संविधान का अनुच्छेद 35 A : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, जवाब दाखिल नहीं करेंगे, सिर्फ संवैधानिक मुद्दों पर बहस करेंगे
LiveLaw News Network
14 May 2018 4:20 PM IST
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35 A के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वो इस मामले में कोई जवाब दाखिल नहीं करेगा लेकिन वो इस मामले में संवैधानिक मुद्दों पर बहस करेगा।
सोमवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच के सामने AG के के वेणुगोपाल ने ये बात रखी। उन्होंने पीठ के सामने कहा कि ये संवेदनशील मामला है। इसे लेकर वार्ताकार दस बार वहां का दौरा कर चुके हैं। वो बात कर मामले का हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में फिलहाल कोर्ट को कोई आदेश जारी नहीं करने चाहिएं।
वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा कि उनके मामले में मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने का मामला है। इसलिए अंतरिम राहत के लिए जल्द सुनवाई होनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि इस मामले में सारी कार्रवाई पूरी कर ली जाए और 6 अगस्त को वो सुनवाई करेंगे। तभी मामले को संविधान पीठ को भेजने पर भी विचार होगा।
इससे पहले 1 मई को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार को एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया था जिसमें संविधान के अनुच्छेद 35 ए को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है जो जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देता है और स्थायी बसने वालों की पीढ़ियों के अधिकारों को अस्वीकार करता है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड की पीठ ने नोटिस जारी करने के बाद पीआईएल को लंबित याचिकाओं के साथ सुनवाई के लिए टैग किया था।
पीआईएल में दलील दी गई है कि राष्ट्रपति 19 54 के आदेश से संविधान में संशोधन नहीं कर सकते और इसे अस्थायी प्रावधान माना जाता है। अनुच्छेद 35 ए राज्य के मूल निवासियों के अलावा सभी भारतीयों को जम्मू-कश्मीर में कहीं भी अचल संपत्ति प्राप्त करने, जम्मू-कश्मीर सरकार के तहत नौकरियां प्राप्त करने, राज्य में बसने और राज्य प्रायोजित छात्रवृत्ति योजनाओं का लाभ उठाने से रोकता है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 35 ए और अनुच्छेद 370 के अनुपालन में जम्मू-कश्मीर सरकार, जो राज्य को विशेष स्वायत्त स्थिति प्रदान करती है, गैर-निवासियों के खिलाफ भेदभाव कर रही है, वोसंपत्ति खरीदने से वंचित हैं, स्थानीय नौकरी पाने या स्थानीय चुनावमें मतदान नहीं कर सकते। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अनुच्छेद 35 ए संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार को दूर करने के कारणों के बिना इस वर्गीकरण को प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
यह प्रस्तुत किया गया कि दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी के 4000 से अधिक लोग पंजाब राज्य के गुरदासपुर और अमृतसर से जम्मू-कश्मीर राज्य के जम्मू क्षेत्र में बसने के लिए चले गए थे, ताकि वो सफाईकर्मी के रूप में काम कर सकें। याचिकाकर्ता जम्मू-कश्मीर राज्य में पैदा हुए थे और उनके जन्म के बाद से वे स्थायी रूप से राज्य में रह रहे हैं ।
राज्य वित्त पोषित उच्च तकनीकी शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश लेने का अधिकार अस्वीकार, छात्रों को राज्य छात्रवृत्ति और राज्य सहायता प्राप्त करने का अधिकार अस्वीकार, राज्य सेवाओं और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में रोजगार के अवसर से इनकार करना और राज्य सरकार के तहत स्थानीय निकाय, आश्रय और निपटारे के उद्देश्य के लिए संपत्ति हासिल करने के अधिकार से वंचित करना उनके मौलिक अधिकारों को प्रभावित कर रहा है।
इसलिए अनुच्छेद 35 ए को असंवैधानिक घोषित करने के लिए वर्तमान याचिका दाखिल की गई है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में जम्मू एवं कश्मीर राज्य को मिले विशेष दर्ज को लेकर यानी अनुच्छेद 35 A की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली और याचिका दायर की गई हैं। पूर्व सैनिक सहित तीन लोगों की ओर से दायर इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर पहले दायर इसी तरह की याचिकाओं के साथ जोड़ दिया था।
याचिका में भारतीय संविधान के अनुच्छेद-35ए और जम्मू एवं कश्मीर संविधान केखंड-छह को असंवैधानिक करार देने की गुहार की गई है। याचिका में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद-35 A और जम्मू एवं कश्मीर संविधान के खंड-छह विभाजन के बाद पश्चिम पाकिस्तान से कश्मीर में आए लोगों के साथ भेदभावपूर्ण है। उनका कहना है कि वे तीसरी पीढ़ी के लोग है लेकिन अब तक उन्हें जम्मू एवं कश्मीर के वांशिदें को मिलने वाला लाभ नहीं मिल रहा है। एेसे करीब तीन लाख लोग आज भी कश्मीर में तीन पीढियां बीतने के बावजूद शरणार्थी बने हुए हैं।
इससे पहले कोर्ट ने कहा था कि इस मामले की सुनवाई संवैधानिक बेंच द्वारा की जानी चाहिए। यदि यह अनुच्छेद संविधान के अधिकार क्षेत्र से बाहर है या इसमें कोई प्रक्रियागत खामी है। कोर्ट ने कहा था कि तीन जजो की बेंच मामले की सुनवाई करेगी और फिर इसे पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजेगी।
सुप्रीम कोर्ट वकील चारू वली खन्ना की ओर से संविधान के अनुच्छेद 35ए और जम्मू-कश्मीर के संविधान के प्रावधान छह को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है। दोनों प्रावधान जम्मू-कश्मीर के स्थाई निवासियों से जुड़े हुए हैं। इससे पहले भी वी द सिटीजन इस संबंध में याचिका दाखिल कर चुका है।
याचिका में कुछ विशेष प्रावधानों को चुनौती दी गयी है- राज्य के बाहर के किसी व्यक्ति से विवाह करने वाली महिला को संपत्ति का अधिकार नहीं मिलना। इस प्रावधान के तहत राज्य के बाहर के किसी व्यक्ति से विवाह करने वाली महिला का संपत्ति पर अधिकार समाप्त हो जाता है और उसके बेटे को भी संपत्ति का अधिकार नहीं मिलता। संविधान में 1954 में राष्ट्रपति आदेश से जोड़ा गया अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर के स्थाई निवासियों को विशेषाधिकार और सुविधाएं देता है।
1954 में राष्ट्रपति आदेश पर अनुच्छेद 35 ए को संविधान में शामिल किया गया था जिसके अनुसार जम्मू कश्मीर के निवासियों को विशेषाधिकार दिया गया था।