जिंदल यूनिवर्सिटी गैंगरेप केस: सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट को अपील पर पांच महीने में फैसला देने को कहा
LiveLaw News Network
15 Feb 2018 5:38 PM IST
न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की बेंच ने गुरुवार को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय से ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी में गैंगरेप के मामले में आरोपियों की अपील की पांच महीने में फैसला लेने को कहा है।
अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसके दो अंतरिम आदेश यानी, 1. उच्च न्यायालय की सजा निलंबन के आदेश को निलंबित करना और 2. अभियुक्त विकास गर्ग की गिरफ्तारी से सरंक्षण , जब तक अपील का निर्णय नहीं लिया जाता, तब तक जारी रहेंगे।
“ न्याय के हित में, हम मामले की योग्यता पर चर्चा करने का प्रस्ताव नहीं देते, क्योंकि अपील उच्च न्यायालय में लंबित हैं। हम इसे उपयुक्त पाते हैं कि इस अदालत द्वारा पारित 2 अंतरिम आदेश अपील के लंबित होने तक जारी रहेंगे। हम उच्च न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि 5 महीने के समय में अपील को सुने और तय करे।
पक्षकारों को 6 मार्च को उच्च न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया जाता है।”
उच्च न्यायालय के आदेश के निलंबन के खिलाफ बलात्कार पीड़ित की याचिका पर सुनवाई करते हुए बेंच ने आदेश पारित किया।
अभियुक्त विकास गर्ग ट्रायल के दौरान दिसंबर 2016 से पहले ही जमानत पर था। बाद में, उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के सितंबर आदेश पर रोक लगाई थी जिसमें आरोपियों की सजा को निलंबित कर दिया गया था।
पिछले महीने हार्दिक सीकरी और करण छाबडा ने अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण किया था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने विकास गर्ग को सरंक्षण दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पीडिता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोन्जाल्विस और आरोपी सीकरी के लिए पेश वरिष्ठ वकील शांति भूषण की दलीलें सुनने के बाद आदेश जारी किया।
अभियुक्त छाबडा के लिए हुसेफा अहमदी और आरोपी गर्ग के लिए सिद्धार्थ लुथरा ने प्रस्ताव पर सहमति जताई कि उच्च न्यायालय को एक निश्चित समय में अपीलों को तय करने के लिए कहा जाएगा।
पीडिता के साथ आईक्लाउड अकाउंट पासवर्ड साझा करने के मुद्दे पर तर्क के दौरान शांति भूषण ने एक हलफनामा दायर किया और दावा किया कि उनका क्लाइंट पासवर्ड याद नहीं कर सकता क्योंकि वह 2 से डेढ़ साल तक जेल में था और उसने कभी भी खाते का इस्तेमाल नहीं किया था क्योंकि उसका आईफोन जांच एजेंसी ने जब्त किया था।
बेंच ने आरोपी द्वारा उद्धृत कारणों को स्वीकार कर लिया है। लड़की ने आरोप लगाया है कि आरोपी ने उसे ब्लैकमेल किया था क्योंकि आरोपी के साथ उनकी कुछ नग्न तस्वीरें थीं। छाबड़ा के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता अहमद ने तर्क दिया कि अभियुक्त छात्र हैं और लड़की के बयान में बदलाव है।
बेंच ने दलीलों को सुनने से इनकार कर दिया कि वह उच्च न्यायालय को फैसला करने के मामले में मामले की मेरिट में नहीं जाएगा। अभियुक्त गर्ग के लिए राहत की मांग करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता लूथरा ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को बलात्कार के लिए 7 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी और वह खुद ही परीक्षण के दौरान जमानत पर था।जनवरी में अदालत ने जमानत अवधि के दौरान आचरण को ध्यान में रखते हुए गर्ग की गिरफ्तारी पर सरंक्षण दिया गया था।
गौरतलब है कि पिछले साल सितंबर में उच्च न्यायालय ने इस आधार पर उनकी सजा को निलंबित कर दिया था कि पीडिता "समझौतावादी " थी और ये "आकस्मिक यौन पलायन" था।
लड़की ने 11 अप्रैल, 2015 को विश्वविद्यालय प्रशासन को शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें आरोप लगाया था कि विश्वविद्यालय के अंतिम वर्ष के कानून छात्रों ने अगस्त 2013 के बाद से ब्लैकमेल किया और बलात्कार किया। उसने यह भी आरोप लगाया था कि आरोपी के पास उसके आपत्तिजनक फोटो हैं और वे उसे वायरल करने की धमकी दे रहे हैं। पीड़िता ने आरोप लगाया कि उसे ब्लैकमेल किया जा रहा है और शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया।
पिछले साल मार्च में सोनीपत की एक ट्रायल कोर्ट ने इस अपराध के लिए तीनों को दोषी ठहराया था और हार्दिक व करण को 20 साल की सजा सुनाई थी जबकि विकास के लिए सात साल की जेल तय की गई।
हालांकि उच्च न्यायालय ने उनकी सजा को निलंबित कर दिया था और पिछले साल सितंबर में उन्हें जमानत दे दी थी। आदेश से पीड़ित होने के बाद लड़की ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी।