोक माथुर और जस्टिस प्रकाश सिंह की खंडपीठ ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 108 (IPC की धारा 306) के तहत दर्ज FIR रद्द करने और उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग वाली एक आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम आदेश पारित किया।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 14 मार्च, 2025 को उनके आवास पर चोरी हुई थी और उन्होंने 17 मार्च, 2025 को निकटतम पुलिस स्टेशन में महेश निषाद (तब उनके आवास पर चपरासी के रूप में कार्यरत) के खिलाफ लिखित शिकायत प्रस्तुत की, जिसमें अलमारी से ₹6.5 लाख चोरी होने का आरोप लगाया गया था।

    यह प्रस्तुत किया गया कि यद्यपि मामले में कोई FIR दर्ज नहीं की गई, लेकिन उसमें आरोपी/मृतक ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और पुलिस स्टेशन में एक समझौता हुआ। इसमें वह याचिकाकर्ताओं को एक निश्चित राशि वापस करने के लिए सहमत हुआ था।

    हालांकि, कुछ दिनों बाद 2 अप्रैल को घरेलू सहायक की पत्नी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ वर्तमान FIR दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने मृतक को धमकाया था, जिसके कारण उसने 1 अप्रैल, 2025 को आत्महत्या कर ली। FIR में आगे कहा गया कि उसने एक सुसाइड नोट और वीडियो संदेश छोड़ा था।

    इस मामले में राहत की मांग करते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि भले ही FIR की सामग्री को सही माना जाए, लेकिन BNS की धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत कोई अपराध नहीं बनता है, क्योंकि BNS की धारा 45 (IPC की धारा 107- उकसाने के अनुरूप) के आवश्यक तत्व गायब हैं।

    यह तर्क दिया गया कि न तो कोई प्रत्यक्ष उकसावा प्रस्तुत किया गया और न ही आत्महत्या के साथ आचरण की ऐसी निकटता प्रस्तुत की गई, जिससे धारा 108 को आकर्षित किया जा सके।

    राज्य के वकील ने हालांकि दलील का विरोध किया, लेकिन तथ्यात्मक प्रस्तुतियों पर विवाद नहीं किया और जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा।

    आरोपों पर ध्यान देते हुए न्यायालय ने पाया कि FIR में केवल मृतक द्वारा चोरी के संबंध में पुलिस को की गई शिकायत और उसके बाद कुछ मोबाइल कॉल का उल्लेख किया गया। हालांकि, उन कथित कॉल की सामग्री न तो रिकॉर्ड पर है और न ही इस तरह से वर्णित की गई, जिससे आत्महत्या के लिए मजबूर करने या उकसाने का संकेत मिले।

    न्यायालय ने कहा,

    "IPC की धारा 306 (BNS की धारा 108) के तहत अपराध का गठन करने के लिए उकसाने का कार्य इतनी तीव्रता का होना चाहिए, ताकि मृतक को ऐसी उलझन में धकेला जा सके, जिसके तहत उसके पास आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प न हो। इस तरह की उकसावे की कार्रवाई भी आत्महत्या के कार्य और समय के करीब होनी चाहिए।"

    इस पृष्ठभूमि में प्रथम दृष्टया न्यायालय ने पाया कि धारा 108 के तहत अपराध का गठन करने के लिए आवश्यक तत्व अनुपस्थित थे।

    तदनुसार, न्यायालय ने राज्य को अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह और उसके बाद याचिकाकर्ताओं को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया। अब यह मामला 20 अगस्त, 2025 को सूचीबद्ध किया जाएगा।

    इस बीच न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को उक्त FIR के संबंध में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

    Case title - Vandana Srivastava (But Actual Name Is Smt. Vandana) And Another vs. State Of U.P. Thru. Addl. Chief Secy. Home Lko. And 2 Others

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