न्यायिक सेवा में जाने वाले उम्मीदवारों से मराठी समझने की अपेक्षा अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
27 Aug 2018 8:04 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जज बनने की इच्छा रखने वाले लोगों में मराठी का पर्याप्त ज्ञान होने की उम्मीद करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं है।
न्यायमूर्ति आरएम सावंत और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की पीठ ने महाराष्ट्र न्यायिक सेवा नियम, 2008 के नियम 5(3) को सही बताया जिसमें कहा गया है कि उम्मीदवार के पास “मराठी की इतनी अच्छी जानकारी होनी चाहिए कि वह मराठी बोल, लिख और पढ़ सके और मराठी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से मराठी में आसानी से अनुवाद कर सके।”
कोर्ट ने यह फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र किया जिसके आधार पर उसने कहा, “हमारे विचार में नियम 5(3) संविधान के अनुच्छेद 14 की शर्तों पूरी करता है इसलिए इस नियम को दी गई चुनौती संबंधी याचिका को खारिज करनी होगी।”
कोर्ट सोभित गौड़ नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर गौर कर रहा था। गौड़ को महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (एमपीएससी) के सिविल जज की परीक्षा में सफल उम्मीदवारों में शामिल किया गया था पर बाद में उसको “उपयुक्त नहीं” पाया गया क्योंकि अधिकारियों ने पाया कि उसको मराठी नहीं आती है।
गौड़ ने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि नियम 5(3) संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है क्योंकि यह महाराष्ट्र में और महाराष्ट्र के बाहर प्रैक्टिस करने वाले वकीलों में भेद करता है। पर अदालत ने उसकी इस दलील को खारिज कर दिया।
गौड़ ने दिल्ली के केकेडी कोर्ट के जिला और सत्र जज द्वारा जारी प्रमाणपत्र भी पेश किया ताकि उसे 5(3)(d) के तहत सक्षम माना जाए। कोर्ट ने हालांकि कहा कि यह प्रमाणपत्र पर्याप्त नहीं है क्योंकि प्रमुख जिला जज ने इसे जारी नहीं किया है। कोर्ट ने कहा कि जिला जज और सत्र जजों के लिए मराठी जानना अनिवार्य नहीं है।
कोर्ट ने इसके बाद एमजे सेवा नियम, 2008 के नियम 8 का जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि किसी भी चुने गए उस व्यक्ति को तबतक नियुक्ति नहीं दी जाएगी जब तक नियुक्ति के लिए जिम्मेदार अधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि उसका चरित्र सब तरह से अच्छा है और वह नियुक्ति के योग्य है।
कोर्ट ने कहा, “हमारी राय में, याचिकाकर्ता ने मराठी का पर्याप्त ज्ञान होने की अर्हता पूरी नहीं की है क्योंकि उसने जो प्रमाणपत्र प्रस्तुत किये हैं वे नियम 5(3)(d) के अनुरूप नहीं हैं। चूंकि उम्मीदवार को नियम के तहत नियुक्ति के अनुपयुक्त माना गया है, प्रतिबन्ध का नियम उस पर लागू नहीं होता। इसलिए किसी क़ानूनी उम्मीद जगाने का सवाल ही नहीं उठाता।”
इसलिए कोर्ट ने कहा कि गौड़ ने नियुक्ति की अर्हता पूरी नहीं की है और इस स्थिति में अथॉरिटीज ने जो निर्णय लिए हैं उसको मनमाना और अकारण नहीं माना जा सकता।