BREAKING | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमीन का पट्टा रद्द करने को चुनौती देने वाली जौहर यूनिवर्सिटी की याचिका खारिज की

Shahadat

18 March 2024 11:25 AM GMT

  • BREAKING | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमीन का पट्टा रद्द करने को चुनौती देने वाली जौहर यूनिवर्सिटी की याचिका खारिज की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य के रामपुर जिले में मौलाना मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी की भूमि के पट्टे को रद्द करने को दी गई चुनौती खारिज कर दी। यूनिवर्सिटी ट्रस्ट की रिट याचिका में यूनिवर्सिटी से जुड़े लीज डीड रद्द करके जमीन जब्त करने के उत्तर प्रदेश सरकार के कदम को चुनौती दी गई।

    राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री आजम खान के नेतृत्व वाले मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट को पट्टे की शर्तों के उल्लंघन का हवाला देते हुए 3.24 एकड़ भूमि का पट्टा रद्द कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया कि मूल रूप से एक शोध संस्थान के लिए आवंटित भूमि पर स्कूल चल रहा था। नियमानुसार लीज रद्द होने के बाद जमीन का कब्जा स्वत: सरकार के पास चला जाता है।

    जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने दिसंबर 2023 में 'तत्काल प्रवेश' के लिए जौहर यूनिवर्सिटी ट्रस्ट की याचिका सूचीबद्ध करने के कुछ दिनों बाद दोनों पक्षों को सुनने के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसले को सुरक्षित रखते हुए खंडपीठ ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य सरकार शैक्षणिक वर्ष 2023-24 के अंत तक रामपुर पब्लिक स्कूल के बच्चों के लिए हेल्पलाइन चालू रखेगी।

    गौरतलब है कि मामले में सुनवाई के दौरान एडवोकेट जनरल ने इस आधार पर बिना कारण बताओ नोटिस के पट्टा रद्द करने का बचाव किया कि जनहित सर्वोपरि है। यह तर्क दिया गया कि उच्च शिक्षा (अनुसंधान संस्थान) के उद्देश्य से अधिग्रहित की गई भूमि का उपयोग रामपुर पब्लिक स्कूल चलाने के लिए किया जा रहा है।

    तत्कालीन कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आजम खान द्वारा सरकारी जमीन के खुलेआम दुरुपयोग के आधार पर पट्टा रद्द करने का बचाव करते हुए एडवोकेट जनरल अजय कुमार मिश्रा ने आरोप लगाया कि यूपी के पूर्व मंत्री आजम खान कैबिनेट मंत्री रहते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री का पद संभाल रहे हैं, उन्होंने इसके अध्यक्ष की हैसियत से ट्रस्ट का नेतृत्व किया, जो हितों का टकराव है।

    ट्रस्ट की ओर से पेश होते हुए सीनियर एडवोकेट अमित सक्सेना ने यूपी सरकार द्वारा लीज डीड रद्द करने और संपत्ति को सील करने में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप लगाया।

    ट्रस्ट का प्राथमिक तर्क यह है कि अनुसंधान संस्थान के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले समिति के किसी भी सदस्य या ट्रस्ट को कोई नोटिस नहीं दिया गया। याचिकाकर्ता ट्रस्ट को विशेष जांच दल की रिपोर्ट कभी नहीं दी गई।

    इसके अलावा, यह भी तर्क दिया गया कि यदि याचिकाकर्ता को उस सामग्री के साथ सामना कराया गया, जिस पर पट्टा रद्द करने और परिसर को सील करने के लिए भरोसा किया गया तो वह पर्याप्त रूप से जवाब दे सकता था। हालांकि, किसी भी सामग्री या सबूत के अभाव में और इस बात की जानकारी के अभाव में कि पट्टा क्यों रद्द किया जा रहा है, याचिकाकर्ता राज्य को जवाब दाखिल करने की स्थिति में नहीं है।

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