इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नीलाम की गई संपत्ति पर जानबूझकर मुकदमे को लंबा खींचने के लिए लोन गारंटरों पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया
Shahadat
8 April 2025 5:09 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2017 में नीलाम की गई संपत्ति के संबंध में जानबूझकर मुकदमे को लंबा खींचने के लिए लोन गारंटरों पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
लोन गारंटरों (याचिकाकर्ताओं) को नीलाम की गई संपत्ति को खाली करने और नीलामी खरीदार के पक्ष में जुर्माना अवार्ड देते हुए जस्टिस संगीता चंद्रा ने कहा,
“यह न्यायालय रिट क्षेत्राधिकार के न्यायसंगत क्षेत्राधिकार होने और वादी की जिम्मेदारी के संबंध में पूर्वोक्त न्यायिक मिसालों पर गौर करने के बाद तथ्यों का स्पष्ट और पूर्ण खुलासा करते हुए किसी भी सक्रिय गलत बयानी और भौतिक तथ्यों को दबाने से बचते हुए इस न्यायालय से संपर्क करने के लिए पाता है कि याचिकाकर्ताओं ने जानबूझकर न्याय की धारा को प्रदूषित करने के प्रयास में यह रिट याचिका दायर की।”
इसमें आगे कहा गया,
"न केवल इस न्यायालय ने बैंक द्वारा अपने हलफनामों में दर्ज किए गए अभिलेखों और दस्तावेजी साक्ष्यों में गलत बयानी पाई, बल्कि इस न्यायालय ने यह भी पाया है कि याचिकाकर्ताओं को मकान संख्या 88, सेक्टर-13, इंदिरा नगर विस्तार योजना, लखनऊ में कब्जा जारी रखने में सक्षम बनाने के लिए मुकदमे को जानबूझकर लंबा खींचने का प्रयास किया गया, जबकि संपत्ति की नीलामी 21.12.2017 को ही हो चुकी थी।"
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
यह दलील दी गई कि याचिकाकर्ताओं के रिश्तेदार ने "कामधेनु डेयरी योजना" के तहत बैंक ऑफ बड़ौदा में 90 लाख रुपये के लोन के लिए आवेदन किया। चूंकि याचिकाकर्ता बैंक के ग्राहक हैं, इसलिए उन्हें लोन गारंटर के रूप में दिखाया गया। इसके अलावा, उन्हें उस संपत्ति के संयुक्त धारक के रूप में दिखाया गया, जिसे उधारकर्ता द्वारा दूसरे लोन के लिए पहले ही बैंक के पास गिरवी रखा गया।
उधारकर्ता के लोन अकाउंट को गैर निष्पादित संपत्ति घोषित किया गया और SARFAESI Act के तहत पहला डिमांड नोटिस 21.07.2016 को जारी किया गया। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उन्हें कभी भी उक्त नोटिस या वह नोटिस नहीं दिया गया, जिसके द्वारा बैंक ने संपत्ति का प्रतीकात्मक कब्ज़ा लिया। याचिकाकर्ताओं को मोचन पत्र भेजा गया और उसके बाद 21.03.2017 को अधिनियम की धारा 14 के तहत सम्मन जारी किए गए।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों को खारिज कर दिया गया और बैंक द्वारा सुरक्षा हित (प्रवर्तन) नियम, 2002 के नियम 8(6)(ए) के कथित गैर-अनुपालन में संपत्ति को नीलामी के लिए रखा गया, क्योंकि उक्त संपत्ति पर बकाया ऋण का विवरण प्रकट नहीं किया गया।
DRT ने याचिकाकर्ताओं के एक्ट की धारा 17 के तहत आवेदन स्वीकार करते हुए दर्ज किया कि उन्हें नोटिस नहीं दिया गया। DRT ने माना कि केवल डाक रसीद नोटिस की वास्तविक प्राप्ति दिखाने के लिए पर्याप्त नहीं थी और जब संपत्ति याचिकाकर्ता और उसके पति के संयुक्त स्वामित्व में थी तो नोटिस भी उसे दिया जाना चाहिए था। बैंक द्वारा की गई पूरी कार्रवाई को शुरू से ही शून्य माना गया।
बैंक ने DRT के समक्ष अपील दायर की, जिसे इस आधार पर अनुमति दी गई कि एक बार पति और पत्नी दोनों को एक ही पते पर नोटिस दिए जाने के बाद पत्नी नोटिस न दिए जाने का दावा नहीं कर सकती थी।
यह माना गया कि बैंक संपत्ति का प्रतीकात्मक कब्ज़ा लेने से पहले याचिकाकर्ता को नोटिस जारी करने के लिए बाध्य नहीं था। अंत में DRT ने माना कि "बिक्री नोटिस में संपत्तियों पर इस तरह के भार का उल्लेख न करना कोई मायने नहीं रखता"। इस तरह की कार्रवाई पूरी कार्यवाही को प्रभावित कर सकती है।
DRAT के इस आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी।
केस टाइटल: सुनीता निषाद और अन्य बनाम रजिस्ट्रार और अन्य के माध्यम से ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण [रिट - सी नंबर- 35050/2019]