सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने मुख्य न्यायाधीश को लिखा कड़ा पत्र; कहा, न्यायिक नियुक्तियों में सरकार के हस्तक्षेप पर अदालत का पूर्ण पीठ विचार-विमर्श करे [पत्र पढ़ें]

LiveLaw News Network

29 March 2018 2:59 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने मुख्य न्यायाधीश को लिखा कड़ा पत्र; कहा, न्यायिक नियुक्तियों में सरकार के हस्तक्षेप पर अदालत का पूर्ण पीठ विचार-विमर्श करे [पत्र पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा को लिखे पत्र में कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी के खिलाफ कठोर बातें लिखी हैं। माहेश्वरी ने केंद्रीय क़ानून और न्याय मंत्रालय के कहने पर जिला और सत्र न्यायालय के एक वरिष्ठ जज के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं।

    21 मार्च को लिखे अपने पत्र में न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने कहा है कि न्यायालय की पूर्ण पीठ हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के मामले में सरकार के हस्तक्षेप की चर्चा करे।

    हाई कोर्ट के जज हमारे पीठ के पीछे कार्यपालिका का पीठ सहला रहे हैं

    सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति पी कृष्ण भट को पदोन्नत करने की अनुशंसा की है लेकिन भट के खिलाफ जांच बिठा दी गई है। केंद्र ने भट की पदोन्नति रोक दी है जबकि अन्य लोगों की नियुक्ति को हरी झंडी दिखा दी है।

    भट के खिलाफ जांच की शुरुआत एक महिला जज की शिकायत के बाद शुरू की गई है। इस महिला जज ने भट पर ‘अत्याचार करने और अपने पद के दुरूपयोग’ करने का आरोप लगाया है। इन आरोपों को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर ने माहेश्वरी के पूर्ववर्ती न्यायमूर्ति सुभ्रो कमल मुख़र्जी को इस बारे में जांच करने को कहा था।

    न्यायमूर्ति मुख़र्जी ने भट को आरोपमुक्त करार दिया था और कहा था कि महिला ने भट को बदनाम करने के लिए ऐसा किया था ताकि हाई कोर्ट में उनकी नियुक्ति को बाधित किया जा सके। पर केंद्र ने भट की पदोन्नति रोक दी है और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को उनके खिलाफ जांच करने को कह दिया।

    न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने न्यायमूर्ति माहेश्वरी की कार्रवाई पर प्रश्न उठाया और इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाला बताया। अपने पत्र में उन्होंने लिखा :

    “हम सुप्रीम कोर्ट के जजों पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि हमने अपनी स्वतंत्रता और संस्थानिक ईमानदारी कार्यपालिका को समर्पित कर दिया है जो हमारी स्वतंत्रता का अतिक्रमण कर रहा है। कार्यपालिका हमेशा ही अधीर होता है और न्यायपालिका के प्रति उसको कोई आदर भाव नहीं है। मुख्य न्यायाधीश को हमेशा ही सचिवालय के किसी विभाग के प्रमुख के रूप में देखने का प्रयास किया जाता रहा है...

    बैंगलोर के एक व्यक्ति ने हमारे इस पतन में हम सबको पीछे छोड़ दिया है। कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हमारे पीठ के पीछे कार्यपालिका का साथ दे रहे हैं”।

    न्यायमूर्ति भट के खिलाफ दुबारा जांच शुरू करने का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने कहा है कि जिस तरह का आरोप उस महिला जज ने लगाया है उस तरह के प्रतिशोधात्मक आरोप पर अगर गौर किया गया तो “अपने करियर के प्रति सतर्क कोई भी जज अपने अधीनस्थ को अनुशासित करने का जोखिम मोल नहीं लेगा”।

    जज माहेश्वरी ने सरकार के प्रति जिस तरह से अपना “भक्तिभाव” दिखाते हुए क़ानून और न्याय मंत्रालय के आदेश पर कार्रवाई की है उस पर न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने नाराजगी जाहिर की।

    हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति में केंद्र का हस्तक्षेप

    अपने पत्र में न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने कहा है कि अगर केंद्र को भट के नाम पर कोई आपत्ति थी तो वह इस अनुशंसा को वापस कॉलेजियम को भेज सकती थी न कि उसको इस बारे में हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखना चाहिए था। केंद्र की कार्रवाई पर नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने लिखा :

    “कई बार हमारा अनुभव यह रहा है कि अगर सरकार हमारी अनुशंसा को मान लेती है तो वह एक अपवाद होता है और अगर वह इस पर कुंडली मारकर बैठी रहती है तो यह सामान्य लगता है”। पर योग्य जजों और भावी जजों को यह रास्ता अपनाकर उनसे पीछा छुड़ाया जाता है।”

    “मुझे नहीं लगता है कि हम में से कोई इस बात से असहमत होगा कि किसी व्यक्ति को हाई कोर्ट का जज बनाना किसी दो अथॉरिटीज का दायित्व है : सुप्रीम कोर्ट और कार्यपालिका का। अपनी अनुशंसा सौंप देने के बाद हाई कोर्ट इस दायित्व से मुक्त हो जाता है। इसको लेकर किसी भी तरह का पात्र व्यवहार या विचारों का आदान-प्रदान इन दो अथॉरिटीज के बीच होना चाहिए। मेरे सामने ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि विगत में कार्यपालिका ने सुप्रीम कोर्ट को इस तरह दरकिनार किया हो खासकर जब उसकी अनुशंसा लंबित हो और केंद्र सरकार हाई कोर्ट को ऐसे आरोपों को जांच करने को कह दे जैसे कि यह कोई विभागीय मामला हो और जिसे कोर्ट ने अपनी जांच में पहले ही झूठा बता दिया हो। हाई कोर्ट को हमारी अनुशंसाओं का दुबारा आंकलन करने को कहना अनुचित है”।

    चेलामेश्वर ने केंद्र द्वारा हाई कोर्ट को सीधे जांच के लिए कहने की नींदा की और कहा कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच यह “दोस्ती” लोकतंत्र के लिए घातक है।


     
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