इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाजवादी पार्टी एमएलए की पत्नी के खिलाफ मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी अधिनियम के तहत मामला खारिज किया
Shahadat
10 Nov 2025 9:00 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह समाजवादी पार्टी के निवर्तमान विधायक की पत्नी के खिलाफ आरोपपत्र, संज्ञान आदेश और पूरी कार्यवाही रद्द की। उन पर मानव तस्करी के आरोप थे। साथ ही उन पर किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के साथ-साथ बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 के तहत भी मामला दर्ज किया गया था।
जस्टिस समीर जैन की पीठ ने विधायक ज़ैद बेग की पत्नी सीमा बेग को राहत देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष की सामग्री को अगर उसके मूल स्वरूप में भी लिया जाए तो भी किसी भी लागू प्रावधान के तहत प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता।
हाल ही में हाईकोर्ट ने बेग और उनकी पत्नी के खिलाफ सत्र सुनवाई में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। इन पर अपने घरेलू सहायिका के मामले से जुड़े आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है।
संक्षेप में मामला
बेग के खिलाफ पिछले साल नाबालिग लड़की के अपने घर में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए जाने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
जांच के दौरान, एक अन्य नाबालिग लड़की (लगभग 15 वर्षीय) उसी घर में घरेलू सहायिका के रूप में काम करती पाई गई। उसे किशोर कल्याण समिति के समक्ष पेश किया गया और बाद में संरक्षण गृह भेज दिया गया।
FIR के अनुसार, नाबालिग ने बताया कि वह दो साल से बिना किसी आर्थिक पारिश्रमिक के घर में काम कर रही थी, सिवाय इस वादे के कि आवेदक उसकी शादी का खर्च उठाएगा।
उसने यह भी दावा किया कि एक अन्य नाबालिग लड़की (अब मृत) भी वहाँ काम करती थी और उसे 2,000 रुपये प्रति माह मिलते थे, जो उसकी माँ ले लेती थी।
FIR में यह भी आरोप लगाया गया कि नाबालिगों को डांटा जाता था, पीटा जाता था, उचित वेतन नहीं दिया जाता था, उन्हें खराब कामकाजी परिस्थितियों में रखा जाता था और उनका शोषण भी किया जाता था, जो कि BNS, किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act) और बंधुआ मजदूरी अधिनियम के तहत अपराध है।
मृतक लड़की की आत्महत्या के संबंध में भी BNS की धारा 108 के तहत एक अलग FIR दर्ज की गई थी।
जांच के बाद पुलिस ने सीमा बेग और उसके पति के खिलाफ BNS की धारा 143(4), 143(5) और JJ Act की 79 के साथ-साथ बंधुआ मजदूरी अधिनियम की धारा 4 और 16 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया।
संज्ञान आदेश और समन को चुनौती देते हुए बेग ने हाईकोर्ट का रुख किया।
उनके वकील सीनियर एडवोकेट जीएस चतुर्वेदी ने दलील दी कि आरोप झूठे और अस्पष्ट हैं और BNS की धारा 143 (मानव तस्करी), JJ Act की धारा 79 या बंधुआ मजदूरी अधिनियम के किसी भी वैधानिक तत्व का कोई आधार नहीं बनता।
उन्होंने तर्क दिया कि नाबालिगों की तस्करी शोषण के लिए नहीं की गई और न ही उन्हें धमकी, बल, जबरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी, शक्ति के दुरुपयोग या प्रलोभन के माध्यम से भर्ती किया गया। यह दलील दी गई कि उनके परिवार के सदस्यों ने स्वेच्छा से उन्हें घरेलू सहायकों के रूप में काम करने के लिए भेजा था।
उन्होंने दृढ़ता से तर्क दिया कि यह नहीं कहा जा सकता कि किसी लड़की को घरेलू सहायिका के रूप में नियुक्त करने वाले व्यक्ति ने मानव तस्करी का अपराध किया, जब तक कि यह आरोप न हो कि लड़की को शोषण के लिए नियुक्त किया गया।
