Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, फैमिली कोर्ट अनिवासी भारतीय महिला को स्काइप के माध्यम से तलाक की शर्तों पर अपनी सहमति देने की अनुमति दे [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
18 April 2018 1:12 PM GMT
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, फैमिली कोर्ट अनिवासी भारतीय महिला को स्काइप के माध्यम से तलाक की शर्तों पर अपनी सहमति देने की अनुमति दे [निर्णय पढ़ें]
x

एक महत्त्वपूर्ण फैसले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि सहमति से तलाक के लिए अर्जी एक पंजीकृत वकील के माध्यम से दायर किया जा सकता है। कोर्ट ने बांद्रा के फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया कि वह स्काइप या किसी अन्य तकनीक के माध्यम से सहमति की शर्तों की रिकॉर्डिंग की अनुमति दे।

न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने हर्षदा देशमुख द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में उन्होंने तलाक की उनकी अर्जी को फैमिली कोर्ट द्वारा खारिज करने के आदेश को निरस्त करने की मांग की है।

पृष्ठभूमि

हर्षदा और उसके पति भारत ने फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए अर्जी डाली। यद्यपि भारत ने इस अर्जी पर हस्ताक्षर किया था, हर्षदा के पिता जो कि उसके पंजीकृत पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी धारक हैं, ने उसकी ओर से इस पर हस्ताक्षर किया था।

फैमिली कोर्ट ने कहा कि दोनों ही पक्ष को इस तरह का आवेदन देने के समय कोर्ट में मौजूद रहना जरूरी है और इस आधार पर इस अर्जी को अस्वीकार कर दिया।

दलील

हर्षदा के वकील समीर वैद्या ने कहा उसकी मुवक्किल अमरीका में काम करती है और वह अपने नौकरी की शर्तों से बंधे होने के कारण यहाँ मौजूद नहीं रह सकती।

वैद्या ने यह भी कहा कि दोनों ही पक्ष एक साल से अधिक समय से अलग रह रहे हैं और पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी द्वारा इस अर्जी को पेश करने का मतलब यह नहीं है कि फैमिली कोर्ट इसको अस्वीकार कर दे।

मुकेश नारायण शिंदे बनाम पलक मुकेश शिंदे मामले में कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए वैद्या ने कहा कि फैमिली कोर्ट को विभिन्न तकनीकों जैसे वीडियो कांफ्रेंसिंग, ई-फाइलिंग, ई-काउंसेलिंग और ई-वेरिफिकेशन की अनुमति दी गई है। इस संबंध में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एक मामले (नवदीप कौर बनाम महिंदर एस अहलुवालिया) का जिक्र भी उन्होंने किया।

फैसला

न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा कि फैमिली कोर्ट के लिए नागरिक प्रक्रिया संहिता को मानना आवश्यक है और इस संहिता के आदेश 3 में पहचान किए गए एजेंटों और वकीलों का जिक्र है।

कोर्ट ने विभिन्न फैसलों पर गौर करने के बाद कहा कि पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी एक अधिकृत व्यक्ति होता है जिसके माध्यम से कोई अर्जी दी जा सकती है।

अंततः, कोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा अर्जी को अस्वीकार करने के निर्णय को रद्द कर दिया और कहा :

“...किसी पंजीकृत पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी धारक के माध्यम से अर्जी दायर करने में कोई गड़बड़ी नहीं है और फैमिली कोर्ट के तद संबंधी आदेश को रद्द करते हुए उक्त अर्जी को स्वीकार किये जाने की जरूरत है। उपरोक्त कानूनी स्थिति को देखते हुए फैमिली कोर्ट इस बात पर जोर नहीं देगा कि पक्षकारों को कोर्ट में आवश्यक रूप से मौजूद रहना है और वह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-B के तहत सहमति की शर्तों की स्काइप या अन्य तकनीक से रिकॉर्डिंग की व्यवस्था करेगा।”


 
Next Story