पत्नी के नाम पर ऋण लेना और उसकी किश्त नहीं भरना क्रूरता है : उत्तराखंड हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

28 Jun 2018 6:04 AM GMT

  • पत्नी के नाम पर ऋण लेना और उसकी किश्त नहीं भरना क्रूरता है : उत्तराखंड हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल में एक पत्नी की इस दलील को स्वीकार कर लिया जिसमें उसने अपने पति से इस आधार पर तलाक की मांग की थी कि पति ने उसके नाम पर यह जानते हुए ऋण लिया कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है पर उसने इसकी किश्त नहीं भरी और उसको मुश्किल में डाल दिया।

    न्यायमूर्ति वीके बिष्ट और आलोक सिंह ने देहरादून के फैमिली कोर्ट के प्रमुख जज के फैसले को निरस्त करते हुए कहा, “जज साक्ष्य को सही संदर्भ में देखने में विफल रहे। जज ने पक्षकारों की स्थिति को ऐसा माना जैसे वो भयंकर गरीबी में जी रहे हों जबकि हकीकत यह है कि प्रतिवादी/पति ने एक महँगी कार खरीदने के लिए ऋण लेने के साथ साथ और भी कई ऋण ले रखे हैं पर वह ऋण लौटा नहीं रहा है जो कि याचिकाकर्ता के लिए मानसिक संताप का सबब बना हुआ है।”

    इस आदेश में पत्नी की तलाक की मांग को अस्वीकार कर दिया गया और यह उसके खिलाफ क्रूरता के आधार पर माँगी गई थी। उसने कहा कि उसके पति अमूमन उसके नाम पर ऋण लेते थे और कुछ ऋण में तो उसको गारंटर भी बनाया था। पर वह ऋण को चुकाने में नाकाम रहा जिसकी वजह से उसे काफी जलालत झेलनी पड़ी।

    पत्नी की स्थिति पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा, “ऋण लेना न तो कोई अपराध है और न ही यह शर्म की बात है पर इसको नहीं चुका पाने से शर्मनाक स्थिति बन सकती है क्योंकि ऋण वसूलने वाले हर तरह से ऋण वसूलने के लिए दरवाजे तक आते हैं। यह समाज में व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धूमिल करती है। याचिकाकर्ता एक घरेलू  महिला है। प्रतिवादी ने अपनी पत्नी के नाम पर भी ऋण लिया और उसको गारंटर भी बनाया। याचिकाकर्ता के पास आय का कोई स्रोत नहीं है और उसके पति ने उसको छोड़ दिया। इस स्थिति में उसके लिए जीवन जीना बहुत ही मुश्किल था क्योंकि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं होने के बावजूद उसे ऋण की किश्त चुकानी पड़ रही थी।”

    इसलिए याचिकाकर्ता की अपील स्वीकार करते हुए कोर्ट ने उसके खिलाफ पूर्व में दिए गए फैसले को निरस्त कर दिया और उसे तलाक की अनुमति दे दी और उनकी शादी को समाप्त घोषित कर दिया।


     
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