एमएसीटी दावा : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हाईकोर्ट को मुआवजे में बढ़ोतरी या कमी नहीं करने का कारण बताना चाहिए [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
25 Sept 2018 10:25 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की एमएसीटी आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई पर अपने आदेश में मुआवजे की राशि नहीं बढ़ाने या घटाने का कारण हाईकोर्ट को बताना चाहिए।
मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (एमएसीटी) ने एक युवक को 2462065 रुपए का दुर्घटना मुआवजा दिये जाने का आदेश दिया। इस युवक को दुर्घटना के कारण उसके spinal cord में चोट लग गई थी। दावेदार और बीमाकर्ता दोनों ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। दावेदार की अपील को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया गया जबकि बीमाकर्ता की अपील मानकर मुआवजे की राशि को घटाकर 20 लाख रुपए कर दिया।
सुदर्शन पुहन बनाम जयंत कुमार मोहंती के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दावेदार के वकील ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने प्रत्यक्षदर्शी और दस्तावेजी साक्ष्यों पर गौर किए बिना इस मामले में सिर्फ कहा : “सभी पक्षों के वकीलों की दलील पर गौर करने के बाद मुझे लगता है कि न्याय के हित में मुआवजे की राशि को 2462065 रुपए से घटाकर 20 लाख रुपए करना ज्यादा अच्छा होगा”।
इस आदेश पर गौर करते हुए न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और एस अब्दुल नज़ीर की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस बारे में कोई कारण नहीं बताया कि मुआवजे की राशि को क्यों घटाया गया और इसे क्यों बढ़ाया नहीं गया।
“...हाईकोर्ट ने दावेदार द्वारा उठाए गए मुद्दों पर गौर नहीं किया और न ही स्थापित कानूनी सिद्धांतों के आधार पर पेश किए गए साक्ष्यों पर गौर किया और बीमा कंपनी की अपील को मानते हुए मुआवजे की राशि को कम कर दिया,” कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने आगे कहा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 173 के तहत अपील आवश्यक रूप से संहिता की धारा 96 की तरह प्रथम अपील की तरह है और इसलिए हाईकोर्ट का यह कानूनी दायित्व है कि तमाम साक्ष्यों पर गौर करते हुए वह इस मामले में उठने वाले सभी मुद्दों पर अपना निर्णय दे।
पीठ ने इसके बाद इस मामले को दुबारा हाईकोर्ट में भेजकर पूछा है कि क्या इस मामले में मुआवजे को बढ़ाने का कोई मामला बंता है और अगर हाँ तो किस आधार पर।