सांसदों/ विधायकों के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन पर कई हाईकोर्ट और राज्यों को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

13 Sep 2018 6:23 AM GMT

  • सांसदों/ विधायकों के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन पर कई हाईकोर्ट और राज्यों को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस [आर्डर पढ़े]

    सांसदों/ विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों को एक साल में निपटाने के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने उन हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार और राज्यों के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर ब्यौरा मांगा है जिन्होंने अभी तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक सांसदों/ विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों व फास्ट ट्रैक कोर्ट की जानकारी नहीं दी है।

    बुधवार को जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने ये भी कहा है कि वो अपने एक नवंबर 2017 के आदेश के अनुपालन को लेकर निगरानी करेगा।

    वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील साजन पौवेया ने पीठ को बताया कि दिल्ली, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल और महाराष्ट्र की ओर से ही आपराधिक मामलों का ब्यौरा दिया गया है। इसके अलावा बाकी हाईकोर्ट व राज्यों ने फास्ट ट्रैक कोर्ट की भी जानकारी नहीं दी।

    वहीं वरिष्ठ वकील विवेक तन्का ने सांसदों व विधायकों के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि कई सांसदों पर पुलिस को धक्का देने जैसे मामूली आरोप हैं। अगर ये मामले सेशन कोर्ट में चलेंगे तो मजिस्ट्रेट कोर्ट में सुनवाई का एक मौका चला जाएगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 12 अक्टूबर को अगली सुनवाई होगी।

    इससे पहले अधूरे हलफनामे पर असंतोष जाहिर करने के बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में फिर से हलफनामा दाखिल किया था। केंद्र ने कोर्ट को बताया कि उसके लगातार प्रयासों और याद दिलाने के बावजूद अन्य राज्यों व हाईकोर्ट ने केस संबंधी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई है।

    हलफनामे के जरिए केंद्र ने कोर्ट को बताया कि अभी तक दिल्ली समेत 11 राज्यों से मिले ब्यौरे के मुताबिक फिलहाल MP/MLA के खिलाफ 1233 केस इन 12 स्पेशल फास्ट ट्रैक में ट्रांसफर किए गए हैं जबकि 136 केसों का निपटारा किया गया है और फिलहाल 1097 मामले लंबित हैं।केंद्र ने कहा है कि बाकी राज्यों में जहां सांसदों/ विधायकों के खिलाफ 65 से कम केस लंबित हैं वो सामान्य अदालतों में फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह चलेंगे। इस संबंध में राज्यों को एडवायजरी जारी कर दी गई है।

    इसके अलावा 12 फास्ट ट्रैक कोर्ट में 6 सेशन कोर्ट और पांच मजिस्ट्रेट कोर्ट हैं जबकि तमिलनाडु से जानकारी उपलब्ध नहीं हुई है।

    सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों/ विधायकों के खिलाफ गौरतलब है कि 30 अगस्त को इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के हलफनामे पर असंतोष जाहिर करते हुए कहा था कि केंद्र सरकार कोर्ट में अधूरी तैयारी के साथ आई है।

    जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि अदालत ने 1 नवंबर 2017 को आपराधिक मामलों को ब्यौरा मांगा था जो अभी तक नहीं दिया गया है। केंद्र सरकार ने जो दाखिल किया है वो कागज का टुकड़ा भर है।

    इससे पहले सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि कितने MP/MLA के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले लंबित है और उन मामलों की स्थिति क्या है? फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का क्या हुआ? लेकिन केंद्र सरकार ने कोर्ट में आपराधिक मामलों से संबंधित जानकारी नहीं दी थी।

    केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कहा था कि 11 राज्यों में 12 स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का नोटिफिकेशन जारी हो चुका है। इनमें से दो दिल्ली में हैं। इसके लिए आवंटित 7.80 करोड़ रुपये राज्यों को दिए जा रहे हैं

    दरअसल वकील और दिल्ली भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए देश में सांसदों व विधायकों के आपराधिक मामलों के ट्रायल के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के आदेश दिए थे।

    याचिका में  दोषी राजनेताओं पर आजीवन चुनाव लडने पर पाबंदी  की मांग की  गई है।

    इसके लिए उन्होंने जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक बताते हुए  चुनौती दी है, जो कि दोषी राजनेताओं को जेल की अवधि के बाद छह साल की अवधि के लिए चुनाव लडने से अयोग्य करार देता है।


     
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