अगर बलात्कार के मामले में डीएनए प्रोफ़ायलिंग नहीं किया जाता या उसे रोका जाता है तो अभियोजन पर इसके विपरीत परिणाम होंगे : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
15 Dec 2018 7:36 PM IST
एक महत्त्वपूर्ण फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर बलात्कार के किसी मामले में डीएनए प्रोफ़ायलिंग नहीं की गई है या निचली अदालत में उसे रोका गया है तो अभियोजन पर उसका प्रतिकूल असर होगा।
“हम यह नहीं कह रहे हैं कि अगर डीएनए प्रोफ़ायलिंग नहीं की गई तो अभियोजन के मामले को साबित नहीं किया जा सकता लेकिन हमारी राय में अगर किसी मामले में डीएनए प्रोफ़ायलिंग नहीं की गई है या निचली अदालत में उसे रोका है तो अभियोजन पर इसका विपरीत प्रभाव होगा”, न्यायमूर्ति एमबी लोकुर,न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने राजेंद्र प्रह्लादराव वासनिक बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में अपने फ़ैसले में कहा।
इस मामले में आरोपी के शरीर से नमूना डीएनए जाँच किया गया और उसको डीएनए प्रोफ़ायलिंग के लिए भेजा गया पर इसकी जाँच रिपोर्ट निचली अदालत में पेश नहीं की गई।
इस मुद्दे पर गम्भीर होते हुए पीठ ने कहा, “…हमारी राय में इस मामले में अपीलकर्ता को मौत की सज़ा देने के फ़ैसले को बरक़रार रखना ख़तरनाक होगा।”
पीठ ने कहा, की सीरपीसी की धारा 53-A के तहत यह ज़रूरी नहीं है पर इस पर सकारात्मक निर्णय हो…अगर इसके पर्याप्त आधार हैं तो 53-A(2) के तहत चिकित्सा जाँच ज़रूर कराई जानी चाहिए जिसमें आरोपी की जाँच और डीएनए प्रोफ़ायलिंग के लिए जो नमूना लिया गया है उसका वर्णन पेश किया जाना चाहिए। अगर इस पर दूसरे तरीक़े से देखें तो अगर इस बात को मानने का पर्याप्त आधार है कि आरोपी की जाँच से अपराध को अंजाम देने के बारे में कोई प्रमाण मिलने वाला नहीं है तो उस स्थिति में आरोपी के ख़िलाफ़ बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के अपराध में चार्जशीट भी दाख़िल किए जाने की कोई सम्भावना नहीं है।”
कोर्ट ने कहा कि फ़ोरेंसिक विज्ञान और वैज्ञानिक जाँच में काफ़ी तकनीकी सुधार हुआ है इसका भरपूर उपयोग किया जाना चाहिए और जाँच के पुराने तरीक़े से पिंड छुड़ाना चाहिए।
“अभियोजन का डीएनए साक्ष्य का कोर्ट में पेश नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण होगा विशेषकर तब जब डीएनए प्रोफ़ायलिंग की सुविधा देश में उपलब्ध है। अभियोजन को इसका पूरा लाभ उठाने की सलाह दी जाती है…हम यह नहीं कह रहे हैं कि अगर डीएनए प्रोफ़ायलिंग नहीं होती है तो अभियोजन मामले को साबित नहीं किया जा सकता पर हमारी यह निश्चित राय है कि उस स्थिति में जहाँ डीएनए प्रोफ़ायलिंग नहीं की गई है या फिर उसे निचली अदालत से रोक रखा गया है, तो इसका अभियोजन पर प्रतिकूल असर होगा,” कोर्ट ने कहा।