मंत्रियों की मदद के लिए 11 संदादीय सचिवों की नियुक्ति को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सही ठहराया [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
16 April 2018 1:26 PM GMT
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा द्वारा 11 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करने को सही ठहराया है। ये संसदीय सचिव विभिन्न मंत्रियों की मदद करेंगे। यद्यपि यह स्पष्ट किया गया है कि ये मंत्री के रूप में कार्य नहीं करेंगे।
इन नियुक्तियों के खिलाफ दायर याचिका में यह कहा गया कि नियुक्ति संविधान की धारा 164(1A) के खिलाफ है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति थोत्ताथिल बी राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति शरद कुमार गुप्ता की पीठ ने कहा कि संसदीय सचिव का प्रावधान कोई नई परिकल्पना नहीं है और ऐसी व्यवस्था रही है कि मंत्रियों को अपने विभागों के प्रबंधन में मदद के लिए संसदीय सचिव उपलब्ध कराया जाता है।
पीठ ने बिमोलांग्शु रॉय (मृत) माध्यम एलआर बनाम असम राज्य एवं अन्य को उद्धृत किया और कहा कि उस मामले में शीर्ष अदालत एक ऐसे क़ानून से निपट रहा था जिसमें एक विधानमंडलीय धोषणा शामिल था कि संसदीय सचिवों को राज्य में मंत्रियों का दर्जा दिया जाएगा।
कोर्ट ने कहा, “वर्तमान मामले में संसदीय सचिव जो कि प्रतिवादियों में शामिल हैं, उनको राज्य में मंत्री का दर्जा दिया गया है ऐसा जिक्र नहीं है न ही उनको इस तरह का अधिकार दिया गया है कि वे मंत्रियों जैसा कार्य संपादन करें। यह असम अधिनियम की धारा 7 के विपरीत है जिसे कि सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसकी तुलना में छत्तीसगढ़ में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत संसदीय सचिव को मंत्री की तरह वेतन और भत्ते दिए जाएंगे। संसदीय सचिव के रूप में वे जिस अधिसूचना के तहत गोपनीयता की शपथ लेने के बाद काम करते हैं, संविधान के चौथे हिस्से के अध्याय दो के तहत उनकी तुलना किसी संवैधानिक अथॉरिटी से नहीं करता। उनको कोई संवैधानिक कार्य के संपादन की भी अनुमति नहीं होती। उनका काम सिर्फ मंत्री की मदद करना होता है...”
चुनौती को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि नियुक्त किए गए लोग मंत्री नहीं हैं और उनको संविधान के अनुच्छेद 163 और 164 के तहत मंत्री नहीं माना जा सकता।