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जज लोया केस: ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन (एआईएलयू) ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दाखिल की [याचिका पढ़े]

LiveLaw News Network
30 Jan 2018 4:37 AM GMT
जज लोया केस: ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन (एआईएलयू) ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दाखिल की [याचिका पढ़े]
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ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन  (एआईएलयू) ने सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई के विशेष जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की मौत के मामले में स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली एक याचिका में  हस्तक्षेप अर्जी  दायर की है।

महाराष्ट्र के  पत्रकार बंधूराज  संभाजी लोने द्वारा दायर याचिका में ही दाखिल एआईएलयू की अर्जी में  " न्यायाधीशों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यायपालिका की सामूहिक स्वतंत्रता" पर "खतरे" पर प्रकाश डाला गया है। बताया गया है कि अमित शाह अब सत्तारूढ़ दल के प्रमुख हैं, इसलिए इस घटना की कोर्ट की निगरानी में स्वतंत्र जांच की जरूरत है।जिसमें कहा गया है, "देश में एक महत्वपूर्ण संख्या में लोग और संगठन इस पर चिंतित हैं। जिन परिस्थितियों में एक ईमानदार न्यायाधीश- फर्जी मुठभेड़ मामले में भारत में एक प्रमुख पार्टी प्रमुख की भागीदारी में जांच कर रहा था -उसकी मौत हो गई।

ऐसी स्थिति में एक स्वतंत्र जांच की जरुरत है क्योंकि न्यायाधीशों को कानून के मुताबिक उनके सामने कोई विवाद तय करने में सक्षम होना चाहिए वो भी बिना किसी से प्रभावित हुए।

लेकिन अमित शाह उर्फ ​​अमितभाई अनिल चन्द्र शाह - जिस व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज किया गया था और जिसके लिए जज लोया को प्रासंगिक समय पर नियुक्त किया गया,

केंद्र में सत्तारूढ़ दल के प्रमुख हैं और इसलिए आवेदक संगठन यह मानते हैं कि जब तक इस कोर्ट की विशेष बेंच की निरंतर निगरानी में जांच नहीं होगी, जांच दल कार्यपालिका के दबाव से मुक्त नहीं होगा।”

 उसमें आगे कहा गया है कि सनसनीखेज मामलों" की सुनवाई करने वाले जजों को उनके अनुरोध पर 'Z- श्रेणी' सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। इसके बारे में कहा गया कि कॉलेजियम को सरकार को इसकी सिफारिश करनी चाहिए।

इसके अलावा, एआईएलयू ने  रिटायरमेंट के बाद जजों द्वारा लाभ के पद लेने पर दिशानिर्देशों के लिए भी प्रार्थना की है, जिसमें कहा गया है, "इस देश में किसी को यह सोचने का अवसर नहीं होगा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने किसतरीके से कुछ मामलों में प्रभावशाली व्यक्तियों / सरकार को एक निश्चित तरीके से फायदा पहुंचाने के लिए निर्णय लिया था। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अतीत की तरह  कानून के शासन पर,  कम से कम कुछ अवसरों में विश्वास को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। सामान्य जनता के पास कुछ मामलों में सेवानिवृत्त जजों को जोड़ने का अवसर था जब  सनसनीखेज मामलों की सुनवाई करने वाले जजों को लाभ का पद दिया गया  जिन्होंने जज के तौर पर  सेवा के रूप में अपने सक्रिय कैरियर में फैसला किया। "

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जज की मौत के आसपास की परिस्थितियों का निराश्रित रूप से परीक्षण करने और अपने निष्कर्ष पर पहुंचने का आश्वासन दिया है।चीफ जस्टिस  दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने यह भी निर्देश दिया था कि बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष लंबित याचिका याचिकाओं को हस्तांतरित किया जाए और सभी हाईकोर्ट  को ऐसी ही याचिकाओं पर हस्तक्षेप करने पर रोक लगे।

आप पढ़ सकते हैं: साल्वे बनाम दवे- जज लोया की मौत की जांच पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में दलीलें

 इससे पहले महाराष्ट्र सरकार को एक सीलबंद कवर में सारे दस्तावेज दाखिल करने के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाल दी थी।

 जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एम शांतनागौदर की बेंच ने वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे को याचिकाकर्ता लोने  और तहसीन पूनावाला  को दस्तावेजों की प्रतियां प्रदान करने के लिए कहा था। कोर्ट ने तब न्यायालय ने तब मामले को "उचित पीठ के सामने" रखने को कहा था।

दरअसल कोर्ट में  2014 में सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई करने वाले जज लोया  की रहस्यमय मौत की स्वतंत्र जांच की मांग वाली  दो याचिकाएं दाखिल की गई हैं।

 48 वर्षीय जज की नागपुर में 1 दिसंबर, 2014 को दिल का दौरा पडने से मौत हो गई थी  जहां वह एक शादी में भाग लेने गए थे।


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