आरुषी-हेमराज मामले में तलवार दंपति को रिहा करने वाले जज अपने बारे में विपरीत बयान को रिकॉर्ड से निकलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गए
LiveLaw News Network
10 Feb 2018 11:57 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट के जज रंजन गोगोई और आर बनुमथी की पीठ ने सीबीआई के विशेष जज श्याम लाल की याचिका पर सीबीआई, उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किया है। श्यामलाल ने आरुषी-हेमराज दोहरे हत्याकांड में आरुषी के माँ-बाप राजेश और नुपुर तलवार को हत्या का दोषी करार दिया था। उनके इस फैसले पर हाई कोर्ट ने प्रतिकूल टिप्पणी की थी जिसको रिकॉर्ड से हटवाने के लिए अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
अवकाश प्राप्त जज श्याम लाल के वकील सखा राम सिंह ने कहा कि हाई कोर्ट ने अपने 12 अक्टूबर 2017 को दिए फैसले में याचिकाकर्ता के खिलाफ बहुत ही तीखी टिप्पणी की थी जिसने अतिरिक्त सत्र जज/विशेष जज के रूप में तलवार के मामले की सुनवाई की थी।
वकील ने कहा कि हाई कोर्ट की टिप्पणी से जज की प्रतिष्ठा पर गंभीर प्रभाव पड़ा है जो कई महत्त्वपूर्ण मामलों की निष्पक्ष सुनवाई कर चुके हैं।
अपनी याचिका में श्याम लाल ने कहा, “हाई कोर्ट के एक जज ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जो टिपण्णी की उसकी न तो जरूरत थी न ही क़ानून के तहत ऐसा करना जरूरी था। याचिकाकर्ता को फैसले से कोई दिक्कत नहीं है पर एक जज अरविंद कुमार मिश्रा-I, J ने अलग से जो फैसला लिखा था उससे उनको तकलीफ़ हुई है।
16 मई 2008 को तलवार दंपति की बेटी आरुषी और उनके नौकर हेमराज की हत्या हो गई थी। 2015 में निचली अदालत ने तलवार दंपति को हत्या का दोषी माना लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उनको दोषमुक्त कर दिया।
इस मामले को लेकर कुछ प्रश्न उठते हैं -
- क्या याचिकाकर्ता के खिलाफ जज की टिप्पणी उचित है?
- क्या जज की टिप्पणी इससे पहले अन्य मामलों में की गई टिप्पणी के अनुरूप है? ये मामले हैं आलोक कुमार रॉय बनाम डॉ. एस.एन सरमा और अन्य, AIR 1968 SC 453; काशी नाथ रॉय बनाम बिहार राज्य, (1996) 4 SCC 539; और अमर पाल सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, (2012) 6 SCC 491।
- क्या जज की टिप्पणी से याचिकाकर्ता की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है?