केरल के सतर्कता निदेशक जैकब थॉमस को राहत; सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को नोटिस जारी कर कहा, इतना संवेदनशील होने की जरूरत नहीं

LiveLaw News Network

2 April 2018 3:37 PM GMT

  • केरल के सतर्कता निदेशक जैकब थॉमस को राहत; सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को नोटिस जारी कर कहा, इतना संवेदनशील होने की जरूरत नहीं

    सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने सोमवार को केरल हाई कोर्ट को राज्य के पूर्व सतर्कता निदेशक जैकब थॉमस की विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया। हाई कोर्ट ने 20 मार्च को स्वतः संज्ञान लेते हुए थॉमस के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने यह नोटिस जारी किया।

    पृष्ठभूमि 
    हाई कोर्ट के दो जजों न्यायमूर्ति पी उबैद और न्यायमूर्ति अब्राहम मैथ्यू के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के कारण केरल हाई कोर्ट ने थॉमस के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की। थॉमस ने इन जजों पर आरोप लगाया था कि पत्तोर भूमि घोटाला सहित अन्य मामले की जांच को लेकर अपने फैसलों में ये लोग उन पर आरोप लगा रहे थे।

    थॉमस ने 9 मार्च को केंद्रीय सतर्कता आयोग के समक्ष शिकायत की जिसमें उन्होंने दोनों जजों के खिलाफ कई आरोप लगाए थे। इसके अलावा उन्होंने लोकायुक्त पिउस सी कुरिआकोस पर उनको राज्य के बहुत ही प्रभावशाली लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच से हतोत्साहित करने का आरोप भी लगाया।
    एडवोकेट मंसूर बीएच ने भी थॉमस द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी साथ ही इस बात की जाँच कराए जाने की मांग भी की थी कि कैसे थॉमस की जांच सार्वजनिक कर दी गई।

    मंसूर ने कहा कि 10 मार्च को उन्होंने लगभग सभी प्रमुख अखबारों में वह रिपोर्ट देखी जिसके बारे में थॉमस ने सीवीसी को केरल के मुख्य सचिव के माध्यम से रिपोर्ट भेजी थी।

    उन्होंने अपनी अवमानना याचिका में कहा, “केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) को जो उन्होंने रिपोर्ट भेजी उसे मीडिया को लीक करने में थॉमस की भूमिका की जांच होनी चाहिए”

    उन्होंने इस बारे में अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 का भी सहारा लिया जिसके तहत सेवा में रहते हुए किसी व्यक्ति को सरकार की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आलोचना करने की छूट नहीं है और अपनी बात की पुष्टि के लिए वह प्रेस से बात नहीं कर सकता।

    रजिस्ट्रार जनरल ने इस याचिका को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सामने सुनवाई के लिए रखा। मुख्य न्यायाधीश ने पाया कि प्रथम दृष्टया इसमें ऐसे आरोपों को उजागर किया गया है जो न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत आपराधिक अवमानना का आधार तैयार करता है। कोर्ट को लगा कि उसे इस मुद्दे पर कानून के मुताबिक़ आगे की कार्रवाई करनी चाहिए।

    इसके अनुरूप, स्वतः संज्ञान लेते हुए अधिनयम की धारा 15 के तहत  कार्रवाई शुरू की गई। यह गौर किया गया कि सीवीसी में शिकायत का कोई औचित्य नहीं था क्योंकि यह उसके अधिकारक्षेत्र में नहीं आता और इसलिए इसको सार्वजनिक क्षेत्र में लाना षड्यंत्र है और इससे न्यायपालिका की अथॉरिटी को कम किया गया है और न्याय प्रशासन में रोड़ा अटकाया गया है।

    सोमवार की सुनवाई 

    थॉमस की पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा, “हाई कोर्ट के प्रति पूरे सम्मान से हम कहना चाहते हैं कि इस मामले में कोई अवमानना (सीवीसी को पात्र भेजने से) नहीं हुई है और इसका हाई कोर्ट से कोई लेनादेना नहीं है...यह व्यवस्था के खिलाफ अपनी शिकायतों को ही विस्तार से बताया है...हाई कोर्ट को इसके बारे में कुछ ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत नहीं है...”

    वरिष्ठ वकील वी गिरी ने हाई कोर्ट की पैरवी करते हुए कहा, “मुख्य न्यायाधीश (हाई कोर्ट) को इस मामले में प्रथम दृष्टया अवमानना का मामला दिखता है... और इसके अलावा, सिर्फ कारण बताओ नोटिस ही उनको जारी किया गया है...हाई कोर्ट के समक्ष यह बताने में क्या हर्ज है कि उनका आशय क्या है?...अगर वह खुद कोर्ट नहीं आना चाहते तो वह इसके लिए वह आवेदन कर सकते हैं...”

    दवे ने कहा, “यह एक नागरिक के रूप में खुद कोर्ट में पेश होने के अधिकार का उल्लंघन है...”

    “याचिकाकर्ता ने केवल यह कहा है कि जब कुछ विशेष मामलों की सुनवाई हो रही थी उन्हें सुनवाई का मौक़ा नहीं दिया गया...वह केवल यह हमारी खुद की व्यवस्था में सुधार की जरूरत है...कि भ्रष्टाचार के मुद्दों ने जहाँ तक कि इस मामले की जांच और इसको कोर्ट के समक्ष पेश करने के मामले में न्यायपालिका को भी अंगूठा दिखा दिया है... इन परिस्थितियों में अवमानना का मामला शुरू करना एक गंभीर मामला है ...हमें एक भी आरोप दिखा दीजिए”, पीठ ने कहा।


    गिरी ने कहा, “याचिकाकर्ता ने जो वाक्य प्रयोग किया है वह है ‘जज द्वारा पास किया गया आदेश” ...जजों को उनके नाम से संबोधित नहीं किया जाता है”।

    पीठ ने सोमवार को हुई सुनवाई में कहा कि पीठ को इस ‘तरह संवेदनशील’ नहीं होना चाहिए।

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