आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें

LiveLaw News Network

27 Sep 2018 6:36 AM GMT

  • आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें

    • धारा 2(d)जो कि रेकॉर्ड के सत्यापन से जुड़ा है, ऐसे रेकॉर्ड में मेटाडाटा शामिल नहीं होगा जैसा कि आधार अधिनियम 2016 के विनियमन 26c में कहा गया है।  इस तरह, वर्तमान रूप में इस प्रावधान को निरस्त किया जाता है।

    • प्रतिवादी को निर्देश दिया जाता है कि वह गैर कानूनी प्रवासी को आधार कार्ड का लाभ नहीं मिले यह सुनिश्चित करे।

    • आधार से संबन्धित डेटा छह माह से अधिक समय तक के लिए नहीं रखा जाएगा। इस तरह आधार अधिनियम के विनियमन 27 को भी निरस्त किया जाता है।

    • अगर अधिनियम की धारा 29 के तहत सूचना की साझेदारी पर प्रतिबंध है। अगर इसके तहत साझेदारी का कोई प्रावधान किया जाता है तो उसको चुनौती दी जा सकती है।

    • धारा 33(1) सूचना को सार्वजनिक करने पर प्रतिबंध लगाता है। इस प्रावधान को इस स्पष्टता से पढ़ा जाए कि जिस व्यक्ति के बारे में सूचना को जारी करने की बात की गई है उसे सुनवाई का मौका दिया जाएगा। अगर इस तरह का आदेश पास होता है तो इस व्यक्ति को इसे चुनौती देने का अधिकार होगा।

    • अगर राष्ट्रिय सुरक्षा को देखते हुए सूचना धारा 33(2) के तहत साझा की जानी है तो यह अधिकार संयुक्त सचिव के रैंक का ही कोई अधिकारी करे सकता है। किसी भी तरह के संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए इसके साथ एक न्यायिक अधिकारी ( इसमें हाईकोर्ट के जज को प्राथमिकता दी जाएगी) को जोड़ा जाएगा। इस तरह धारा 33(2) को वर्तमान रूप में निरस्त किया जाता है ताकि बाद में एक उपयुक्त प्रावधान इसमें जोड़ा जा सके।

    • धारा 57 का दुरुपयोग हो सकता है। किसी भी कार्य के लिए किसी व्यक्ति की पहचान बनाने में इसका दुरुपयोग हो सकता है। इस तरह के प्रावधान को कानून का समर्थन होना चाहिए। जब भी इस तरह का कोई कानून बनाया जाता है तो इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। इस तरह के प्रावधान जो किसी निगम और व्यक्तियों को आधार सत्यापन की अनुमति देते हैं और वह भी इस व्यक्ति और निगम के बीच हुए करार के आधार पर तो यह निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। इसलिए इस धारा के इस हिस्से को असंवैधानिक करार दिया जाता है।

    • धारा 59 सहित आधार के अन्य प्रावधानों को वैध माना गया।


    आधार निगरानी करने वाले राज्य का निर्माण नहीं करता

    न्यायमूर्ति सिकरी जिन्होंने बहुमत का फैसला लिखा, कहा कि आधार की संरचना और इसके प्रावधान ऐसे नहीं हैं जो आधार को निगरानी करने वाले राज्य में तब्दील करता है। जजों ने यह भी कहा कि मात्र बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय आंकड़ों के आधार किसी व्यक्ति का प्रोफ़ाइल तैयार करना मुश्किल होगा और इससे बचाव के प्रावधान किए गए हैं।

    बहुमत के फैसले में कहा गया है –

    • सत्यापन का रेकॉर्ड छह माह से ज्यादा समय के लिए नहीं रखे जाएंगे।

    • मेटाडेटा की अनुमति नहीं होगी।

    • आधार अधिनियम की धारा 57 असंवैधानिक है।

    • डाटा की सुरक्षा के लिए न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्णा समिति के सुझावों में उपयुक्त संशोधन कर एक मजबूत कानून सरकार लाए।


    निजता का मामला

    कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति से जुड़ा हर मामला उसके निजता के अधिकार से नहीं जुड़ा होता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि –

    धारा 7 में जिन “लाभों” और “सेवाओं” की चर्चा की गई है वे किस न किसी तरह की सब्सिडी यानी सरकार की कल्याणकारी से जुड़े होंगे । यह सिर्फ इन्हीं लाभों से जुड़ा होगा और जिसके लिए धन भारत के समेकित निधि से आता है।

    • सीबीएसई, एनईईटी, जेईई, यूजीसी आदि की परीक्षाओं में आधार जरूरी नहीं होगा क्योंकि ये धारा 7 के तहत नहीं आते और इनको किसी कानून की सम्मति नहीं मिली हुई है।


    बच्चे और आधार

    कोर्ट ने कहा -

    • बच्चों का आधार उनके माँ-बाप की अनुमति के बिना नहीं बनाए जाएंगे ।

    • वयस्क होने पर बच्चों को आधार से बाहर आने का विकल्प होगा।

    • स्कूलों में प्रवेश सेवा नहीं है इसलिए 6 से 14 साल के बच्चों को स्कूलों में प्रवेश के लिए आधार अनिवारी नहीं होगा।

    • अगर किसी बच्चे के पास आधार नहीं है तो इस आधार पर उसे किसी भी लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।


    आधार के धन विधेयक के रूप में पास करने पर आपत्ति
    नहीं

     पीठ ने आधार अधिनियम को धन विधेयक के रूप में पास करने को सही बताया है और वह सीमित सरकार, अच्छा प्रशासन और संवैधानिक विश्वास की परिकल्पना पर खड़ा उतरता है। कोर्ट ने कहा कि धारेया 7 के तहत धन विधेयक होने की अर्हता वह पूरी करता है।

    आधार और पैन कार्ड को जोड़ना सही, मोबाइल को जोड़ना असंवैधानिक

    कोर्ट ने पैन कार्ड को आधार से लिंक करने को सही ठहराया। पर बैंक खाते को आधार के साथ आवश्यक रूप से लिंक करना गैर कानूनी है।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने न्यायमूर्ति सिकरी के फैसले से लगभग सहमति जताई।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा -

    • आधार अधिनियम के तहत जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक सूचना देना निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है।

    • डाटा का संग्रहण, उसका भंडारण और प्रयोग मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।

    • आधार अधिनियम निगरानी करने वाले राज्य का निर्माण नहीं करता।

    • आधार में डाटा के सुरक्षा की व्यवस्था है।

    • आधार की धारा 7 संवैधानिक है।

    • आधार अधिनियम की धारा 29 संवैधानिक है और इसको निरस्त करने की जरूरत नहीं है।

    • अधिनियम की धारा 33 भी गैर संवैधानिक नहीं है क्योंकि इसके तहत पुलिस जांच के लिए आधार डाटा देने का प्रावधान है।

    • 23 मार्च 2017 को जारी सर्कुलर को असंवैधानिक होने के कारण निरस्त किया जाता है।

    • आधार अधिनियम को धन विधेयक के रूप में पास करना सही है। आधार विधेयक को धन विधेयक करार देने का अध्यक्ष का निर्णय न्यायिक समीक्षा के दायरे में।

    • धारा 139AA मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता।

    • आधार अधिनियम रिट याचिका नंबर 494, 2012 के तहत पास अन्तरिम आदेश का उल्लंघन नहीं करता।


    Next Story