JJ Act के अंतर्गत अपराध के संबंध में, उन्होंने तर्क दिया कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 79 के अंतर्गत अपराध की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि किसी बच्चे को बंधुआ रखा जाए या नियोक्ता उसकी कमाई रोके या उसकी कमाई का उपयोग अपने निजी उद्देश्यों के लिए करे।
हालांकि, उन्होंने तर्क दिया कि वर्तमान मामले में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आवेदक ने पीड़ितों को बंधुआ रखा और न ही ऐसा कोई आरोप है और न ही कोई सबूत है कि उसने उनकी कमाई रोकी।
दूसरी ओर, राज्य ने इस याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि नाबालिगों को काम पर रखना, अपर्याप्त मजदूरी देना और उनके साथ कठोर व्यवहार करना शोषण है।
यह भी तर्क दिया गया कि परिस्थितियां जबरन मजदूरी या 'बेगार' का संकेत देती हैं, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत नाबालिग के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, क्योंकि आवेदक और उसके पति द्वारा पीड़ितों को पर्याप्त वेतन नहीं दिया जा रहा था।
न्यायालय का आदेश और टिप्पणियां
जस्टिस समीर जैन की पीठ ने मानव तस्करी की धारा 143 का अवलोकन किया और पाया कि मानव तस्करी का अपराध बनने के लिए भर्ती शोषण के उद्देश्य से होनी चाहिए और यह धमकी, बल, जबरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी, शक्ति के दुरुपयोग या प्रलोभन के माध्यम से की जानी चाहिए।
कोर्ट ने अपने विश्लेषण में यह नहीं पाया कि अभियोजन पक्ष की सामग्री से यह साबित होता है कि नाबालिगों को 'शोषण के लिए' भर्ती किया गया। सिंगल जज ने धमकी, जबरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी, शक्ति के दुरुपयोग या प्रलोभन के तत्व भी नहीं पाए। उनके परिवार के सदस्यों ने स्वेच्छा से उन्हें घरेलू काम पर रखा था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही एक नाबालिग को केवल 1,000 रुपये मिले और दूसरे को कोई मजदूरी नहीं मिली। हालांकि, यह तथ्य BNS के अनुसार स्वतः ही 'शोषण' नहीं माना जा सकता, खासकर तस्करी के किसी भी सबूत के अभाव में। इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि इस प्रावधान के तत्व सिद्ध नहीं होते।
अनुच्छेद 23 के उल्लंघन के आरोपों पर कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
"...केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 के आधार पर किसी व्यक्ति पर बेगार के आरोप के आधार पर तब तक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता या उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि इस संबंध में किसी भी लागू कानून में कोई विशिष्ट प्रावधान न हो। BNS की धारा 143 के अंतर्गत अपराध में बेगार शामिल नहीं है। यह केवल मानव तस्करी के लिए है और जैसा कि इस कोर्ट के समक्ष पहले ही उपलब्ध अभिलेखों से देखा जा चुका है, प्रथम दृष्टया आवेदक के विरुद्ध BNS की धारा 143 के अंतर्गत अपराध नहीं बनता है।"
किशोर न्याय अधिनियम के संबंध में न्यायालय ने माना कि धारा 79 केवल तभी लागू होती है, जब किसी बच्चे को बंधुआ रखा जाता है, या जब उसकी कमाई रोक ली जाती है या नियोक्ता अपने निजी उद्देश्य के लिए उसका उपयोग करता है। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं था।
बंधुआ मजदूरी अधिनियम के संबंध में कोर्टको ऐसा कोई आरोप या साक्ष्य नहीं मिला कि नाबालिगों को बंधुआ मजदूरी करने के लिए मजबूर किया गया था।
इस प्रकार, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि प्रथम दृष्टया आवेदक के विरुद्ध BNS, किशोर न्याय अधिनियम और बंधुआ मजदूरी अधिनियम के अंतर्गत कोई अपराध नहीं बनता।
तदनुसार, आरोप-पत्र, संज्ञान आदेश और संपूर्ण कार्यवाही निरस्त कर दी गई और आवेदन स्वीकार कर लिया गया।
Case title - Seema Beg vs. State of U.P. and Another

