मकान विध्वंश पर हाईकोर्ट सख्त, अफसरों को ढहाया घर फिर से बनाने का आदेश
Amir Ahmad
27 Jun 2025 3:29 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में बागपत जिले के कलेक्टर उपजिलाधिकारी और तहसीलदार पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्होंने अंतरिम स्थगन आदेश के बावजूद एक महिला का मकान ढहा दिया।
कोर्ट ने कहा कि राज्य के कार्यकारी अधिकारी विशेष रूप से पुलिस और सिविल प्रशासन के अधिकारी न्यायिक आदेशों की अवहेलना कर गर्व महसूस करते हैं।
जस्टिस जे.जे. मुनीर की एकल पीठ ने टिप्पणी की,
"ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के कार्यकारी अधिकारियों खासकर पुलिस और सिविल प्रशासन में न्यायिक आदेशों की अवहेलना करने में एक तरह का गर्व महसूस करने की संस्कृति विकसित हो गई है। यह उनके लिए अपराधबोध का नहीं बल्कि उपलब्धि का विषय बन गया है।"
कोर्ट ने यह मामला हल्के में न लेने की बात कहते हुए तीनों अधिकारियों को 7 जुलाई, 2025 तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें वे यह बताएं कि क्यों न उनके द्वारा कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर गिराए गए भवन को सरकारी खर्च पर दोबारा बनाकर मूल स्थिति में बहाल करने का आदेश दिया जाए।
संक्षेप में मामला
याचिकाकर्ता (छम्मा) को हाईकोर्ट से 15 मई, 2025 को अंतरिम स्थगन आदेश मिला था, जिसमें उनके खिलाफ धारा 67 यूपी-राजस्व संहिता के तहत चल रही बेदखली और ध्वस्तीकरण की कार्यवाही पर रोक लगाई गई थी।
कोर्ट ने यह स्पष्ट आदेश दिया कि याचिकाकर्ता के निर्माण को ध्वस्त नहीं किया जाएगा और किसी भी वसूली पर भी रोक लगाई थी।
इसके बावजूद 16 मई 2025 को राजस्व अधिकारियों की टीम, जिसमें एसडीएम, तहसीलदार और पुलिसकर्मी शामिल थे, ने घर को तोड़ दिया। इस दौरान कोर्ट का आदेश उन्हें दिखाया भी गया था।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत अवमानना याचिका दायर कर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। याचिका में ऐसी तस्वीरें भी लगाई गईं थीं, जिनमें अधिकारी कोर्ट का आदेश पढ़ते हुए दिख रहे थे जबकि तोड़फोड़ जारी थी।
कोर्ट ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता द्वारा यह बताया जाता है कि कोई स्थगन आदेश पारित किया गया है तो अधिकारियों का कर्तव्य बनता है कि किसी भी विध्वंस जैसी कठोर कार्रवाई से तब तक रुक जाएं, जब तक कि कोर्ट के आदेश की पुष्टि न हो जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी न्यायिक आदेश का उल्लंघन कर की गई कोई भी कार्रवाई शून्य मानी जाती है।
कोर्ट ने इस मामले में दो ही विकल्प बताए या तो हर्जाना दिया जाए या फिर पुनर्स्थापना का आदेश हो।
अंत में कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा और अगली सुनवाई 7 जुलाई, 2025 को दोपहर 2 बजे तय की है।

