इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी मामले में Shaadi.com के CEO के खिलाफ दर्ज FIR रद्द की
Shahadat
27 Sept 2025 6:00 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ग्राहक द्वारा Shaadi.com के CEO अनुपम मित्तल के खिलाफ कथित धोखाधड़ी के मामले में दर्ज FIR को इस आधार पर रद्द कर दिया कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कोई अपराध नहीं किया।
शिकायतकर्ता एक वकील है। उन्होंने shaadi.com पर सेवाओं के लिए भुगतान किया। उसका आरोप है कि मोनिका गुप्ता नामक महिला कथित तौर पर शिकायतकर्ता के अश्लील वीडियो रिकॉर्ड करके उसे परेशान और ब्लैकमेल कर रही है। FIR में उसने कहा कि ग्राहक सेवा और व्यक्तिगत रूप से अनुपम मित्तल से शिकायत करने के बावजूद, अश्लीलता में लिप्त लोगों के प्रोफाइल हटाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
इसके बाद उसने Shaadi.com के CEO के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420, 384, 507, 120-बी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 67 के तहत FIR दर्ज कराई। सूचना देने वाले ने यह भी आरोप लगाया कि मैचमेकिंग सेवाएं प्रदान करने की आड़ में उसके विश्वास के साथ विश्वासघात किया जा रहा है।
FIR के विरुद्ध अनुपम मित्तल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट अधिकार क्षेत्र में याचिका दायर की।
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस मदन पाल सिंह की खंडपीठ ने कहा,
“याचिकाकर्ता अनुपम मित्तल पर व्यक्तिगत रूप से कोई अपराध करने का आरोप नहीं लगाया जा सकता। साथ ही हम पाते हैं कि सूचना देने वाले प्लेटफ़ॉर्म पर प्रतिभागियों के कृत्यों से पीड़ित है। उसको उनके व्यक्तिगत सोशल मीडिया पेजों पर परेशान नहीं किया गया। इसके अलावा, उत्पीड़न के बावजूद, उन्होंने प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग जारी रखा। वह आसानी से प्लेटफ़ॉर्म से हट सकते थे।”
IT Act की धारा 79 और गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम विसाका इंडस्ट्रीज में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता मध्यस्थ/सुविधाकर्ता है, जो प्लेटफ़ॉर्म पर तीसरे पक्ष के कार्यों के लिए ज़िम्मेदार नहीं है और उस पर कोई दायित्व नहीं लगाया जा सकता।
यह देखते हुए कि सूचना देने वाली ने जिन प्रोफाइलों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, उनमें से एक को हटा दिया गया, अदालत ने कहा कि shaadi.com पर प्रोफाइल रखने वाले उम्मीदवारों के कार्यों के लिए मध्यस्थ जिम्मेदार नहीं होगा।
अदालत ने कहा,
“जब भी शिकायतें प्राप्त हुईं, कार्रवाई निश्चित रूप से की गई और हमने यह भी पाया कि मध्यस्थ, यानी जिस कंपनी का याचिकाकर्ता मुख्य कार्यकारी अधिकारी है, उसे IT Act की धारा 79 (1) और (2) के तहत संरक्षण प्राप्त है और प्लेटफ़ॉर्म चलाने वाली कंपनी की ओर से निश्चित रूप से कोई उकसावे की कार्रवाई नहीं की गई।”
अदालत ने कहा कि अगर सूचना देने वाले को प्लेटफ़ॉर्म पर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तो वह वापस ले सकता था। हालांकि, उत्पीड़न के बावजूद उसने ऐसा नहीं किया। यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता CEO के खिलाफ जबरन वसूली या धोखाधड़ी का कोई मामला नहीं बनता।
इस प्रकार, अदालत ने FIR रद्द कर दी।
Counsel for petitioner: Senior Counsel Mr. Manish Tiwary, assisted by Pranav Tiwary and Anurag Vajpeyi

