इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अदालत के आदेश को ही लिखित FIR मानने पर बलिया के पुलिस अधीक्षक को फटकार लगाई, स्पष्टीकरण मांगा

Shahadat

14 July 2025 5:44 AM

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अदालत के आदेश को ही लिखित FIR मानने पर बलिया के पुलिस अधीक्षक को फटकार लगाई, स्पष्टीकरण मांगा

    इस महीने की शुरुआत में पारित एक कड़े आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलिया के पुलिस अधीक्षक ओमवीर सिंह को कड़ी फटकार लगाई, क्योंकि उन्होंने अदालत के पहले के आदेश को ही लिखित FIR मान लिया था।

    न्यायालय ने आश्चर्य व्यक्त किया कि 29 मई, 2025 के उसके आदेश को सीधे FIR के रूप में दर्ज कर लिया गया, बजाय इसके कि स्थापित कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाए, जिसके तहत या तो शिकायतकर्ता या कोई नामित अधिकारी सूचना को लिखित रूप में दर्ज करता है और औपचारिक पंजीकरण के लिए पुलिस को प्रस्तुत करता है।

    न्यायालय ने संबंधित आईपीएस अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगते हुए कहा,

    "पुलिस अधीक्षक का यह कृत्य प्रथम दृष्टया अवज्ञाकारी है। साथ ही स्पष्ट रूप से अवैध भी है।"

    न्यायालय ने उन्हें यह भी निर्देश दिया कि वे कारण बताएं कि चेक फॉर्म में दर्ज लिखित FIR को 'मिटा' क्यों न दिया जाए। उसके स्थान पर याचिकाकर्ता या किसी पुलिस अधिकारी द्वारा दी गई लिखित सूचना के आधार पर एक नई FIR दर्ज की जाए।

    अदालत मूलतः 2016 के एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता देवेंद्र कुमार सिंह की कथित रूप से हेराफेरी से की गई नियुक्ति से संबंधित मामला है, जो बलिया के इंटरमीडिएट कॉलेज में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी राम प्रीत सिंह की रिटायरमेंट के बाद उत्पन्न हुई एक रिक्ति के विरुद्ध था।

    यह विवाद उक्त कर्मचारी (राम प्रीत सिंह) की वास्तविक जन्मतिथि और रिटायरमेंट के इर्द-गिर्द घूमता है।

    याचिकाकर्ता (डीके सिंह) ने दावा किया कि 1 जुलाई, 1931 को जन्मे राम प्रीत सिंह 30 जून, 1991 को रिटायर हुए, जबकि एक विरोधाभासी रिकॉर्ड [आरपी सिंह की सेवा पुस्तिका] से पता चलता है कि उनका जन्म वास्तव में 1 जुलाई, 1940 को हुआ था। वे 30 जून, 2000 को रिटायर हुए थे। इससे यह दावा पूरी तरह से खारिज हो गया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति उनकी रिक्ति के विरुद्ध की गई थी।

    अब 5 मई, 2025 को जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS), बलिया और उक्त कॉलेज के प्रधानाचार्य को राम प्रीत सिंह की मूल सेवा पुस्तिका प्रस्तुत करने का निर्देश जारी किया गया। 26 मई, 2025 को इसके बजाय 'डुप्लिकेट' सेवा पुस्तिका प्रस्तुत की गई।

    न्यायालय ने पाया कि किन परिस्थितियों में इस बात का कोई वैध स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। वास्तव में न्यायालय ने कहा कि डुप्लिकेट सेवा पुस्तिका में दर्ज किसी भी प्राधिकारी द्वारा डुप्लिकेट सेवा पुस्तिका तैयार करने का कोई आधिकारिक आदेश नहीं था।

    इस प्रकार, इस पुस्तिका को एक 'गुप्त दस्तावेज़' बताते हुए एकल न्यायाधीश ने टिप्पणी की:

    "यह पूरी तरह से असंतोषजनक स्थिति है, जहां एक डुप्लिकेट सेवा पुस्तिका, जो पहली नज़र में बिल्कुल अविश्वसनीय है, हमें एक अत्यंत संदिग्ध माध्यम से दिखाई गई।"

    इस पृष्ठभूमि में 29 मई को यह देखते हुए कि मूल सेवा पुस्तिका 'जानबूझकर चुराई गई' प्रतीत होती है, हाईकोर्ट ने बलिया के पुलिस अधीक्षक को मूल सेवा पुस्तिका के गुम होने और डुप्लिकेट के संदिग्ध निर्माण की जांच के लिए मामले में FIR दर्ज करने का आदेश दिया।

    न्यायालय ने पुलिस को संस्थान और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की भूमिका की जांच करने का भी निर्देश दिया।

    अब 3 जुलाई को न्यायालय के आदेश के अनुपालन में बलिया के पुलिस अधीक्षक ने व्यक्तिगत हलफनामा प्रस्तुत किया, जिसमें बताया गया कि FIR दर्ज कर ली गई।

    हालांकि, जांच करने पर न्यायालय ने पाया कि कानून के अनुसार कार्यवाही करने के बजाय पुलिस अधीक्षक ने न्यायालय के 29 मई के आदेश को ही लिखित FIR मान लिया था। दूसरे शब्दों में न्यायालय के उसी आदेश को सीधे चिक FIR के रूप में इस्तेमाल किया गया, जिसमें एक निजी शिकायतकर्ता को शिकायतकर्ता के रूप में दर्शाया गया था।

    इस तथ्य पर 'आश्चर्य' व्यक्त करते हुए हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक के इस कृत्य को 'प्रथम दृष्टया अवज्ञाकारी' और 'स्पष्टतः अवैध' करार दिया।

    अतः, न्यायालय ने संबंधित पुलिस अधीक्षक से इस प्रकार स्पष्टीकरण मांगा:

    "बलिया के पुलिस अधीक्षक ओमवीर सिंह इस न्यायालय के आदेश को लिखित FIR मानकर उसे जांच प्रपत्र में दर्ज करने और जांच प्रपत्र में निजी शिकायतकर्ता को सूचक के रूप में दर्शाने की अवज्ञाकारी कार्रवाई के संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करें।"

    न्यायालय के आदेश पर FIR दर्ज करने की प्रक्रिया के संबंध में न्यायालय ने कहा कि पुलिस अधीक्षक को अब तक यह पता चल जाना चाहिए कि यदि यह न्यायालय FIR दर्ज करने का निर्देश भी देता है तो न्यायालय का एक अधिकारी ही निर्देशों का पालन करता है और पुलिस को लिखित सूचना देता है।

    इस बात पर ज़ोर देते हुए,

    "न्यायालय के आदेश को लिखित प्रथम सूचना नहीं माना जा सकता।"

    खंडपीठ ने संबंधित पुलिस अधीक्षक को एक सप्ताह के भीतर इस मुद्दे पर अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

    अब इस मामले की सुनवाई सोमवार, 14 जुलाई को होगी।

    Case title - Devendra Kumar Singh vs. State Of U.P. And 4 Others

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