जिस जीएसटीएन से उम्मीद थी कि इससे लोगों का भला होगा उसकी दुर्दशा पर सीआईसी ने उसे लगाई फटकार [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

1 March 2018 3:51 PM IST

  • जिस जीएसटीएन से उम्मीद थी कि इससे लोगों का भला होगा उसकी दुर्दशा पर सीआईसी ने उसे लगाई फटकार [आर्डर पढ़े]

    वस्तु और सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) दुर्दशा की स्थिति में है। केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) को यह जानकार हैरानी हुई कि जीएसटीएन के कई सारे महत्त्वपूर्ण पक्षों को अभी तक सुव्यवस्थित नहीं किया गया है और अभी तक उसने अपनी प्रक्रिया के बारे में कोई विस्तृत खुलासा नहीं किया है जोकि आरटीआई अधिनियम की धारा 4 के तहत उसको करना चाहिए। जीएसटीएन नामक इस कंपनी की स्थापना सरकार ने करदाताओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए किया था।

    सूचना आयुक्त बिमल जुल्का ने जीएसटीएन को निर्देश दिया है कि वह स्वतः संज्ञान लेते हुए खुद के बारे में सूचनाओं का खुलासा करे और आम लोगों की भलाई को देखते हुए इसके कुछ महत्त्वपूर्ण पक्षों पर ज्यादा और शीघ्र ध्यान देने को कहा।

    सीआईसी ने उक्त निर्देश सूचना अधिकार कार्यकर्ता (आरटीआई) आरके जैन द्वारा दायर एक अपील पर दिया जो यह जानना चाहते थे कि जीएसटीएन की नीतियाँ और उसकी प्रक्रियाएं क्या हैं।

    जैन ने सीआईसी से कहा कि जीएसटीएन एक निजी कंपनी है जिसे कंपनी अधिनियम की धारा 25 के तहत पंजीकृत किया गया है और इसकी एचआर पॉलिसी को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है। जीएसटीएन के कार्यों को अंजाम देने के लिए कौन क्या काम करेगा यह अभी तक बनाया नहीं गया है। उसके कर्मचारी कैसे कार्य करेंगे इस बारे में नियमों/विनियमनों और मैन्युअल आदि अभी तक तैयार नहीं हुए हैं। इसके खाते और बैलेंस शीट का वार्षिक स्टेटमेंट सिर्फ 2013-14 के लिए ही उपलब्ध है।

    जीएसटीएन ने सीआईसी को बताया कि वह अपने स्तर पर जो हो सकता है वो कर रहा है और प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की कोशिश कर रहा है ताकि एक ठोस व्यवस्था कायम की जा सके।

    सुनवाई के दौरान आयोग को बताया गया कि जिस सीपीआईओ ने प्रारम्भिक सूचना उपलब्ध कराया है उसने अब नौकरी छोड़ दी है और सिर्फ 1200 लोग इस कंपनी के सम्पूर्ण नेटवर्क को चला रहे हैं।

    जीएसटीएन ने कहा कि वह जरूरी सूचनाएं अपने वेबसाइट पर डाल रहा है पर सीआईसी ने कहा कि ऐसा नहीं है।

    जीएसटीएन को 28 मार्च 2013 को पंजीकृत किया गया और भारत सरकार की इसमें इक्विटी हिस्सेदारी 24.5% है, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों और राज्य के वित्त मंत्रियों की विशेषाधिकारप्राप्त समिति इन सबकी कुल हिस्सेदारी 24.5% और शेष 51% हिस्सेदारी गैरसरकारी वित्तीय संस्थानों की है।


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