इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपहरण के दोषियों को घटना के 30 साल बाद 'अपराधी परिवीक्षा अधिनियम' का लाभ दिया

Shahadat

19 Nov 2025 8:51 AM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपहरण के दोषियों को घटना के 30 साल बाद अपराधी परिवीक्षा अधिनियम का लाभ दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह 1995 में नाबालिग लड़की के अपहरण के लिए दो दोषियों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। हालांकि, उन्हें अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (Probation of Offenders Act) की धारा 4 का लाभ प्रदान करते हुए उनकी सजा में संशोधन किया।

    जस्टिस प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने उनकी अधिक उम्र, बेदाग पृष्ठभूमि और इस तथ्य को ध्यान में रखा कि यह मामला लगभग 30 वर्षों से लंबित है।

    यह आदेश स्पेशल/एडिशनल सेशन जज, रायबरेली द्वारा 2004 में दी गई दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली आपराधिक अपील पर पारित किया गया।

    मामला

    पीड़िता की माँ द्वारा 12 फ़रवरी 1995 को दर्ज कराई गई FIR में आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ताओं ने सह-अभियुक्तों को उनकी 15 वर्षीय बेटी को शादी के इरादे से बहला-फुसलाकर भगा ले जाने के लिए उकसाया।

    जांच के दौरान, लड़की का मेडिकल टेस्ट कराया गया, घटनास्थल का नक्शा तैयार किया गया और गवाहों के बयान दर्ज किए गए। इसके बाद वर्तमान अपीलकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363, 366 और 376 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया।

    मुकदमे के बाद सेशन कोर्ट ने उन्हें IPC की धारा 376 के तहत बरी कर दिया, लेकिन धारा 363 और 366 के तहत उन्हें दोषी ठहराया।

    अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों की जांच नहीं की और लड़की की उम्र दर्शाने वाले पारिवारिक रजिस्टर को नज़रअंदाज़ कर दिया। उन्होंने दावा किया कि कोई मकसद नहीं था और पड़ोस की प्रतिद्वंद्विता के कारण उन्हें झूठा फंसाया गया।

    राज्य ने अपील का विरोध करते हुए तर्क दिया कि प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों और पीड़िता की गवाही सहित साक्ष्यों ने अपराधों को पूरी तरह से स्थापित कर दिया।

    हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    अपील की सुनवाई करते हुए जस्टिस श्रीवास्तव ने IPC की धारा 363 और 366 के प्रावधानों का हवाला दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष को विवाह या अवैध संबंध से जुड़े प्रलोभन या कपटपूर्ण साधनों और आशय को स्थापित करना आवश्यक है।

    कोर्ट ने पाया कि जाँच करने वाले डॉक्टर (पीडब्लू-4) और रेडियोलॉजिस्ट (पीडब्लू-6) दोनों ने घटना के समय पीड़िता की उम्र लगभग 16-17 वर्ष बताई और ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष में कोई विकृति नहीं थी कि पीड़िता 18 वर्ष से कम आयु की थी।

    इसके अलावा, न्यायालय ने पीड़िता (पीडब्लू-2) के बयानों पर भी काफी हद तक भरोसा किया, जिसने गवाही दी कि दोनों अपीलकर्ता उसे यह विश्वास दिलाते थे कि बुधई से शादी करने से उसे खुशी और भौतिक सुख-सुविधाएं मिलेंगी। उसने आगे कहा कि घटना वाले दिन, अपीलकर्ताओं ने उसे जबरदस्ती बुधई के साथ भेज दिया था।

    उसकी माँ (पीडब्लू-1) ने भी इस कथन का समर्थन किया। प्रत्यक्षदर्शी बाबादीन (पीडब्लू-3) ने बताया कि उसने अपनी खुली आँखों से बुधई को पीड़िता को साइकिल पर ले जाते देखा था।

    अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि क्रॉस एक्जामिनेशन में अभियोजन पक्ष की कहानी को झूठा साबित करने वाला कोई तथ्य सामने नहीं आया। इस प्रकार, वह ट्रायल कोर्ट से सहमत थी कि हालांकि IPC की धारा 376 के तहत आरोप साबित नहीं हुआ, लेकिन IPC की धारा 363 और 366 के तहत अपराध पूरी तरह से सिद्ध हैं।

    सुनवाई के दौरान, अपीलकर्ताओं ने नरमी बरतने की माँग की, क्योंकि यह रेखांकित किया गया कि राम सजीवन अब 70 वर्ष के हैं और केवला 65 वर्ष के हैं और उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और दोषसिद्धि के बाद उन्होंने कोई अपराध नहीं किया।

    यह भी दलील दी गई कि घटना 1995 की है और वे पिछले 30 वर्षों से इस मामले में कष्ट झेल रहे हैं।

    यद्यपि राज्य ने अपील का विरोध किया, लेकिन यह स्वीकार किया कि इस मामले में अपराधी परिवीक्षा अधिनियम की धारा 4 लागू की जा सकती है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 4 मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा पाने वालों को छोड़कर अपराधियों की विभिन्न श्रेणियों के बीच कोई भेद नहीं करती है। इसे परिस्थितियों के अनुसार लागू किया जा सकता है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि न्याय का उद्देश्य उम्र, देरी और आपराधिक इतिहास की अनुपस्थिति को ध्यान में रखते हुए परिवीक्षा प्रदान करके पूरा किया जाएगा।

    इस प्रकार, दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए कोर्ट ने सजा में संशोधन किया और निर्देश दिया कि अपीलकर्ताओं को दो वर्ष के लिए अच्छे आचरण की परिवीक्षा पर रिहा किया जाए।

    उन्हें एक माह के भीतर जिला परिवीक्षा अधिकारी के समक्ष व्यक्तिगत मुचलके के साथ ₹50,000-₹50,000 की दो जमानतें प्रस्तुत करने और शांति एवं अच्छे आचरण बनाए रखने का वचन देने का निर्देश दिया गया।

    शर्तों का उल्लंघन करने पर उन्हें मूल सजा भुगतने के लिए निचली अदालत में उपस्थित होना होगा। इस प्रकार आपराधिक अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर ली गई।

    Case title - Ram Sajeewan and Ors. vs. State of U.P.

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