रविवार की सुनवाई | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में पुलिस अधीक्षक को तलब करने के बाद FIR का आरोप लगाने वाले वकील को राहत दी

Shahadat

20 Oct 2025 7:49 PM IST

  • रविवार की सुनवाई | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में पुलिस अधीक्षक को तलब करने के बाद FIR का आरोप लगाने वाले वकील को राहत दी

    रविवार की एक तत्काल सुनवाई में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वकील को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया, जिसने आरोप लगाया कि फतेहगढ़ की पुलिस अधीक्षक आरती सिंह के कहने पर उसके खिलाफ दुर्भावनापूर्ण FIR दर्ज की गई। यह आरोप अदालत द्वारा अलग बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में पुलिस अधीक्षक को तलब किए जाने के कुछ ही दिनों बाद लगाया गया।

    जस्टिस जे.जे. मुनीर और जस्टिस संजीव कुमार की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता (वकील अवधेश मिश्रा) को संगठित अपराध, आपराधिक षडयंत्र, जबरन वसूली और अन्य कथित अपराधों के लिए भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत दर्ज FIR के संबंध में 29 अक्टूबर, 2025 तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

    वर्तमान मामला सितंबर में प्रीति यादव नामक महिला द्वारा हाईकोर्ट में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से जुड़ा है, जिसके पति को फतेहगढ़ पुलिस ने कथित तौर पर हिरासत में लिया था और प्रताड़ित किया।

    संक्षेप में मामला

    फतेहगढ़ के स्थानीय वकील एडवोकेट अवधेश मिश्रा (याचिकाकर्ता) ने प्रीति यादव को हाईकोर्ट जाने की सलाह दी थी और उन्हें एडवोकेट संतोष कुमार पांडे से मिलाया था, जिन्होंने बाद में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की।

    उस याचिका की सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट में यह बात सामने आई कि पुलिस ने प्रीति यादव को कुछ कागज़ों पर यह दावा करते हुए हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया कि उन्होंने कोई याचिका दायर नहीं की है और उनके पति पुलिस हिरासत में नहीं हैं।

    जब मामले की सुनवाई शुरू हुई तो प्रीति यादव और उनके वकील (एडवोकेट संतोष कुमार पांडे) अदालत के समक्ष उपस्थित हुए और स्पष्ट रूप से कहा कि यादव को पुलिस अधिकारियों ने ऐसी घोषणा करने के लिए मजबूर किया।

    9 अक्टूबर, 2025 को हाईकोर्ट की एक खंडपीठ (जस्टिस मुनीर की अध्यक्षता में) ने इस बयान को गंभीरता से लिया और अपने आदेश में यह दर्ज किया कि पुलिस का कृत्य "न्याय में बाधा डालने का स्पष्ट कृत्य" प्रतीत होता है।

    इसके बाद अदालत ने फतेहगढ़ की पुलिस अधीक्षक आरती सिंह और अन्य अधिकारियों को 14 अक्टूबर, 2025 को दोपहर 2:00 बजे व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए तलब किया।

    अब कथित तौर पर हाईकोर्ट में हुए घटनाक्रम और एडवोकेट मिश्रा (याचिकाकर्ता) द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने वाली याचिकाकर्ता (प्रीति यादव) को दी गई सहायता से नाखुश होकर एसपी आरती सिंह के इशारे पर याचिकाकर्ता को परेशान किया गया।

    मिश्रा की याचिका के अनुसार, हाईकोर्ट के आदेश के बाद एसपी आरती सिंह ने जवाबी कार्रवाई शुरू की और 11 अक्टूबर को मिश्रा पर एक अभियुक्त (2020 के मामले में) से अभियोजन पक्ष को अपने पक्ष में गवाही देने के लिए ₹5 लाख मांगने का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज की गई।

    याचिका में आगे आरोप लगाया गया कि उसी शाम लगभग 8:30 बजे एसपी ने लगभग 100 कांस्टेबलों के साथ मिश्रा के घर पर छापा मारा, उनकी पत्नी, बेटे और घरेलू नौकर की पिटाई की और उनके घरेलू सामान को भी नुकसान पहुंचाया।

    परिणामस्वरूप, 18 अक्टूबर को चीफ जस्टिस के समक्ष एक तत्काल उल्लेख प्रस्तुत किया गया, जिसमें तत्काल सुनवाई की मांग की गई, क्योंकि यह प्रस्तुत किया गया कि मिश्रा पर गिरफ्तारी का खतरा मंडरा रहा है। मामले की गंभीरता और तात्कालिकता को देखते हुए चीफ जस्टिस ने रविवार (19 अक्टूबर) के लिए एक विशेष पीठ गठित करने का निर्देश दिया।

    सुनवाई के दौरान, मिश्रा के वकीलों ने स्पष्ट रूप से तर्क दिया कि उत्पीड़न और FIR दुर्भावना का प्रमाण है, क्योंकि मिश्रा के खिलाफ FIR, बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में हाईकोर्ट द्वारा पुलिस अधीक्षक को तलब किए जाने के बमुश्किल दो दिन बाद दर्ज की गई।

    मामले और संबंधित पुलिस अधीक्षक के खिलाफ लगाए गए आरोपों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि अगली सुनवाई तक कोई गिरफ्तारी न की जाए और पुलिस अधीक्षक सहित सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए।

    अदालत ने आगे निर्देश दिया कि मामले को 29 अक्टूबर, 2025 को नए सिरे से सूचीबद्ध किया जाए।

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