नारी निकेतन, बाल संरक्षण केंद्रों में संदेहास्पद मौत, बलात्कार, कुपोषण और स्वच्छता नहीं होने से उत्तराखंड हाईकोर्ट हैरान; जारी किए कई निर्देश [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

29 May 2018 10:53 AM IST

  • नारी निकेतन, बाल संरक्षण केंद्रों में संदेहास्पद मौत, बलात्कार, कुपोषण और स्वच्छता नहीं होने से उत्तराखंड हाईकोर्ट हैरान; जारी किए कई निर्देश [निर्णय पढ़ें]

    नारी निकेतन और बाल गृहों की दयनीय स्थिति से हैरान उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इनकी स्थिति में सुधार के लिए अनेक निर्देश जारी किये हैं। इन स्थानों पर रहने वाले कई बच्चे जिनमें सुनने और बोलने में असमर्थ एक लड़की भी शामिल थी, के साथ बलात्कार हुआ और उसका जबरन गर्भपात भी कराया गया। कोर्ट ने इस तरह के संस्थानों का नियमित निरीक्षण, सामान्य और मानसिक रूप से बीमार कैदियों को अलग रखने और बच्चों से नशीली पदार्थों को बेचने और भीख मांगने का धंधा कराने वालों या बच्चों को शारीरिक दंड देने वालों को कड़ी सजा दिलाने जैसे निर्देश दिए हैं।

    न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की पीठ ने निर्देश दिया कि देहरादून के नारी निकेतन में एक गूंगी और बहरी महिला कैदी के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले में सुनवाई की धीमी रफ़्तार के बारे में भी निर्देश जारी किया। अभी तक इस मामले में अभियोजन पक्ष के सिर्फ पांच गवाहियों के बयान ही दर्ज हुए हैं। कोर्ट ने इस मामले पर छह माह में फैसला देने को कहा है और देहरादून के राजपुर रोड स्थित नेशनल इंस्टीच्यूट फॉर द विजुअली हैंडीकैप्ड के संगीत शिक्षक रमेश चन्द्र कश्यप को लड़की का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में निलंबित करने का आदेश दिया।

    कोर्ट ने कहा कि कश्यप के खिलाफ कार्यवाही तीन महीने में पूरी होनी चाहिए।

    पीठ ने शिवांगी गंगवार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान ये आदेश जारी किये। जनहित याचिका में उत्तराखंड के नारी निकेतनों विशेषकर देहरादून के केद्रपुरम स्थित नारी निकेतन में कैदियों के यौन शोषण, उनके उत्पीड़न, बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाओं का आरोप लगाया है।

    याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा कि राज्य सरकार हल्द्वानी और अल्मोरा में तीन नारी निकेतनों का संचालन करती है और इन केंद्रों की स्थिति बेहद दुखद है। इन केन्द्रों पर मानसिक रूप से बीमार कैदियों को उनके  बच्चों के साथ रखा जाता है जिसकी क़ानून में इजाजत नहीं है। दो कैदियों की संदेहास्पद स्थिति में मौत हो चुकी है और अभी तक जांच के द्वारा किसी को भी इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। 14 बच्चे कुपोषण के शिकार थे जिनको अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस खबर के बाद जिलाधिकारी ने हल्द्वानी केंद्र का दौरा किया और फिर उनको यहाँ की बदहाल स्थिति का पता लगा।

    इन केंद्रों की स्थितियों पर गौर करने के बाद पीठ ने निम्नलिखित आदेश दिए -




    1. देहरादून के नारी निकेतन में हुए बलात्कार और गर्भपात की घटना से जुड़े मामले (सत्र मामला 59, 2016) की सुनवाई आज से छह माह के भीतर पूरी की जाए। महिला अभियोजक का बयान एक विशेषज्ञ की मदद से रिकॉर्ड किया जाएगा जो कि दैनिक जीवन की उसकी बातों को बता सके।

    2. राज्य सरकार उस गूंगी और बहरी लड़की जिसका बलात्कार हुआ और गर्भपात कराया गया उसे 25 लाख रुपए का हर्जाना या 11 हजार रुपए प्रतिमाह की राशि का भुगतान करेगी। यह राशि उस लड़की के बैंक खाते में जमा की जाएगी।

