रजिस्टर्ड ट्रेड मार्क की तरह धोखा देने वाले ट्रेड नाम का प्रयोग ट्रेड मार्क अधिनियम की धारा 29(5) के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
17 July 2018 12:54 PM IST
“जिसको हम धारा 29(5) के तहत अवरोध मानते हैं, वह पंजीकृत ट्रेड नाम या उस ट्रेड नाम के एक हिस्से का प्रयोग है”, न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंदलाव ने कहा।
दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रेड मार्क अधिनियम की धारा 29(5) के तहत ट्रेड नाम के प्रयोग से होने वाला उल्लंघन और धारा 29 की उप-धारा (1) से (4) तक के प्रावधानों के तहत ट्रेड मार्क के प्रयोग से होने वाला उल्लंघन एक ही नहीं है और दोनों में अंतर है। कोर्ट ने कहा कि धारा 29(5) के तहत उल्लंघन का मामला बनाने के लिए सिर्फ पंजीकृत ट्रेड नाम या ट्रेड मार्क से मिलते जुलते नामों के प्रयोग का ही मामला पर्याप्त नहीं है, पंजीकृत ट्रेड मार्क या उसके किसी हिस्से का व्यवसाय के व्यापारिक नाम जैसा वैसा ही प्रयोग होना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा कि “मिलता जुलता या भ्रमोत्पादक समानता की जांच ट्रेड मार्क के उल्लंघन के मामले में उसी स्थिति में लागू होती है जब धारा 29 की उपधारा (1) और (4) के तहत ऐसा होता है।
कोर्ट ने कहा, “मिलते जुलते या भ्रमात्मक रूप से पंजीकृत ट्रेड नाम जैसे नामों का प्रयोग धारा 29(5) के तहत उल्लंघन नहीं है।”
दिल्ली हाईकोर्ट के जज राजीव सहाय एंदलाव ने औषधि बनाने वाली दो कंपनियों मैनकाइंड फार्मा लिमिटेड और मर्सीकाइंड फार्मासुटिकल प्राइवेट लिमिटेड के बीच विवाद पर अपने फैसले में यह बात कही। मैनकाइंड ने मर्सीकाइंड को अपनी कंपनी के नाम की तरह होने का बताते हुए इस पर पाबंदी लगाने के लिए कोर्ट में अर्जी दी थी। उसका कहना था कि मर्सीकाइंड का अपनी कंपनी का नाम के रूप में प्रयोग कर वादी ‘काइंड’ ट्रेडमार्क का उल्लंघन करता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि मर्सीकाइंड‘काइंड’ का प्रयोग प्रत्यय या उपसर्ग के रूप में नहीं कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी अपना कोई भी उत्पाद मर्सीकाइंड नाम से नहीं बेचता है और मर्सीकाइंड का प्रयोग ट्रेड मार्क के रूप में नहीं होता है।
कोर्ट वादी की इस दलील से संतुष्ट नहीं हुआ कि मर्सीकाइंड उसके सभी ऊत्पादों से जुड़ा हुआ है और इसलिए यह अधिनियम की धारा 29(6) के तहत ट्रेडमार्क के प्रयोग की तरह है। कोर्ट ने कहा कि मर्सीकाइंड का प्रयोग औषधि विनियमन क़ानून के अनुरूप सभी उत्पादों में उत्पादनकर्ता के नाम के रूप में हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर मरीज को औषधियों का आम नाम सुझाता है न कि उसका व्यापारिक नाम और इसलिए औषधियों में निर्माता का नाम का उल्लेख होना ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है।
कोर्ट ने अपने फैसले के लिए रेमंड लिमिटेड बनाम रेमंड फार्मासुटिकल प्राइवेट लिमिटेड मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले पर भरोसा किया।