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सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री भुजबल की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया, बॉम्बे हाईकोर्ट के हैबियस कॉरपस को खारिज करने को दी है चुनौती

LiveLaw News Network
26 March 2018 2:45 PM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री भुजबल की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया, बॉम्बे हाईकोर्ट के हैबियस कॉरपस को खारिज करने को दी है चुनौती
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न्यायमूर्ति एसए बोबड़े और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सोमवार को  महाराष्ट्र सरकार के पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल की याचिका पर  केंद्र को नोटिस जारी किया है और दो हफ्तों में सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती दी गई है। इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था।

याचिकाकर्ता की दलीलों से  पहले खंडपीठ ने भुजबल के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी पर सवाल उठाया कि कितने महीनों की गिरफ्तारी के बाद हैबियस कॉरपस की याचिका सुनवाई योग्य हो सकती है।

अदालत की पूछताछ के जवाब में रोहतगी ने वकील निखिल जैन की सहायता से कहा कि  ये गिरफ्तारी उनके मुव्वकिल के अनुच्छेद 19 ( समानता) और अनुच्छेद 22 (गिरफ्तारी और निरोध के खिलाफ संरक्षण) के तहत मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। भुजबल को गिरफ्तारी पर  एजेंसी की प्रक्रिया  पर सवाल उठाते हुए रोहतगी ने कहा कि ईडी गिरफ्तारी के आधार बताने में नाकाम रही है और गिरफ्तारी के कारणों का हवाला देने में असफल रही है। पीएमएलए के तहत एफआईआर का कोई प्रावधान नहीं है, उन्होंने कहा।

उन्होंने भुजबल की जमानत के लिए प्रार्थना की क्योंकि वह पिछले दो वर्षों से ज्यादा जेल में है। हालांकि अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया और कहा कि दलील के जवाब में दूसरे पक्ष को भी कोर्ट में होना चाहिए।

  गौरतलब है कि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2016 में भुजबल की याचिका को जमानत देने और पीएमएलए के तहत अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। एनसीपी नेता को 14 मार्च 2016 को ईडी द्वारा कथित मनी लॉन्डिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया था। एजेंसी ने दावा किया कि सरकारी खजाने को 870 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। ईडी ने भुजबल और उनके परिजनों पर नई दिल्ली के महाराष्ट्र सदन के निर्माण के ठेकेदारों के पक्ष में और कबीना सेंट्रल लाइब्रेरी के निर्माण के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया है। उस वक्त वो महाराष्ट्र के राज्य लोक निर्माण मंत्री थे और वो  नवंबर 2004 से सितंबर 2014 तक इस पद पर रहे।

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