इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आयोग के क्रियान्वयन में पुलिस बल उपलब्ध न कराने पर SSP को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया
Shahadat
9 July 2025 5:24 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक आदेश पारित कर गोरखपुर के सीनियर पुलिस अधीक्षक (SSP) को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर यह बताने का निर्देश दिया कि उन्होंने हाईकोर्ट के आयोग का क्रियान्वयन कर रहे लघुवाद कोर्ट जज को आवश्यक पुलिस बल उपलब्ध कराने के उसके आदेश का पालन क्यों नहीं किया।
जस्टिस जे.जे. मुनीर की पीठ भानु प्रताप और अन्य द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी, जो गोरखपुर जिले के खजनी तहसील के टप्पा हवेली, ग्राम कटया में तालाब की भूमि पर कथित अतिक्रमण और अवैध निर्माण से संबंधित थी।
संक्षेप में मामला
22 मई, 2025 को पारित अपने आदेश में न्यायालय ने गोरखपुर के लघुवाद कोर्ट जज को एक आयोग नियुक्त किया, जो भूमि सर्वेक्षण की त्रि-स्थिर बिंदु विधि और सम्पूर्ण स्टेशन विधि, दोनों का उपयोग करके एक भूखंड की स्थलीय जांच करेगा।
आयुक्त को लोक निर्माण विभाग के तकनीकी विशेषज्ञ, एक सर्वेक्षण अमीन और SSP द्वारा पर्याप्त संख्या में पुलिस बल उपलब्ध कराया जाना था, जिससे आयोग का कार्य सुचारू रूप से संपन्न हो सके।
हालांकि, जब आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई तो हाईकोर्ट यह देखकर 'हैरान' रह गया कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के माध्यम से स्पष्ट और समय पर सूचित किए जाने के बावजूद, SSP, गोरखपुर, इस अभियान के लिए कोई पुलिस सहायता प्रदान करने में विफल रहे।
जज की रिपोर्ट का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा:
"माननीय हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद, SSP, गोरखपुर ने पुलिस बल उपलब्ध नहीं कराया, जबकि आदेश की प्रति मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, गोरखपुर के माध्यम से SSP गोरखपुर को भेजी गई... जब मैं घटनास्थल पर पहुंचा तो लोग और ग्रामीण मौजूद थे। उनमें से कुछ ने बहस और टकराव किया, लेकिन मेरी चतुराईपूर्ण बातचीत के कारण वे शांत हो गए। उसके बाद सर्वेक्षण आयोग शुरू हुआ और सफलतापूर्वक पूरा हुआ।"
एकल जज ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि पुलिस बल की अनुपस्थिति ने संबंधित जज को खतरे में डाल दिया था, जिससे उन्हें ग्रामीणों के टकराव के सामने "खुद की रक्षा करने और अपनी ही कुशलता पर निर्भर रहने" के लिए मजबूर होना पड़ा।
अदालत ने आगे टिप्पणी की कि SSP द्वारा अदालत के निर्देश का पालन न करना प्रथम दृष्टया "सबसे गैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार" के समान था।
अदालत ने आगे कहा कि यदि जज पर उनके आदेश के निष्पादन के दौरान हमला किया गया होता तो परिणाम "कहीं अधिक गंभीर" हो सकते थे।
हालांकि सरकारी वकील ने SSP के आचरण को समझाने का प्रयास किया, लेकिन अदालत ने उनके बयान को "असंगत" पाया और इसे "भ्रमित और भ्रामक" बताया।
तदनुसार, अदालत ने SSP की व्यक्तिगत उपस्थिति का निर्देश दिया।
इसने इस प्रकार आदेश दिया:
"हम गोरखपुर के सीनियर पुलिस अधीक्षक को 16.07.2025 को दोपहर 2 बजे हमारे समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने और उन परिस्थितियों की व्याख्या करने का आदेश देना उचित समझते हैं, जिनमें सिविल जज को हमारे दिनांक 22.05.2025 के आदेशों के अनुपालन में उनके द्वारा तैनात पुलिस बल की आवश्यक सहायता के बिना ही आयोग का गठन करना पड़ा।"
बता दें, उक्त सार्वजनिक तालाब की भूमि पर अतिक्रमणों के अस्तित्व से संबंधित तथ्यों पर विवाद को देखते हुए हाईकोर्ट द्वारा आयोग का गठन किया गया।
इससे पहले, हाईकोर्ट ने तालाब की भूमि पर अवैध अतिक्रमणों को हटाने का निर्देश दिया था। उसके अनुसरण में जिला मजिस्ट्रेट ने दावा किया था कि पूर्व में निर्मित पानी की टंकी के दोनों खंभे और अतिक्रमण हटा दिया गया। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि प्रतिवादी नंबर 6 ने उस भूमि पर बने अपने घर को नहीं हटाया, जो एक तालाब है।
इन परस्पर विरोधी दावों के आलोक में न्यायालय ने स्थानीय जांच और सर्वेक्षण के लिए एक आयोग गठित करके तथ्यात्मक स्थिति का स्वतंत्र रूप से सत्यापन करना आवश्यक समझा तथा आयुक्त को उक्त भूखंड की पहचान करने, यह निर्धारित करने का निर्देश दिया कि भूखंड के कितने क्षेत्र पर अतिक्रमण किया गया तथा यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या छठा प्रतिवादी उसी भूखंड पर अतिक्रमण कर रहा है।
Case title - Bhanu Pratap And 3 Others vs. State Of Uttar Pradesh And 6 Others