    3. रमेश चन्द्र कश्यप, संगीत शिक्षक को अविलंब प्रभाव से निलंबित किया जाएगा और स्कूल की एक छात्र के मानवाधिकार और उसकी गरिमा के हनन के लिए उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाएगी जिसे आज से तीन महीने के भीतर पूरी कर ली जाएगी।

    4. कश्यप के खिलाफ राज्य पुलिस पोकसो अधिनियम और आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज करेगी। इसके खिलाफ पूछताछ और जांच आज से तीन माह में पूरी की जाएगी। इसके बाद चलान कोर्ट में पेश किया जाएगा। इस मामले की सुनवाई आज से तीन माह में पूरी की जाएगी।

    5. राज्य सरकार को अधिनियम की धारा 110 के तहत नियम बनाने हैं और आज से छह महीने के भीतर उसे इसको अधिसूचित करनी होगी। तब तक जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2016 लागू होगा।

    6. प्रतिवादी राज्य आज से 12 सप्ताह के भीतर हर जिले में एक बाल कल्याण समिति की स्थापना करेगा। नियम, 2016 के अनुरूप नियम 87 के तहत गठित चयन समिति के सुझावों पर इस समिति के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी।

    7. राज्य सरकार आज से चार सप्ताह के भीतर चयन समिति का गठन करेगी जो कि तीन साल के लिए होगा और इसके लिए आधिकारिक गजट में इसके बारे में सूचना प्रकाशित करेगी। इस चयन समिति का अध्यक्ष हाईकोर्ट का अवकाशप्राप्त जज होगा जिसे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से नियुक्त किया जाएगा। इसका एक सदस्य इस अधिनियम को लागू करने वाले विभाग से होगा जो कि निदेशक के दर्जे से कम का नहीं होगा जो कि पदेन सदस्य सचिव होगा। दो अन्य सदस्य दो प्रतिष्ठित एनजीओ के होंगे जो कि बाल विकास या बाल संरक्षण के क्षेत्र में कम से कम सात साल से काम कर रहे हैं पर कोई बाल संस्थान नहीं चला रहे हैं। दो सदस्य अकादमिक निकायों या विश्वविद्यालयों के खासकर सामाजिक कार्य, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, विधि संकाय से जुड़े हों जिनके पास बच्चों के मुद्दों का विशेष ज्ञान हो या इस विषय पर काम करने का न्यूनतम सात साल का अनुभव हो और वे राज्य के बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य हों।

    8. अगर किसी व्यक्ति, पुलिस अधिकारी या किसी संगठन के कार्यकर्ता या नर्सिंग होम या अस्पताल या मैटरनिटी होम को कोई बच्चा मिलता है या उनको सुपुर्द किया जाता है जिसे या तो छोड़ दिया गया है या जो खो गया है या जो बच्चा यह दावा कर रहा है कि वह अनाथ है, तो उन्हें इसकी जानकारी चाइल्डलाइन सर्विसेज, या बाल कल्याण समिति या जिला बाल संरक्षण इकाई को 24 घंटे के अंदर देनी होगी।

    9. राज्य सरकार बाल कल्याण संस्थान में रहने वाले बच्चों को 1 लाख रुपए का वित्तीय सहयोग देगी ताकि यह राशि उनके पुनर्वास और सामाजिक पुनर्स्थापना पर खर्च की जा सके।

    10. राज्य सरकार हर जिले में आश्रय स्थल खोलेगी और उसे खुद या एनजीओ के सहयोग से चलाएगी।

    11. दस साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोने और नहाने की जगह अलग होनी चाहिए, 7-11 और 12-18 वर्ष के लड़के और लड़कियों के लिए रहने की जगह अलग अलग जगह होनी चाहिए। छह साल के बच्चों और शिशुओं के रहने के लिए अलग घर होने चाहिए।

    12. राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि जिन बाल कल्याण संस्थानों में 50 से ज्यादा बच्चे हैं उनमें डारमेट्री, कक्षा और विशेष सुविधाएं हों।


     इनके अलावा यह आदेश भी दिया गया कि बाल कल्याण केंद्रों में रहने वाले बच्चों को कुछ न्यूनतम सुविधाएं सुनिश्चित की जाएंगी जिनमें उनके लिए पहनने के कपड़े, बिस्तर और स्वच्छता और सफाई की सुविधाएं शामिल हैं।


     
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