इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ के एक पार्क में अवैध अतिक्रमण और अस्थायी मंदिरों की जांच के आदेश दिए
Shahadat
3 Oct 2025 10:52 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने हाल ही में लखनऊ के सार्वजनिक पार्क में अनधिकृत अतिक्रमण पर कड़ी आपत्ति जताई और अधिकारियों को इस बात की जांच करने का निर्देश दिया कि उस ज़मीन पर अस्थायी मंदिर और अन्य गैर-सार्वजनिक ढांचे कैसे बनने दिए गए।
जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने पार्क में अवैध अतिक्रमण हटाने और असामाजिक गतिविधियों को रोकने की मांग वाली रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।
याचिकाकर्ता कॉलोनी निवासी बेबी पाल ने दलील दी कि कभी हरियाली, झूलों और मनोरंजन सुविधाओं से सुसज्जित यह पार्क अब असामाजिक तत्वों के कब्ज़े में है।
पाल ने दावा किया कि ऐसे तत्वों ने टिन की छतें लगा दी, बिस्तर, अलमारियां, कूलर, चारपाई जैसे घरेलू सामान ले आए और पार्क के अंदर एक अस्थायी मंदिर भी बना दिया।
यह भी आरोप लगाया गया कि विरोध करने वाली महिला निवासियों को धमकाया गया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। अंत में यह दलील दी गई कि सीमेंटेड पाइपों और पत्थरों का इस्तेमाल करके अस्थायी धार्मिक प्रतीकों का निर्माण केवल जनता की सहानुभूति हासिल करने के लिए किया गया। बार-बार अनुरोध के बावजूद नगर निगम ने सार्वजनिक भूमि पर इस तरह के अवैध अतिक्रमण को नज़रअंदाज़ किया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश पार्क, खेल के मैदान और खुले स्थान (संरक्षण और विनियमन) अधिनियम, 1975 की धारा 6 और इस संबंध में बनाए गए 2005 के नियमों के नियम 10 का हवाला देते हुए दलील दी कि विहित प्राधिकारी अपने वैधानिक कर्तव्य का पालन करने में विफल रहा है।
शुरू में अदालत ने सार्वजनिक पार्कों, सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर मज़ारों, अस्थायी मंदिरों और अन्य धार्मिक संरचनाओं के निर्माण द्वारा अनधिकृत अतिक्रमणों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के बार-बार दिए गए आदेशों का न्यायिक संज्ञान लिया।
इस संबंध में हाईकोर्ट ने भारत संघ बनाम गुजरात राज्य [एसएलपी (सी) संख्या 8519/2006] का विस्तृत उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कई अंतरिम आदेशों के माध्यम से सार्वजनिक स्थलों पर मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों या गुरुद्वारों के किसी भी अनधिकृत निर्माण पर रोक लगा दी थी और जिला कलेक्टरों और मजिस्ट्रेटों को इसका अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में यह भी दर्ज किया कि उत्तर प्रदेश ने 45,000 से अधिक अनधिकृत धार्मिक ढांचों की पहचान की थी। उन्हें हटाने, स्थानांतरित करने या मामले-दर-मामला समीक्षा के निर्देश जारी किए।
अंततः, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुपालन की निगरानी की ज़िम्मेदारी संबंधित हाईकोर्ट को सौंप दी।
इस पृष्ठभूमि में हाईकोर्ट ने लखनऊ के नगर निगम आयुक्त को निर्देश दिया कि वे उपायुक्त को बीट कांस्टेबलों से यह पता लगाने के लिए कहें कि पार्क में अस्थायी मंदिरों की अनुमति कैसे दी गई और उपयुक्त प्राधिकारी को कोई रिपोर्ट क्यों नहीं सौंपी गई।
लखनऊ के पुलिस आयुक्त को यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि उपायुक्त अनधिकृत निर्माणों को रोकने के लिए थाना प्रभारी द्वारा की गई कार्रवाई और उच्च अधिकारियों को मामले की सूचना न दिए जाने के संबंध में हलफनामा दाखिल करें।
अदालत ने यह भी आदेश दिया कि नगर निगम का संबंधित अधिकारी पार्क का निरीक्षण करे और इस बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करे कि ऐसे निर्माण कैसे हुए।
अगली सुनवाई की तारीख पर लखनऊ नगर निगम के आयुक्त द्वारा व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया गया।
मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर, 2025 को सूचीबद्ध की गई।

