CBI Vs CBI : आलोक वर्मा पर मैराथन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

LiveLaw News Network

6 Dec 2018 5:14 PM GMT

  • CBI Vs CBI : आलोक वर्मा पर मैराथन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

    पीठ ने पूछा कि जब जुलाई में ही पता चल गया था तो सरकार को चयन समिति के पास जाने में क्या दिक्कत थी ?

    CBI Vs CBI मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीन घंटे की सुनवाई के बाद सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

    चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने केंद्र, CVC, CBI, आलोक वर्मा, कॉमन कॉज और विपक्ष में नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से दलीलें सुनने के बाद ये फैसला सुरक्षित रखा।

    हालांकि सुनवाई शुरु होते ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने CVC की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि जब जुलाई में ही निदेशक व नंबर दो अस्थाना के बीच टकराव का मामला सामने आ गया था तो सरकार को चयन समिति के पास जाने में क्या परेशानी थी ? ये ऐसा मामला नहीं है कि रातोंरात ऐसे हालात बन गए। चीफ जस्टिस ने कहा कि  सरकार के कार्य संस्थान के हित में होने चाहिए।

    इस पर तुषार ने कहा कि दो वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी एक दूसरे के खिलाफ हो गए थे। मामलों की जांच करने के बजाए वे एक-दूसरे पर रेड कर रहे थे। एक-दूसरे के खिलाफ FIR दर्ज कर रहे थे।वे सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते थे और ये हैरान करने वाली स्थिति थी। इस अप्रत्याशित और असाधारण स्थिति में सीवीसी ने तय किया कि आलोक वर्मा को एजेंसी कामकाज से दूर रखा जाए जब कि जांच पूरी ना हो जाए। उन्होंने कहा कि दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट की धारा 4(1) के तहत CVC भ्र्ष्टाचार के आरोपों में सीबीआई को नियंत्रित करती है।

    वहीं इस दौरान आलोक वर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील फली नरीमन ने कहा कि कि ये ट्रांसफर के समान ही हैं क्योंकि वर्मा के अधिकार अंतरिम निदेशक को दिए गए हैं। दो साल के कार्यकाल का मतलब ये नहीं कि निदेशक सिर्फ विजिटिंग  कार्ड रखे लेकिन उनके पास शक्तियां ना हों।

    हालांकि चीफ जस्टिस ने ये भी कहा कि हमारी चिंता ये है कि क्या दो साल के कार्यकाल का नियम निदेशक पर अनुशासनात्मक कार्रवाई से भी ऊपर है। क्या दो साल उन्हें कोई छू नहीं सकता। सीवीसी की तरह सीबीआई निदेशक को सरंक्षण क्यों नहीं दिया गया ?

    इस दौरान कॉमन कॉज की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे मे कहा कि सीवीसी को शिकायत अगस्त मिली थी और कार्रवाई अक्तूबर में हुई। इसका मतलब ये है कि वर्मा को सरकार ने कुछ करने से रोकने के लिए हटाया।

     वहीं खड़गे के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल  ने कहा कि सीवीसी सिर्फ भ्रष्टाचार के मामले देखता है जबकिसीबीआई अन्य केस भी देखता है। तो फिर सीबीआई के प्रशासन की जिम्मेदारी  निदेशक की है। भ्रष्टाचार निवारण के मामलों में निगरानी की जिम्मेदारी सीवीसीकी है। तो बाकी मामलों में निदेशक का अधिकार है।

     सीबीआई निदेशक जैसे ही ट्रांसफर या छुट्टी पर भेजा जाता है वैसे ही वो सारे अधिकारों व सरंक्षण से वंचित हो जाता है।

    Next Story