जो बहुत दृढ़ चरित्र की महिला नहीं है उसे भी किसी के साथ संभोग करने से इनकार का अधिकार है, सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक बलात्कार मामले में सजा बरकरार रखा [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
4 Nov 2018 4:18 PM IST
“ऐसी महिला के साक्ष्य को केवल इसलिए नहीं दरकिनार नहीं किया जा सकता क्योंकि दृढ़ चरित्र वाली महिला नहीं है”।
अगर यह मान भी लें कि महिला दृढ़ चरित्र वाली नहीं है, उसे किसी के भी साथ यौन संबंध को नकारने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक बलात्कार मामले में चार लोगों की सजा को बरकरार रखते हुए यह बात कही।
पृष्ठभूमि
आरोपी ने निचली अदालत को सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपने बयान में कहा था कि इस महिला का चरित्र खराब था और वह वेश्यावृत्ति करती थी। हालांकि उन्होंने अदालत से कहा कि इस महिला के खिलाफ उन्होंने शिकायत दर्ज कराई थी, पर अदालत के समक्ष इस बारे में कुछ भी नहीं बताया गया था। निचली अदालत ने उन्हें महिला के बयान के आधार पर दोषी ठहराया।
पर उच्च न्यायालय ने आरोपियों को बरी कर दिया था।
न्यायमूर्ति आर बनुमती और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को अपील के स्तर पर पेश किए गए तथ्यों पर गौर नहीं करना चाहिए था। पीठ ने कहा, “सीआरपीसी की धारा 391 तहत मिले अधिकार का प्रयोग सावधानी से की जानी है। अदालत किसी अतिरिक्त साक्ष्य पर तभी गौर कर सकता है जब सीआरपीसी की धारा 391 के तहत इसको पहले रेकॉर्ड किया जा चुका है। किसी कमी को पाटने के लिए अपीली अदालत के समक्ष किसी भी पक्ष द्वारा पेश किसी भी सामग्री पर गौर नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को अपील के स्तर पर इन अतिरिक्त सामग्रियों पर गौर नहीं करना चाहिए था और उस महिला के साक्ष्यों को इस तरह नजरंदाज नहीं करना चाहिए था।
पीठ ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया। निचली अदालत ने कहा था कि अगर महिला बदचलन भी है तो भी आरोपियों को उनकी सहमति के खिलाफ बलात्कार करने का कोई अधिकार नहीं है ।
इसके बाद पीठ ने निचली अदालत के फैसले को बहाल कर दिया और हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया और निचली अदालत ने आरोपियों को दी गई10 साल की सजा की पुष्टि की।