चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, 1998 से मांग रहा है अधिक स्वायत्ता और नियम बनाने की शक्ति [शपथ पत्र पढ़ें]

LiveLaw News Network

12 April 2018 5:34 PM GMT

  • चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, 1998 से मांग रहा है अधिक स्वायत्ता और नियम बनाने की शक्ति [शपथ पत्र पढ़ें]

    चुनाव आयोग को अधिक स्वायत्तता और स्वतंत्रता के लिए जनहित याचिका पर जवाब दाखिल करते हुएआयोग ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा है कि वह 1998 के बाद से इस आशय के संशोधन के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेज रहा है और  चुनाव संबंधी नियम बनाने की शक्ति की मांग कर रहा है। वर्तमान में ये शक्ति केंद्र के पास है और इसे आयोग को देना चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट ने 19 फरवरी को जनहित याचिका पर केंद्र सरकार का रुख मांगा था

    मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2 दिसंबर को इस मुद्दे पर अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की सहायता मांगी थीबेंच ने रिकॉर्ड पर कुछ दस्तावेजों को रखने के लिए  चुनाव आयोग की याचिका को भी अनुमति दी।

    दरअसल वकील और दिल्ली भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका दायर की है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिए जाएं कि  सुप्रीम कोर्ट में निहित नियम बनाने वाले प्राधिकरण की तर्ज पर भारत के चुनाव आयोग पर नियम बनाने के लिए उचित कदम उठाए जाएं औरइसे चुनाव संबंधी नियम और आचार संहिता बनाने के लिए सशक्त बनाया जाए।”

    चुनाव प्रक्रिया की स्वतंत्रता को मजबूत करने और अपनी पवित्रता बनाए रखने के लिए उन्होंने सरकार से परामर्श के बाद चुनाव आयोग  को नियम बनाने के लिए एक नई रूपरेखा की मांग की।

     "भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 की भावना के तहत चुनाव आयोग को कार्यपालिका / राजनीतिक दबाव से बचाने के लिए ही आवश्यक नहीं है बल्कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए भी जरूरी है।” याचिका में कहा गया है।  उपाध्याय ने भारत के चुनाव आयोग को स्वतंत्र सचिवालय प्रदान करने और लोकसभा / राज्यसभा सचिवालय की तर्ज पर समेकित निधि दिए जाने के लिए केंद्र को दिशा निर्देश  देने की भी प्रार्थना की।

     याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकता  जब तक कि CEC  और ECsसमान रूप से संरक्षित नहीं हो जाते। इसके व्यय को समांकेतिक निधि के रूप में लिया जाए और स्वतंत्र सचिवालय और नियम बनाने का अधिकार दिया जाए। याचिका में कहा गया कि गोस्वामी समिति, चुनाव आयोग और विधि आयोग सहित विभिन्न समितियां और कमीशन (255 वीं रिपोर्ट में) ने इस संबंध में सुझाव दिया है लेकिन कार्यपालिका ने अब तक उन अनुशंसाओं को लागू नहीं किया है।

    ECI को  नियम बनाने की शक्ति 

    इस पहलू पर चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा कि यह नियम बनाने के अधिकार चुनाव आयोग से जुड़े होने चाहिएं ताकि वो चुनाव संबंधित नियमों के साथ-साथ आचार संहिता भी बना सके।

     इस संदर्भ में, आयोग ने कहा है कि उसने 1998 में केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था, जिसमें कहा गया है कि जनप्रतिनिधि  अधिनियम के तहत नियम बनाने के प्राधिकरण को केंद्र सरकार की बजाय चुनाव आयोग को प्रदान किया जाना चाहिए और कोई नियम तैयार करते समय आयोग को केंद्र से परामर्श करना चाहिए।

    इस प्रस्ताव को वर्ष 2016 में दोहराया गया था कि "चूंकि केंद्र आयोग के विचारों और सिफारिशों को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है, इसलिए ऐसे उदाहरण हैं जब आयोग की विशिष्ट सिफारिशों के विरोध के बावजूद नियमों को तैयार किया गया  और कई अवसरों पर बनाए गए या संशोधित नियम आयोग की सिफारिशों के अनुरूप नहीं है।"

