यूपी पुलिस की नाकामी के बाद हाईकोर्ट का केंद्र सरकार से सवाल- क्या केंद्रीय एजेंसियां ​​1984 की अपील से जुड़े 'फरार' व्यक्ति का पता लगा सकती हैं?

Shahadat

19 Dec 2025 10:19 AM IST

  • यूपी पुलिस की नाकामी के बाद हाईकोर्ट का केंद्र सरकार से सवाल- क्या केंद्रीय एजेंसियां ​​1984 की अपील से जुड़े फरार व्यक्ति का पता लगा सकती हैं?

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (18 दिसंबर) को केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) से पूछा कि क्या 1984 के आपराधिक अपील से जुड़े एक दोषी को गिरफ्तार करने का काम केंद्रीय एजेंसियों को सौंपा जा सकता है।

    जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस संजीव कुमार की बेंच ने यह आदेश तब दिया, जब उन्होंने पाया कि उत्तर प्रदेश पुलिस मौलाना खुर्शीद जमाल कादरी को गिरफ्तार नहीं कर पाई, जिसे कोर्ट ने "निश्चित रूप से एक फरार" बताया।

    यह घटनाक्रम उसी बेंच द्वारा प्रयागराज के पुलिस कमिश्नर की एक रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार करने के हफ्तों बाद आया, जिसमें कहा गया कि 41 साल पुरानी आपराधिक अपील का दोषी बिना किसी निशान के गायब हो गया।

    दरअसल, अपने पिछले आदेश में बेंच ने साफ तौर पर कहा था कि गिरफ्तारी का गैर-जमानती वारंट (NBW) केवल दो खास परिस्थितियों में ही बिना तामील के वापस किया जा सकता है: यदि फरार व्यक्ति मर गया है, या यदि वह देश छोड़कर भाग गया है। साथ ही इसे साबित करने के लिए ठोस सबूत हों।

    गुरुवार को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा अपीलकर्ता को पेश करने में लगातार नाकामी पर असंतोष व्यक्त करते हुए कोर्ट ने कहा:

    "हमारे द्वारा पारित विभिन्न आदेशों को देखते हुए जहां पहले अपीलकर्ता मौलाना खुर्शीद जमाल कादरी को राज्य पुलिस सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद गिरफ्तार नहीं कर पाई, हम निर्देश देते हैं कि भारत सरकार, गृह मंत्रालय को उसके सचिव के माध्यम से हमारे आदेशों के तहत तुरंत एक पक्ष प्रतिवादी के रूप में शामिल किया जाए।"

    कोर्ट ने डिप्टी-सॉलिसिटर जनरल, एसके पाल को केंद्रीय एजेंसियों की तैनाती के संबंध में गृह मंत्रालय से तत्काल निर्देश लेने का निर्देश दिया।

    खास तौर पर बेंच ने डिप्टी सॉलिसिटर जनरल से यह पता लगाने के लिए कहा कि क्या किसी भी केंद्रीय एजेंसी को मौलाना खुर्शीद जमाल कादरी को गिरफ्तार करने और उसे कोर्ट के सामने पेश करने का काम सौंपा जा सकता है।

    उल्लेखनीय है कि अपने पिछले आदेश में कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि यह पुलिस का कर्तव्य है कि वह पता लगाए कि न्याय से भागा हुआ व्यक्ति कहीं भी छिपा हो, भले ही उसने खुद को देश के किसी भी हिस्से में, चाहे वह कितना भी दूर क्यों न हो, छिपा लिया हो।

    बेंच ने साफ किया कि पुलिस सिर्फ यह दावा नहीं कर सकती कि फरार व्यक्ति नहीं मिल रहा है। इसमें कहा गया कि एक बिना तामील किया गया वारंट तभी स्वीकार्य है, जब वह व्यक्ति मर चुका हो और सभी इंसानी अधिकार क्षेत्र से बाहर हो, या अगर इस बात का पक्का सबूत हो कि वह देश छोड़कर भाग गया।

    जैसा कि बताया गया, यह मामला 1984 का एक क्रिमिनल अपील का है। एकमात्र अपीलकर्ता-दोषी (मौलाना खुर्शीद जमाल कादरी), जो प्रयागराज में प्राइवेट ट्यूटर के तौर पर काम करता था, उसको अप्रैल 1984 में ज़मानत दी गई।

    हालांकि, दशकों बाद जब अपील सुनवाई के लिए लिस्ट हुई तो वह कहीं नहीं मिला।

    इस साल की शुरुआत में कोर्ट ने उसके खिलाफ CrPC की धारा 82 (फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा) के तहत कार्यवाही शुरू की। नवंबर, 2025 तक चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने बताया कि मुजफ्फरपुर और दरभंगा (बिहार) में पूछताछ करने पर भी उसका पता नहीं चल पाया।

    2 दिसंबर, 2025 को कार्यवाही के दौरान, पुलिस कमिश्नर, प्रयागराज ने रिकॉर्ड पर एक कंप्लायंस रिपोर्ट जमा की, जिसमें अपीलकर्ता का पता लगाने के लिए किए गए प्रयासों के बारे में बताया गया।

    रिपोर्ट में कहा गया कि अपीलकर्ता का पहला ज़मानती 2006 में मर गया और दूसरा भी काफी समय पहले गुज़र गया।

    अपीलकर्ता के ठिकाने के बारे में पुलिस रिपोर्ट में कहा गया कि दर्ज पतों पर आपराधिक अपीलकर्ता की मौजूदगी या निवास के बारे में कोई उपयोगी जानकारी नहीं मिल पाई।

    रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि अपीलकर्ता पहले हंडिया (प्रयागराज) में शिकायतकर्ता के घर के एक कमरे में रहता था और मुस्लिम बच्चों को अरबी पढ़ाता था, लेकिन प्रयागराज में उसका कोई स्थायी पता नहीं था।

    रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि स्थानीय लोगों ने बताया कि वह मूल रूप से बिहार का रहने वाला था। फिर भी मुजफ्फरपुर और कौशांबी में पुलिस टीमों को भेजने और स्थानीय अधिकारियों, जिसमें नगर पंचायत सिराथू के चेयरमैन भी शामिल थे, उनसे पूछताछ करने के बावजूद, उसके मौजूदा ठिकाने या उसके जीवित होने की स्थिति के बारे में भी कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल पाया।

    रिपोर्ट देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि, हालांकि पुलिस ने कोशिशें की हैं, लेकिन वह उन कोशिशों से संतुष्ट नहीं है।

    Case title - Maulana Khursheed Jamil And Others vs. State of U.P.

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