विधवाओं की हालत पर राज्यों के उदासीन रवैए से नाराज सुप्रीम कोर्ट, राज्य महिला आयोग में खाली पदों पर भी जताई चिंता

LiveLaw News Network

8 Feb 2018 4:24 AM GMT

  • विधवाओं की हालत पर राज्यों के उदासीन रवैए से नाराज सुप्रीम कोर्ट, राज्य महिला आयोग में खाली पदों पर भी जताई चिंता

    देश भर में विधवाओं की बदतर हालत पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के उदासीन रवैये पर निराशा जताई है। जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने ये भी कह दिया कि राज्य कोर्ट का वक्त बर्बाद कर रहे हैं। बेंच ने कहा कि 28 फरवरी तक सभी राज्य विस्तृत योजना दें और एक्सपर्ट कमेटी को अपने सुझाव भेजें। साथ ही एग्रीड एक्शन प्लान पर भी अपना हलफनामा दाखिल करें।

    वहीं सुनवाई के दौरान बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार पर भी नाराजगी जताई और पूछा कि राज्य महिला आयोग में 20 पद खाली क्यों हैं? इन्हें कब तक भरा जाएगा ? कोर्ट ने असम, पंजाब, आंध्र प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में भी महिला आयोग में खाली पदों पर चिंता जताई।

    बेंच ने कहा कि ये दुखद है कि एक पक्ष कहता है कि उसने दस्तावेज भेज दिए जबकि दूसरा कहता है कि ये दस्तावेज नहीं मिले। 21 वीं सदी में ईमेल जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि तमाम रिपोर्ट दाखिल की जाएं और मार्च में मामले की सुनवाई की जाएगी।

    दरअसल सात दिसंबर 2017 को देशभर की विधवाओं के हालात पर क्या कदम उठाए गए, इस पर जवाब ना देने पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 राज्यों व एक केंद्रशासित प्रदेश पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए दो-दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।

    इनमें उतराखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, मिजोरम, असम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, तमिलनाडू और अरूणाचल प्रदेश के अलावा केंद्रशासित दादर व नगर हवेली शामिल हैं।

    जस्टिस मदन बी लोकुर की बेंच ने विधवाओं के लिए उठाए गए कल्याणकारी कदम  पर केंद्र सरकार को रिपोर्ट ना देने पर ये जुर्माना लगाया था। जिन राज्यों ने आधी अधूरी रिपोर्ट दी, उन पर भी एक- एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया।

    दरअसल सुप्रीम  कोर्ट ने केंद्र सरकार से सभी राज्यों की रिपोर्ट के आधार पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी।सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि कोर्ट को इस रवैए से बडी पीडा हुई है लेकिन राज्यों को कुछ ही फर्क पडा है। कोर्ट ने कहा कि लैंगिक न्याय पर बडी बडी बाते कहने का कोई मतलब नहीं रह जाता जब राज्यों के पास विधवाओं के लिए तैयार योजनाएं बताने के लिए पांच मिनट का वक्त तक नहीं है।

    गौरतलब है कि 11 अगस्त को 2017 उत्तर प्रदेश के वृंदावन और देश के दूसरे आश्रमों में रहने वाली विधवाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन विधवाओं के जीवन में रोशनी होनी चाहिए और उन्हें भी आत्मसम्मान से जीवन जीने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समाज की विधवाओं के पुनर्विवाह पर स्टीरियोटाइप सोच को बदलने की भी जरूरत है।

    सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर आदेश जारी करते हुए एक कमेटी बनाई जो सारी रिपोर्ट का अध्ययन कर ये तय करेगी कि कैसे इन विधवाओं को समाज में गरिमा से जीने का NGO जागोरी से सुनीता धर, गिल्ड फोर सर्विस से मीरा खन्ना, वकील और एक्टिविस्ट आभा सिंघल जोशी, हेल्पेज इंडिया और सुलभ इंटरनेशनल से नामित एक- एक सदस्य और सुप्रीम कोर्ट की वकील अपराजिता सिंह को शामिल किया है। बेंच ने कहा कि वो विधवाओं के पुनर्विवाह पर भी विचार करे।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो उन बेआवाज विधवाओं की आवाज बना है और ये आदेश जारी कर अपनी संवैधानिक डयूटी को निभा रहा है ताकि ये महिलाएं गरिमापूर्ण जीवन जी सकें। इसमें भी कोई संदेह नहीं या कुछ संदेह हो सकता है कि कई हिस्सों में विधवाएं सामाजिक रूप से वंचित हैं या पूरी तरह बहिस्कृत हैं। इसी उम्मीद में वो वृंदावन या दूसरे आश्रम आती हैं लेकिन वहां भी वो आत्मसम्मान नहीं मिलता जिसकी वो हकदार हैं।

    18 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि सामाजिक बंधनों की परवाह ना करते हुए  वो ऐसी विधवाओं के पुनर्वास से पहले पुनर्विवाह के बारे में योजना बनाए जिनकी उम्र  कम है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि पुनर्विवाह भी  विधवा कल्याकारी योजना का हिस्सा होना चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के रोडमैप पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इसमें सफाई, पोष्टिक भोजन, सफाई समेत कई मुद्दों पर खामियां हैं। कोर्ट ने यहां तक कहा कि विधवा महिलाओं से बेहतर खाना जेल के कैदियों को मिलता है।

    जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा था कि विधवाओं के पुनर्वास की बात तो की जाती है लेकिन उनके पुनर्विवाह के बारे में कोई नहीं बात करता। सरकारी नीतियों में विधवाओं के पुनर्विवाह की बात नहीं है जबकि इसे नीतियों का हिस्सा होना चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट ने पाया है  कि वृंदावन सहित अन्य अन्य शहरों में विधवा गृहों में कम उम्र की विधवाएं भी हैं। पीठ ने कहा कि यह दुख की बात है कि कम उम्र की विधवाएं भी इन विधवा गृह में रह रही हैं।

    साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति में भी बदलाव करने की बात कही है। अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय नीति 2001 में बनी थी और इसे 16 वर्ष बीत चुके हैं। लिहाजा इसमें बदलाव की जरूरत है।

     दरअसल देश में विधवा महिलाओं के कल्याण को लेकर  NGO इनवायरमेंट एंड कंज्यूमर प्रोटेक्शन फाउंडेशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इसमें अतुल सेठी की किताब " वाइट शेडो आफ वृंदावन " का हवाला भी दिया गया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वृंदावन में रहने वाली विधवा महिलाओं के रहने और मेडिकल आदि के लिए आदेश जारी किए थे और फिर मामले को सारे राज्यों से जोड दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय महिला आयोग को सभी राज्यों में जाकर विधवा महिलाओं के हालात पर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई कर रहा है कि  केंद्र के एग्रीड एक्शन प्लान में क्या किया गया है।

    Next Story