शादी का अर्थ यह नहीं है कि पत्नी को यौन संबंधों के लिए हमेशा इच्छुक होना चाहिए : दिल्ली हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
20 July 2018 1:33 PM IST
वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि शादी का अर्थ यह नहीं है कि पत्नी को अपने पति के साथ हमेशा शारीरिक संबंध बनाने के लिए तैयार रहना चाहिए।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने आरटीआई फाउंडेशन, आल इंडियन डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन (एआईडीडब्ल्यूए) और वैवाहिक बलात्कार की शिकार एक महिला की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही।
“विवाह का मतलब यह नहीं है कि महिला (शारीरिक संबंध के लिए) हमेशा ही तैयार रहती है, वह हमेशा ही इसकी इच्छुक होती है और वह हमेशा ही इसकी अनुमति दे सकती है। आदमी को यह साबित करना होगा कि वह इच्छुक पक्ष है,” पीठ ने कहा।
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट मेन वेलफेयर ट्रस्ट नामक एनजीओ की इस दलील से सहमत नहीं हुआ कि अगर ऐसा किया गया तो पुरुषों पर अत्याचार के लिए इसका प्रयोग होगा। यह एनजीओ इस मामले में एक हस्तक्षेपकर्ता है और वह वैवाहिक संबंधों में बलात्कार को आपराधिक करार दिए जाने के खिलाफ है।
कोर्ट ने एनजीओ की इस दलील को ठुकरा दिया कि उपलब्ध कानूनों में पत्नियों को पहले ही यौन हिंसा से संरक्षण मिला हुआ है। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 के तहत अपवाद के बारे में स्पष्टीकरण माँगा। इस धारा में पति-पत्नी के बीच यौन संबंध को आपराधिक बलात्कार की परिभाषा से अलग रखा गया है।
“यह कहना गलत है कि बलात्कार के लिए (शारीरिक) बल जरूरी है। बलात्कार में चोट को देखना जरूरी नहीं होता। आज बलात्कार की परिभाषा पूरी तरह अलग हो गई है...
…अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को वित्तीय तंगी में धकेलता है और कहता है कि वह उसे घर के खर्च और बच्चों की देखभाल पर होने वाले खर्च की राशि नहीं देगा बशर्ते कि वह उसके साथ यौन संबंध स्थापित करे और अगर उसको इस धमकी की वजह से ऐसा करना पड़े। और बाद में अगर वह पति के खिलाफ बलात्कार का मामला दायर करती है, तो क्या होगा,” कोर्ट ने कहा।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 8 अगस्त को होगी।