फर्जी दस्तावेज बनाना फर्जी दस्तावेज बनाने की वजह बनने से अलग है; सिर्फ फर्जी दस्तावेज बनाने वालों पर ही धोखाधड़ी का आरोप लगा सकते हैं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

13 May 2018 12:09 PM GMT

  • फर्जी दस्तावेज बनाना फर्जी दस्तावेज बनाने की वजह बनने से अलग है; सिर्फ फर्जी दस्तावेज बनाने वालों पर ही धोखाधड़ी का आरोप लगा सकते हैं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने शीला सेबास्टियन बनाम जवाहरराज मामले में कहा कि फर्जी दस्तावेज बनाना फर्जी दस्तावेज बनाने की वजह बनने से अलग है और उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो सकती है जो इस दस्तावेज को तैयार करने में संलग्न नहीं है।

    शिकायतकर्ता ने इस मामले में कहा कि आरोपी नंबर एक ने खुद को डोरिस विक्टर बताते हुए उसके नाम पर एक पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी तैयार कराया जैसे कि वह उसका एजेंट हो। यद्यपि निचली अदालत और प्रथम अपीली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराया, हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उसको बरी कर दिया कि धोखाधड़ी के आरोप में दोषी ठहराए जाने के लिए जरूरी है कि “फर्जी दस्तावेज बनाया जाए”।

    हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में गलत ठहराते हुए यह कहा गया कि कोई भी व्यक्ति जो फर्जी दस्तावेज तैयार करता है, धोखाधड़ी का दोषी है और इस मामले में आरोपी ने धोखाधड़ी से पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी तैयार किया और उसका एकमात्र उद्देश्य श्रीमती डोरिस विक्टर की संपत्ति को हड़पना था।

    आईपीसी की धारा 463-465 की चर्चा करते हुए न्यायमूर्ति एनवी रमना और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर ने कहा कि जब तक आरोप धारा 243 की शर्तों को संतुष्ट नहीं करता किसी व्यक्ति को सिर्फ धारा 464 की बातों के आधार पर धारा 465 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उस स्थिति में धोखाधड़ी का अपराध अधूरा रहता है।

    पीठ ने कई अन्य मामलों में दिए गए फैसलों का जिक्र किया और कहा कि उस व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता जिसने फर्जी दस्तावेज तैयार नहीं किया है और फर्जी दस्तावेज बनाना उसको बनाने में मदद करने से अलग है।

    कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने ऐसा कोई सबूत रिकॉर्ड नहीं किया है जिससे यह साबित हो सके कि प्रतिवादी ने कोई फर्जी दस्तावेज तैयार किया है।

    अगर अभियोजन और जांच एजेंसी के बीच इसी तरह का सामंजस्य रहा तो हर आपराधिक मामले का अंत दोषी के बरी हो जाने से होगा।

    पीठ ने आगे कहा कि वह व्यक्ति जिसने खुद को डोरिस विक्टर बताया जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि उसने फर्जी दस्तावेज तैयार किया। “यह मामला खराब अभियोजन और अगंभीर जांच का उत्कृष्ट उदाहरण है जिसकी वजह से आरोपी बरी हो गया। जांच अधिकारी से उम्मीद की जाती है कि वह अपने कर्तव्यों को पूरी मेहनत से पूरा करेंगे। उसका निष्पक्ष होना जरूरी है, उसका पारदर्शी होना जरूरी है और सच का पता लगाना उसका एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए। जाँच अधिकारी ने यह भी पता लगाने की कोशिश नहीं की है कि वह नकली व्यक्ति कहाँ है जिसने फर्जी दस्तावेज तैयार कराया। उपलब्ध साक्ष्य यह स्पष्ट बताता है कि पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी शिकायतकर्ता ने नहीं बनाया और इसका लाभ लेने वाला आरोपी है लेकिन इसके बावजूद आरोपी को सजा नहीं दिया जा सका...”।

    कोर्ट ने कहा कि यद्यपि शिकायतकर्ता को इस धोखाधड़ी से होने वाली परशानी से वह वाकिफ है, पर वह आरोपी को दोषी नहीं ठहरा सकता क्योंकि परिणामों के आधार पर वह सजा नहीं दे सकता।


     
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