भीमा- कोरेगांव : पुणे पुलिस के दस्तावेज की जांच करेगा सुप्रीम कोर्ट, पांचों एक्टीविस्ट की हाउस कस्टडी 19 तक बढ़ी
LiveLaw News Network
18 Sept 2018 11:51 AM IST
भीमा- कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नक्सल से जुडे होने के आरोप में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ता 19 सितंबर तक हाउस अरेस्ट रहेंगे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि वो पुणे पुलिस के दस्तावेज देखकर तय करेगा कि इस मामले की जांच SIT के आदेश दिए जाएं या नहीं।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने ये भी कहा कि अगर दस्तावेजों में आरोप संबंधी कुछ नहीं पाया गया तो केस को रद्द करने के आदेश भी जारी किए जा सकते हैं।
सोमवार को हाई वोल्टेज सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश ASG मनिंदर सिंह ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दखल का विरोध किया। उन्होंने कहा कि नक्सलवाद गंभीर समस्या है और ये देशभर में फैला है। निचली अदालत को ही ऐसे मामलों को सुनना चाहिए। तीसरे पक्ष द्वारा दाखिल याचिका पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गलत उदाहरण पेश करेगी।
वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने कहा कि पुलिस के पास उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।
वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि आरोपियों के नाम दोनों FIR में नहीं हैं। ना ही वो यलगार परिषद की बैठक में मौजूद थे। उसमें सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जज शामिल थे।
सिंघवी ने कहा वरवर पर 25 मामले दर्ज हुए जिसमें सभी में वो बरी हो गए। गोंजाल्विस पर 18 मामले हुए जिनमें 17 में वो बरी हो गए। एक मामले में सजा हुई जिसमें अपील लंबित है।इसलिए इसकी जांच SIT से होनी चाहिए। पीठ ने कहा कि वो 19 सितंबर को सुनवाई करेगी।
गौरतलब है कि 6 सितंबर को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस पर सवाल उठाए थे और नाराजगी जताई थी।
वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने कहा था कि कि आरोपियों के खिलाफ सबूत हैं और उन्हें हाउस अरेस्ट नहीं रखा जाना चाहिए। वो जांच को प्रभावित कर सकते हैं। वहीं पुलिस के सामने शिकायत करने वाले की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि पुलिस जांच आगे बढ़ने की इजाजत दी जानी चाहिए।
इससे पहले महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि ये याचिका सुनवाई योग्य नही है और याचिकाकर्ताओं का आरोपियों से कोई लेना-देना नहीं है।
हलफनामे में कहा गया है कि आरोपियों को मतभेद सोच या विचारों से असहमति की वजह से गिरफ्तार नहीं किया गया है बल्कि आपराधिक मामले की जांच और भरोसेमंद सबूतों के आधार पर कार्रवाई की गई है।
महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि गिरफ्तार किए गए पांचों मानवाधिकार कार्यकर्ता समाज मे अशांति फैलाने की योजना बना रहे थे। इस बात के सबूत पुलिस को मिले हैं कि पांचों प्रतिबंधित माओवादी संगठन के सदस्य हैं। इनके पास से आपत्तिजनक सामग्री भी बरामद की गई है।
पुलिस इन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है।साथ ही इनमें से कुछ का आपराधिक इतिहास भी रहा है।
गौरतलब है कि 29 अगस्त को भीमा- कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नक्सल से जुडे होने के आरोप में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए उन्हें 6 सितंबर तक उनके घरों में ही हाउस अरेस्ट रखने के आदेश जारी किए थे।
देर शाम चली सुनवाई में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा था।
सुनवाई के दौरान उस वक्त सुप्रीम कोर्ट नाराज हुआ जब महाराष्ट्र सरकार के वकील ने कहा कि
ये आरोपी नहीं हैं ये तीसरा पक्ष हैं। ये याचिका तो सुनवाई योग्य ही नहीं है। इस पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि ये दलील बकवास है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति की आवाज़ लोकतंत्र का प्रेशर वाल्व है। अगर आप इसे दबाएंगे तो प्रैशर कुकर फट जाएगा। ये याचिका रोमिला थापर, देवकी जैन, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे और माया दारूवाला की ओर से दाखिल की गई है।
दरअसल हैदराबाद में वामपंथी कार्यकर्ता और कवि वरवर राव, मुंबई में कार्यकर्ता वरनन गोन्जाल्विस और अरुण फरेरा, छत्तीसगढ़ में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और दिल्ली में रहनेवाले गौतम नवलखा के घरों की तलाशी ली गई और उन्हें गिरफ्तार किया गया।