Begin typing your search above and press return to search.
संपादकीय

आपराधिक सुनवाइयों के बारे में निचली अदालतों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए दिशानिर्देश [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
4 Nov 2018 11:13 AM GMT
आपराधिक सुनवाइयों के बारे में निचली अदालतों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए दिशानिर्देश [निर्णय पढ़ें]
x

सीआरपीसी की धारा 231 (2) के तहत किसी आवेदन पर निर्णय लेने के दौरानअभियुक्त के अधिकारों के बीच एक बनाया जाना चाहिए”

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आपराधिक मुकदमे के संदर्भ में किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए इस बारे में एक दिशानिर्देश जारी किया।

केरल उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त करते हुए न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 231 (2) के तहत गवाह से पूछताछ को स्थगित करने के किसी आवेदन पर गौर करने के दौरान आरोपी के अधिकार और अभियोजन पक्ष के विशेषाधिकार के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए।

केरल राज्य बनाम राशिद  मामले में केरल उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ आवेदन पर गौर करते हुए यह बात कही। हाईकोर्ट ने गवाहों से पूछताछ को स्थगित करने की अपील को अस्वीकार करने के निचली अदालत के फैसले निरस्त कर दिया था। उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि किसी विशेष गवाह की जांच होने तक  कुछ गवाहों से पूछताछ स्थगित कर दी जाए।

राज्य की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पाया कि उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को पलटने का कोई कारण नहीं दिया।

खंडपीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 231 (2) के तहत आवेदन करने के दौरान निम्नलिखित कारकों पर गौर किया जाना चाहिए :




  • गवाह/गवाहों पर अनुचित प्रभाव की आशंका;

  • गवाह/गवाहों को धमकी देने की आशंका;

  • यह आशंका कि अगर स्थगन नहीं दिया गया तो गवाह एक ही तरह के तथ्यों के आधार पर ऐसी रटी-रटाई बातें कह सकता है जो अभियोजन की बचाव रणनीति को बिगाड़ेगा;

  • उस गवाह/गवाहों की स्मृति हानि की आशंका जिससे पूछताछ हो चुकी हैतथा

  • सीआरपीसी की धारा 309 (1) के संदर्भ मेंअगर मुल्तवी की अनुमति दी गई तो मुकदमे में देरी हो सकती है और गवाह अनुपलब्ध हो सकते हैं।


कुछ उच्च न्यायालय के फैसलों का जिक्र करते हुएखंडपीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 231 (2) के तहत न्यायिक विवेकानुसार आधार के लिए कोई गैर लचीला फॉर्मूला नहीं हो सकता है। "विवेक का प्रयोग -मामले के आधार पर होना चाहिए। यह पता लगाना जरूरी है कि अगर आवेदन को खारिज कर दिया जाता है तो क्या स्थगन चाहने वाले के खिलाफ कहीं पक्षपात की धारणा तो नहीं बनेगी।

दिशानिर्देश




  • अभियोग निर्धारण के बाद मामलों का विस्तृत कैलेंडर तैयार किया जाना चाहिए;

  • केस-कैलेंडर में उन तिथियों को स्पश उल्लेख होना चाहिए कि मुख्य गवाह और अन्य गवाहों से पूछताछ और पार परीक्षा (यदि आवश्यक हो) में परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए;

  • एक ही विषय-वस्तु पर विभिन्न गवाहों से पूछताछ आसपास की अवधि के दौरान निर्धारित हो;

  • सीआरपीसी की धारा231 (2) के तहत स्थगित करने का अनुरोध केस कैलेंडर की तैयारी से पहले किया जाना चाहिए;

  • स्थगित के अनुरोध का पर्याप्त आधार होना चाहिए;

  • अगर गवाहों से पूछताछ को स्थगित किया गया है तो निचली अदालत को उस संभावित तारीख का उल्लेख करना चाहिए जब उससे दुबारा पूछताछ की जा सकती है;

  • उपर्युक्त दिशानिर्देशों के अनुसार तैयार केस कैलेंडर का सख्ती से पालन किया जाना चाहिएजब तक कि ऐसा नहीं करना बिल्कुल आवश्यक न होतथा

  • जिन मामलों में निचली अदालतों ने गवाहों से पूछताछ को स्थगित करने के अनुरोध को मान लिया हैगवाहों को अनुचित रूप से प्रभावित करनेउत्पीड़न या धमकाये जाने की की किसी आशंका से बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाने जाने चाहिए।


 

Next Story