जाली मुद्रा का प्रचलन यूएपीए के अधीन 2013 के संशोधन के पहले आतंकवादी गतिविधि नहीं : केरल हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
1 May 2018 9:19 PM IST
केरल हाई कोर्ट की पूर्णपीठ ने 2:1 से कहा है कि ऊंचे दर्जे की जाली मुद्रा के प्रचलन को गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम में 2013 में हुए संशोधन के पहले “आतंकवादी घटना” नहीं माना जा सकता। पूर्ण पीठ शरीफ बनाम केरल राज्य 2013 (4) KLT 60 मामले में दिया गया फैसला सही है या नहीं इस पर गौर कर रहा था। इस फैसले में कहा गया था कि असंशोधित प्रावधानों के मुताबिक़ भी जाली मुद्रा का प्रचलन ‘आतंकवादी गतिविधि’ है। इस बारे में बहुमत का फैसला न्यायमूर्ति एएम शफीक और न्यायमूर्ति पी उबैद ने लिखा जबकि न्यायमूर्ति पी सोमराजन ने इस फैसले के खिलाफ अपना निर्णय दिया।
पृष्ठभूमि
यूएपीए की धारा 15 में “आतंकवादी गतिविधि” को परिभाषित किया गया है। 2013 के पहले इसमें ‘आर्थिक सुरक्षा’ या ‘उच्च श्रेणी की जाली मुद्रा’ का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं था। 2013 में संशोधन के द्वारा इसमें “भारत की सुरक्षा” के पहले “आर्थिक सुरक्षा” जोड़ दिया गया। इसके अलावा इसमें एक नया उपखंड जोड़ दिया गया ताकि उच्च श्रेणी की मुद्रा के प्रचलन से निपटा जा सके।
वर्तमान मामले में 26 जनवरी 2013 को कोचीन हवाई अड्डे पर भारी मात्रा में नकली मुद्रा बरामद की गई और इस सिलसिले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया। संशोधित यूएपीए के तहत इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अपने हाथ में ले लिया। इस मामले के तहत गिरफ्तार लोगों की जमानत याचिका विशेष अदालत ने इस आधार पर खारिज कर दी कि अपराध यूएपीए के तहत आता है। अपीलकर्ताओं का कहना था कि अपराध 2013 से पहले हुआ सो वे इसके तहत नहीं आते।
खंडपीठ को शरीफ बनाम केरल राज्य मामले में दिए गए फैसले पर संदेह हुआ और इसलिए इसका रेफरेंस दिया गया।
बहुमत की राय
न्यायमूर्ति पी उबैद ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 20(1) के असर पर गौर किया जिसमें कहा गया है कि आपराधिक क़ानून को पिछले प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता। शरीफ मामले में कहा गया गया कि जाली मुद्रा से आर्थिक अस्थायित्व आता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करता है।
बहुमत की राय देने वाले जजों ने कहा कि यूएपीए के प्रावधान अपीलकर्ता के खिलाफ लागू नहीं हो सकते हैं और कहा कि आईपीसी के प्रावधानों के अनुसार उसे सजा नहीं दी जा सकती। पर कोर्ट ने उसे जमानत नहीं दी।
अल्पमत की राय
भिन्न राय देने वाले न्यायमूर्ति पी सोमराजन ने अपने विचार का आधार इस बात को बनाया कि यूएपीए का जो संशोधन हुआ वह ‘स्पष्टीकरण’ वाला है और जाली नोटों के प्रचलन के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान संशोधन से पहले के प्रावधानों में भी था इसलिए इसमें अनुच्छेद 20(1) लागू नहीं होगा।