    CEC की तरह ECs  को संरक्षण 

    संविधान के अनुच्छेद 324 के खंड (5) के अनुसार, CEC को ही वो संरक्षण प्राप्त है जो यह भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए उपलब्ध है।

    हालांकि  दोनों चुनाव आयुक्त इस तरह के संरक्षण के हकदार नहीं हैं। आयोग ने  कहा है कि उसने 1989 में चुनाव आयुक्तों  को समान संरक्षण प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 324 में संशोधन के लिए केंद्र को एक प्रस्ताव भेजा था। यह प्रस्ताव 2004 में दोहराया गया जब आयोग ने चुनावी सुधारों पर 22 प्रस्तावों का एक सेट भेजा जो अध्यक्ष, राज्यसभा द्वारा परीक्षा के लिए रखा गया था।

    प्रस्ताव संख्या 12 में चुनाव आयोग की आजादी के मुद्दे और चुनाव आयुक्तों की सुरक्षा के संदर्भ में कहा गया है क्योंकि ये कार्यालय से हटाने के मुद्दे से संबंधित है। इसके बाद आयोग  ने 22 जनवरी, 2010 को प्रधान मंत्री को भी लंबे समय से लंबित सिफारिशों पर  ध्यान आकर्षित करने के लिए लिखा था और उनसे अनुरोध किया कि वे इस मामले को व्यक्तिगत तौर पर देखें। आयोग ने 13 अप्रैल 2012 को प्रधान मंत्री को एक अन्य पत्र जारी किया था जिसमें अनुच्छेद 324 (5) के संशोधन के प्रस्ताव का उल्लेख किया गया था। इसके बाद दिसंबर, 2016 में केंद्र को भेजे गए 47 प्रस्तावों के एक और सेट में इसके बाद 'चुनाव आयोग के सभी सदस्यों के लिए संवैधानिक संरक्षण' से संबंधित एक प्रस्ताव पर विचार करने को कहा गया  जिसमें यह कहा गया कि संविधान के तहत स्वतंत्रता का तत्व प्राप्त करना केवल एक व्यक्ति के लिए विशेष रूप से नहीं है और वर्तमान संवैधानिक गारंटी अपर्याप्त है। चुनाव आयुक्तों के हटाने योग्य मामलों में वो ही सुरक्षा प्रदान करने के लिए संशोधन की आवश्यकता है जो मुख्य चुनाव आयुक्त को उपलब्ध है।

    यहां तक ​​कि लॉ कमीशन ने 255 वीं रिपोर्ट में चुनावी सुधारों पर  के सभी सदस्यों को संवैधानिक संरक्षण की सिफारिश की थी।

    भारत की समेकित निधि पर 

    आयोग को लोकसभा / राज्यसभा सचिवालय की तर्ज पर भारत की समेकित निधि देने की जरूरत है। आयोग ने कहा कि चुनाव आयोग का प्रशासनिक व्यय  मतदान के लिए है।

     उसने 1998 में केंद्र सरकार को लोकसभा सचिवालय जैसे एक स्वतंत्र सचिवालय को सुनिश्चित करने और भारत की समेकित निधि बनाने के लिए कहा गया और  शीघ्र कार्रवाई के लिए आग्रह किया था।

    यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सरकार ने  1996 में 10 वीं लोकसभा के विघटन के चलते विधेयक "निर्वाचन आयोग (भारत की समेकित निधि पर खर्च का प्रभार) विधेयक, 1994 को स्थानांतरित कर दिया था। जुलाई 2004 में चुनाव आयोग  ने सरकार को लिखा था कि 1996 में समाप्त हुए विधेयक पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। ये जरूरत 2012 में आयोग की ओर से सभी प्रस्तावों में दोहराई गई थी।

     आयोग ने शपथ पत्र में कहा है कि याचिका में प्रार्थना केवल संविधान में संशोधन के माध्यम से दी जा सकती है और इस प्रकार केंद्र सरकार को इस संबंध में उचित कदम उठाने की जरूरत है।


     
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