गुजरात दंगों में मोदी को क्लीन चिट के खिलाफ 26 नवंबर को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट , SIT ने तीस्ता का किया विरोध
LiveLaw News Network
19 Nov 2018 9:57 PM IST
गुजरात में 2002 गोधरा कांड के बाद हुए दंगों की जांच करने वाली SIT के गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य को क्लीन चिट देने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 26 नवंबर को सुनवाई करेगा।
वहीं SIT ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को एनजीओ ‘सिटीजन फार जस्टिस एंड पीस के तौर पर याचिका दाखिल करने का विरोध किया।
SIT की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि तीस्ता इस मामले में ना तो प्रभावित हैं ना ही पहले की याचिकाकर्ता।
वहीं तीस्ता के वकील ने कहा कि वो कोर्ट की मदद करना चाहती हैं।
इस पर पीठ ने कहा कि वो याचिकाकर्ता के तौर पर नहीं बल्कि कोर्ट की सहायता कर सकती हैं।
वहीं मुकुल ने कहा कि निचली अदालत ने 400 पन्नों का आदेश जारी किया था। गुजरात हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। 15 साल हो चुके हैं और मामले को लंबा नहीं खींचा जा सकता है।
सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि पीठ इस पर 26 नवंबर को सुनवाई करेगी क्योंकि वक्त की कमी है।
SIT की मोदी व अन्य नेताओं और नौकरशाहों को क्लीन चिट को बरकरार रखने के गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को जाकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। वकील अपर्णा भट्ट के माध्यम से दाखिल याचिका में मोदी व अन्य के खिलाफ जांच कराने की मांग की गई है।
गौरतलब है कि पांच अक्तूबर 2017 को गुजरात हाईकोर्ट ने कहा था कि गुजरात दंगों की दोबारा जांच नहीं होगी। हाईकोर्ट ने जाकिया जाफरी की इन दंगों के पीछे बड़ी साजिश वाली बात से भी इनकार किया था।
दरअसल हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के संबंध में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को विशेष जांच दल द्वारा दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी। निचली अदालत ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था।
दंगों में मारे गए पूर्व सांसद अहसान जाफरी की पत्नी जाकिया और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ ‘सिटीजन फार जस्टिस एंड पीस’ ने दंगों के पीछे ‘‘बड़ी आपराधिक साजिश’’ के आरोपों के संबंध में पीएम मोदी और अन्य को एसआईटी द्वारा दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखने के मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ आपराधिक याचिका दायर की थी लेकिन हाईकोर्ट ने भी इस याचिका को खारिज कर दिया था।