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1984 सिख विरोधी दंगा : 34 साल बाद कोर्ट ने सुनाई एक को मौत की सजा और दूसरे को उम्रकैद

LiveLaw News Network
21 Nov 2018 6:42 AM GMT
1984 सिख विरोधी दंगा : 34 साल बाद कोर्ट ने सुनाई एक को मौत की सजा और दूसरे को उम्रकैद
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1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में दिल्ली की एक अदालत ने दो दोषियों को सजा सुनाते हुए एक दोषी को मौत की सजा जबकि दूसरे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडे ने मंगलवार को तिहाड़ जेल में फैसला सुनाते हुए दक्षिणी दिल्ली में दो सिखों की हत्या के मामले में दोषी यशपाल सिंह को मौत की सजा और नरेश सहरावत को उम्रकैद की सजा सुनाई। दोनों दोषियों पर 35 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है।

 पिछली सुनवाई में 14 नवंबर को अदालत ने दोनों को हत्या दोषी करार दिया था और सजा पर बहस के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। 34 साल पुराने सिख दंगों से जुड़े किसी मामले में पहली बार किसी दोषी को मौत की सजा सुनाई गई है।

1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों में 1 नवंबर 1984 को दक्षिणी दिल्ली के महिपालपुर में दो सिखों हरदेव सिंह और अवतार सिंह की हत्या कर दी गई थी। मृतक हरदेव सिंह के भाई संतोष सिंह की शिकायत पर यह मामला दर्ज किया गया था। दिल्ली पुलिस ने सबूतों के अभाव में इस मामले को 1994 में बंद कर दिया लेकिन दंगों की जांच के लिए 2015 में गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने इस मामले की फिर से जांच की।यह पहला मामला है जिसमें एसआईटी की जांच के बाद आरोपी को दोषी ठहराया गया था।

अभियोजन ने इन दंगों को नरसंहार व जघन्य बताते हुए दोषियों को मौत की सजा देने की मांग थी तो बचाव पक्ष ने इस उम्र, बीमारी और कोई साजिश ना होने के कारण बताते हुए  सजा में नरमी बरतने का आग्रह किया था।

कोर्ट के समक्ष अभियोजन की ओर से पेश वकील ने कहा कि इन आरोपियों ने योजनाबद्ध तरीके से धर्म विशेष के लोगों का निशाना बनाया। उनके घर व दुकानों को जला दिया। पांच सिखों को एक मकान से नीचे फेंक दिया गया।इससे दो लोगों की मौत हो गई और तीन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। यह एक तरह से नरसंहार था और यह अपने आप में जघन्यतम मामला है। इस मामले में दोषियों को मौत की सजा दी जाये ताकि समाज में एक कड़ा संदेश जाए।

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