इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट के 'सरासर दुरुपयोग' के लिए पुलिस अधिकारियों को पेश होने को कहा
Shahadat
23 Jun 2025 12:28 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक क्रियाकलाप (रोकथाम) अधिनियम, 1986 को व्यक्ति के खिलाफ बार-बार और मनमाने ढंग से लागू करने पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसका कथित तौर पर उसे जेल में रखने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
गैंगस्टर एक्ट को 'कानून का सरासर दुरुपयोग' करार देते हुए जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने संबंधित जिला मजिस्ट्रेट, सीनियर पुलिस अधीक्षक और थाना प्रभारी को उनके 'कदाचार और लापरवाही' के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया।
इसके साथ ही पीठ ने गैंगस्टर एक्ट की धारा 2/3 के तहत दर्ज मामले के संबंध में आरोपी (मंशाद उर्फ सोना) को भी जमानत दी।
पीठ के समक्ष आवेदक की ओर से दलील दी गई कि उसके खिलाफ गैंगस्टर्स एक्ट पुराने मामलों के आधार पर लगाया गया, जो पहले से ही अस्तित्व में हैं और पिछले अवसर पर भी इस पर भरोसा किया जा सकता था, जब एक्ट लगाया गया था।
यह तर्क दिया गया कि यह उसकी कैद को लंबा करने के लिए कानून का दुरुपयोग करने की एक जानबूझकर की गई रणनीति को दर्शाता है।
अंत में यह तर्क दिया गया कि आवेदक मई, 2025 से जेल में बंद है और अगर उसे जमानत दी जाती है तो वह जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेगा और मुकदमे की कार्यवाही में सहयोग करेगा।
जब आवेदक के वकील की दलीलों के बारे में पीठ द्वारा पूछा गया तो AGA यह कारण नहीं बता सका कि पुराने मामलों के आधार पर बार-बार गैंगस्टर्स एक्ट क्यों लगाया जा रहा है।
इस मामले में स्पष्ट मनमानी पाते हुए अदालत ने टिप्पणी की कि SHO का आचरण एक्ट के 'सरासर दुरुपयोग' को दर्शाता है। इसमें कहा गया कि SSP और DM ने यूपी गैंगस्टर्स रूल्स, 2021 के नियम 5(3)(ए) के तहत कार्रवाई को मंजूरी देने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करने के अपने वैधानिक कर्तव्य में भी विफल रहे हैं।
अदालत ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा,
"यह न केवल SHO की ओर से मनमानी दिखाता है, बल्कि SSP और जिला मजिस्ट्रेट, मुजफ्फरनगर की ओर से भी घोर लापरवाही दिखाता है, जिन्हें संयुक्त बैठक आयोजित करने के समय अपने विवेक का इस्तेमाल करना आवश्यक है।"
इसके अलावा, इस बात पर जोर देते हुए कि गैंगस्टर्स एक्ट का ऐसा यांत्रिक और बार-बार इस्तेमाल न्यायिक निर्देशों और गोरख नाथ मिश्रा बनाम यूपी राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुपालन में राज्य द्वारा जारी हालिया दिशा-निर्देशों दोनों का उल्लंघन करता है, कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को उनके कदाचार और लापरवाही के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए लिस्टिंग की अगली तारीख पर तलब किया।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल के दिनों में गैंगस्टर्स एक्ट के मनमाने ढंग से लागू होने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
दरअसल, 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक्ट के प्रावधानों के क्रियान्वयन को नियंत्रित करने वाले विशिष्ट मापदंडों या दिशा-निर्देशों को तैयार करने की वांछनीयता पर विचार करने का निर्देश दिया था।
इस निर्देश के अनुपालन में राज्य सरकार ने 2 दिसंबर, 2024 को विस्तृत चेकलिस्ट के साथ कुछ निर्देश जारी किए। इन दिशा-निर्देशों को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने SHUATS यूनिवर्सिटी के निदेशक विनोद बिहारी लाल से जुड़े हालिया मामले में अपनाया और कानूनी प्रवर्तनीयता दी। पीठ ने अधिकारियों को दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करने का भी निर्देश दिया।
Case title - Manshad @ Sona vs. State of U.P

