जज पर ₹1 करोड़ की रिश्वत मांगने का आरोप लगाकर मामला ट्रांसफर करने की याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने कहा- 'झूठे हैं आरोप'
Shahadat
1 July 2025 10:36 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में PMLA आरोपी द्वारा दायर आपराधिक रिट याचिका खारिज की, जिसमें उसके खिलाफ मामले को स्पेशल जज, CBI (पश्चिम)/स्पेश कोर्ट PMLA की अदालत से दूसरे कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी। आरोपी ने इसके लिए कहा था कि पीठासीन जज ने उससे 1 करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी है।
रिश्वतखोरी के आरोपों को झूठा और काल्पनिक बताते हुए जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा कि ट्रांसफर याचिका स्पष्ट रूप से अदालत के समक्ष मुकदमे से बचने की एक चाल है, जिसने याचिकाकर्ता के खिलाफ कई न्यायिक आदेश पारित किए।
एकल जज ने पाया कि कथित घटना के लगभग तीन महीने बाद जज द्वारा ₹1 करोड़ की रिश्वत की मांग के आरोप न केवल किसी सबूत द्वारा समर्थित नहीं हैं, बल्कि कार्यवाही में देरी करने के लिए एक सुनियोजित प्रयास प्रतीत होते हैं।
संक्षेप में मामला
याचिकाकर्ता (ब्रह्म प्रकाश सिंह) LACFEDD के पूर्व प्रबंध निदेशक हैं। उनको पहले IPC और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया था और अब वह लखनऊ में विशेष PMLA न्यायालय के समक्ष धन शोधन के मामले का सामना कर रहे हैं।
पिछले साल दिसंबर में याचिकाकर्ता ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 448 के तहत ट्रांसफर आवेदन दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि पीठासीन अधिकारी [स्पेशल जज, CBI (पश्चिम)/स्पेशल जज, E.D] ने उनसे (सितंबर, 2024 में) बरी करने और जब्त की गई संपत्ति को छोड़ने के बदले में ₹1 करोड़ की अवैध रिश्वत मांगी थी।
उनका दावा था कि CrCP की धारा 313 के तहत बयान दर्ज करने के बाद जब न्यायालय के पीठासीन अधिकारी मंच पर अकेले थे, तो उन्होंने रिश्वत की मांग की।
हालांकि, सेशन जज ने पीठासीन अधिकारी की टिप्पणियों को दर्ज करते हुए ट्रांसफर आवेदन खारिज कर दिया, जिन्होंने ओपन कोर्ट में रिश्वत की मांग के आरोप का स्पष्ट रूप से खंडन किया।
अपने स्पष्टीकरण में पीठासीन जज ने कहा कि जब कोर्ट सेशन में होता है तो न्यायालय के कर्मचारी तथा सरकारी वकील वहां उपस्थित रहते हैं, जहां यह संभावना नहीं है कि उन्होंने रिश्वत की मांग की होगी। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता तथा उनके वकील न्यायालय पर दबाव डालना चाहते हैं, ताकि वे सुनवाई को लम्बा खींच सकें।
अपनी याचिका की अस्वीकृति को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।
हाईकोर्ट का आदेश
अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि आवेदन दाखिल करने में देरी, सहायक साक्ष्यों की अनुपस्थिति तथा याचिकाकर्ता के स्वयं के आचरण के कारण आरोप "स्पष्टतः झूठे तथा काल्पनिक" प्रतीत होते हैं।
पीठ का यह भी मत था कि ट्रांसफर आवेदन न्यायालय के समक्ष सुनवाई का सामना करने से बचने के लिए तैयार किया गया, जिसने याचिकाकर्ता के विरुद्ध दो न्यायिक आदेश पारित किए तथा इनमें से एक आदेश को चुनौती देने में न्यायालय असफल रहा है, क्योंकि इस न्यायालय द्वारा आज तक कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया गया।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता के इस दावे पर भी आपत्ति जताई कि हाईकोर्ट की समन्वय पीठ ने भी जानबूझकर उसके पक्ष में आदेश पारित करने से परहेज किया, इसे निंदनीय और अवमाननापूर्ण कथन करार दिया।
अदालत ने सेशन जज के ट्रांसफर याचिका खारिज करने के फैसले की पुष्टि करते हुए निष्कर्ष निकाला कि "स्थानांतरण आवेदन झूठे और काल्पनिक आरोपों पर दायर किया गया ताकि मुकदमे का सामना करने से बचा जा सके।"
तदनुसार, रिट याचिका को योग्यता से रहित मानते हुए खारिज कर दिया गया।
Case title - Brahma Prakash Singh vs. State Of U.P. Thru. Prin. Secy. Home Lko. And 2 Others