SC/ST अत्याचार निवारण ( संशोधन ) कानून का मसला भी सुप्रीम कोर्ट में, कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

LiveLaw News Network

7 Sep 2018 9:01 AM GMT

  • SC/ST अत्याचार निवारण ( संशोधन ) कानून का मसला भी सुप्रीम कोर्ट में, कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

    SC/ST अत्याचार निवारण ( संशोधन ) कानून 2018 को लेकर कानूनी लड़ाई भी शुरू हो चुकी है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने संशोधित कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 6 हफ्ते में जवाब मांगा है।

    पीठ ने हालांकि, संशोधित कानून पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष सुने बिना रोक नहीं लगाई जा सकती। इस मामले में परीक्षण जरूरी है।

    दरअसल वकील पृथ्वी राज चौहान और प्रिया शर्मा द्वारा  सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के आदेश को फिर से लागू करने और संशोधन एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।

     संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नए कानून 2018 में नए प्रावधान 18 A के लागू होने से फिर दलितों को सताने के मामले में तत्काल गिरफ्तारी होगी और अग्रिम जमानत भी नहीं मिल पाएगी।

    एससी एसटी संशोधन कानून 2018 को लोकसभा और राज्यसभा के पास करने के बाद नोटिफाई कर दिया गया है। इस संशोधन कानून के जरिये एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून की धारा 18 ए  कहती है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है। इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत के प्रावधान (सीआरपीसी की धारा 438) का लाभ नहीं मिलेगा। यानि अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। संशोधित कानून में साफ कहा गया है कि इस कानून के उल्लंघन पर कानून में दी गई प्रक्रिया का ही पालन होगा और अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।  सुप्रीम कोर्ट ने गत 20 मार्च को दिए  गए फैसले में एससी एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा निर्देश जारी किये थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा डीएसपी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है। इसके अलावा इस कानून में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी। इतना ही नहीं कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था।

    वैसे 20 मार्च के फैसले के खिलाफ केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। पुनर्विचार याचिका पर मुख्य फैसला देने वाली पीठ जस्टिस आदर्श कुमार गोयल व जस्टिस यूयू ललित की पीठ सुनवाई कर रही थी और इस पीठ ने फैसले पर अंतरिम रोक लगाने की सरकार की मांग ठुकरा दी थी। इस बीच जस्टिस गोयल सेवानिवृत हो चुके हैं ऐसे में पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए नई पीठ का गठन होना है। हालांकि नए कानून के बाद इसके मायने रह नहीं गए हैं।

    मई में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम 1989 पर फैसले की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने कहा था कि हम सभ्य समाज में नहीं रह रहे हैं अगर किसी नागरिक को बिना सही प्रक्रिया के गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया जाए।

    जस्टिस गोयल ने कहा था, “ यहां तक कि संसद भी ऐसा कानून नहीं बना सकती जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार का उल्लंघन करता हो।”

    जस्टिस गोयल ने ये भी कहा था कि कोई भी प्रावधान ये नहीं कह सकता कि “ एक तरफा बयान” के आधार पर किसी नागरिक को गिरफ्तार कर लिया जाए। अनुच्छेद 21 का मौलिक अधिकार हर अधिकार की ओर जाता है।

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