व्हाट्सएप मैसेज पर न्यायिक अधिकारी पर लगाया राजद्रोह का आरोप, हाईकोर्ट ने तय किए अवमानना के आरोप

Shahadat

6 Oct 2025 8:37 PM IST

  • व्हाट्सएप मैसेज पर न्यायिक अधिकारी पर लगाया राजद्रोह का आरोप, हाईकोर्ट ने तय किए अवमानना के आरोप

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक अवमानना ​​के आरोप तय किए, जो प्रथम दृष्टया वकीलों के बीच एक व्हाट्सएप मैसेज प्रसारित करने का दोषी पाया गया, जिसमें बस्ती में तैनात एडिशनल जिला जज पर फर्जी और जाली आदेश पत्र लिखने के लिए रिश्वत लेने और देशद्रोह करने का आरोप लगाया गया।

    जस्टिस जे.जे. मुनीर और जस्टिस प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि कथित अवमाननाकर्ता (कृष्ण कुमार पांडे) पर न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 2(सी) के अंतर्गत अदालत की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने और उसके अधिकार को कम करने का मुकदमा चलाया जाए।

    संक्षेप में मामला

    बस्ती के एडिशनल जिला जज, फास्ट ट्रैक कोर्ट-I द्वारा कथित अवमाननाकर्ता के विरुद्ध अदालत की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 15 के अंतर्गत एक संदर्भ प्रस्तुत किया गया।

    संदर्भ में कहा गया कि पांडे ने बस्ती जिले के वकीलों के व्हाट्सएप ग्रुप में एक मैसेज पोस्ट किया, जिसमें पीठासीन अधिकारी, विजय कुमार कटियार, एडीजे (एफटीसी-I), बस्ती के विरुद्ध भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, जिसमें उन पर रिश्वत लेने और लंबित दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों में "फर्जी और जाली आदेश पत्र" लिखने का आरोप लगाया गया।

    हिंदी में लिखे और वकीलों के बीच व्यापक रूप से प्रसारित इस मैसेज में आगे आरोप लगाया गया कि जज ने "कानून और संविधान को कुचल दिया" और "भ्रष्टाचार" करते हुए "न्याय की एक नई व्यवस्था बना रहे हैं"।

    कथित मैसेज इस प्रकार है:

    "अदालत की कार्यवाही में मा० जजों ने जानबूझकर कानून व संविधान को कुचल कर जाली व फर्जी आर्डरशीट की कूट रचना कर एक नया न्याय शास्त्र की रचना करने व एक नया न्यायतंत्र विकसित कर भारतीय कानून के शासन को समाप्त करने का प्रयास किया है व अपने कार्यालय की महिमा, गरिमा और विश्वसनीयता को समाप्त कर दिया है, जो राष्ट्र द्रोह व भ्रष्टाचार व गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के अन्तगत अपराध है।"

    मैसेज में कहा गया कि उपरोक्त आरोप अदालत को बदनाम करने और उसके अधिकार को कमज़ोर करने के लिए जानबूझकर लगाए गए।

    हाईकोर्ट के प्रशासनिक जज ने मैसेज की जांच के बाद आरोपों में दम पाया और कहा कि यह कृत्य "न्यायिक व्यवस्था को धमकाने, अदालत को बदनाम करने और आतंकित करने" के लिए अवमानना ​​के समान है।

    इसके बाद मामला आपराधिक अवमानना ​​की सूची बनाने वाली खंडपीठ के समक्ष रखा गया। अवमाननाकर्ता को नोटिस दिया गया और अपना बचाव करने के लिए बार-बार अवसर दिए गए, लेकिन उसने यह कहते हुए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया कि वह अपना बचाव करने में सक्षम है।

    मामले की कार्यवाही के दौरान, अदालत ने पाया कि पांडे वकील नहीं हैं, फिर भी वे बस्ती के वकीलों के लिए बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुप के मेंबर हैं।

    जब ज़िले के बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को नोटिस जारी किए गए तो न्यायालय को आश्वासन दिया गया कि पेशेवर ग्रुप्स के इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुधारात्मक कदम उठाए जाएंगे।

    मामले के गुण-दोष के संबंध में खंडपीठ ने शुरुआत में ही पांडे की निम्नलिखित दो आपत्तियों को खारिज कर दिया:

    1. उनके खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले एडवोकेट जनरल की अनुमति आवश्यक है।

    2. मामले को अधीनस्थ जजों के खिलाफ शिकायतों के लिए कथित "आंतरिक प्रक्रिया" के तहत स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा कि कानून में ऐसी कोई आवश्यकता या व्यवस्था मौजूद नहीं है।

    इसके बाद, उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला पाते हुए अदालत ने निम्नलिखित आरोप तय किए:

    "कि आपने, कृष्ण कुमार पांडे...व्हाट्सएप ग्रुप पर निम्नलिखित पोस्ट प्रकाशित करके...ऐसा कार्य किया, जो एडिशनल जिला जज/फास्ट ट्रैक कोर्ट-I, बस्ती कोर्ट के अधिकार को कलंकित और कम करता है.. इस प्रकार अदालत की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 12 सहपठित धारा 2(सी) के तहत दंडनीय अदालत की आपराधिक अवमानना ​​की है।"

    अवमाननाकर्ता ने खुद को निर्दोष बताया और मुकदमे का दावा किया। इसके बाद अदालत ने निर्देश दिया कि आरोप, नोटिस और सभी संबंधित कागजात मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कानपुर नगर के माध्यम से उन तक पहुंचाए जाएं और मामले की सुनवाई 9 अक्टूबर, 2025 के लिए नियत की।

    खंडपीठ ने कहा कि आरोप और सोशल मीडिया पर उनका वायरल होना अदालत की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के समान है। इस प्रकार यह अदालत की आपराधिक अवमानना ​​है, जो 1971 के अधिनियम की धारा 2(सी) के साथ धारा 12 के तहत दंडनीय है।

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